राफेल सौदा: UPA से NDA तक, विवाद और अनसुलझे सवालों की कहानी, अब फ्रांस में भ्रष्टाचार की जांच

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अभिनय आकाश । Jul 6 2021 5:42PM

मोदी सरकार के रक्षा सौदे राफेल डील पर एक बार फिर से मामला गरमा रहा है। मीडिया पार्ट नाम की पब्लिकेशन के दावे के आधार पर वहां न्यायिक जांच शुरू हो गई है। इसे मुद्दा बनाकर जहां भारत में कांग्रेस समेत विपक्ष ने जेपीसी जांच की मांग कर दी है।

तारीख 29 जुलाई 2020, दोपहर के करीब 3 बज रहे थे कुल 7000 किलोमीटर की दूरी तय करके राफेल ने हिन्दुस्तान में प्रवेश किया। ''राष्ट्र रक्षा समं पुण्यं, राष्ट्र रक्षा समं व्रतम्, राष्ट्र रक्षा समं यज्ञो, दृष्टो नैव च नैव च'' यानी राष्ट्र रक्षा के समान कोई पुण्य नही, राष्ट्र रक्षा के समान कोई व्रत नही, राष्ट्र रक्षा के समान कोई यज्ञ नही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ इस तरह से राष्ट्र रक्षा के प्रण के साथ बाहुबली का स्वागत किया। राफेल फ्रेंच भाषा का शब्द है इसका शाब्दिक अर्थ है हवा का तेज झोंका। राफेल ने एक लंबी यात्रा तय की है, न सिर्फ फ्रांस से भारत तक की अपितु ये यात्रा दो दशकों की है। जब भारत ने पहले पहल एमएमआरसीए यानी मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट का सपना देखा था। लेकिन जैसा कि कई रक्षा समझौतों के साथ होता रहा है, गंभीर आरोप लगाए जाते रहे, बड़ा चुनावी मुद्दा भी बना और कई सरकारें भी गंवानी पड़ी। राफेल को लेकर भी कमोबेश कुछ-कुछ ऐसा ही देखने को मिला। आरोप भी लगे भले ही इससे सशक्त मोदी सरकार को 2019 के चुनाव में कुछ खास नुकसान नहीं हुआ लेकिन प्रमुख विपक्षी पार्टी द्वारा 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार के खिलाफ सबसे धारदार हथियार राफेल ही रहा। मोदी सरकार के रक्षा सौदे राफेल डील पर एक बार फिर से मामला गरमा रहा है। फ्रांस मीडिया पार्ट नाम की पब्लिकेशन के दावे के आधार पर वहां न्यायिक जांच शुरू हो गई है। इसे मुद्दा बनाकर जहां भारत में कांग्रेस समेत विपक्ष ने जेपीसी जांच की मांग कर दी है। वहीं कांग्रेस सांसद राहुल गांधी का तीर एक बार फिर से मोदी सरकार पर चला है। 

फ्रांस में शुरू हुई राफेल डील की जांच

फ्रांस में भारत के साथ हुए 36 राफेल की डील में कथित भ्रष्टाचार और पक्षपात की जांच शुरू कर दी है। इसके लिए फ्रांस में एक जज की नियुक्ति की गई है। फ्रांस की पब्लिक प्राजिक्यूशन सर्विस की फाइनेंसियल क्राइम ब्रांच ने इस जांच की जानकारी दी है। आपराधिक जांच का नेतृत्व एक स्वतंत्र मजिस्ट्रेट की ओर से किया जाएगा। जो अन्य मामलों के अलावा पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के कार्यों के आस-पास उठे सवालों की जांच करेगा। ओलांद उस समय पद पर पर थे, जब राफेल सौदा हुआ था। जबकि वर्तमान के फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों उस समय वित्त मंत्री थे। फ्रांस की पब्लिक प्राजिक्यूशन सर्विसेज की फाइनेंसियल क्राइम ब्रांच यानी की पीएनएफ ने कहा है कि भारत सरकार और फ्रांसीसी विमान निर्माता कंपनी के बीच 36 लड़ाकू विमान के समझौते में कथित भ्रष्टाचार और पक्षपात के आरोपों की जांच होगी। 

राफेल जांच का मुद्दा फ्रांस में कैसे उठा?

फ्रांस की एक वेबसाइट मीडियापार्ट ने अप्रैल 2021 में राफेल सौदे में कथित अनियमितता पर कई रिपोर्ट्स प्रकाशित की थी। मीडियापार्ट के पत्रकार यैन फिलिपपिन ने राफेल सौदे को लेकर एक के बाद एक कई रिपोर्ट दी थी। इसमें दावा किया गया था कि इस मामले में पहली शिकायत 2019 में दी गई थी, मगर तत्कालीन पीएनएफ प्रमुख एलियने हाउलेते ने इस शिकायत को दबा दिया था। मीडियापार्ट ने अप्रैल में देश की भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसी द्वारा कराई गई जांच का हवाला देते हुए एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें कहा गया था कि दसॉल्ट एविएशन ने राफेल सौदे की एवज में भारतीय बिचौलिए को 10 लाख यूरो (करीब नौ करोड़ रुपये) का भुगतान किया था। इसके साथ ही फ्रांस के मीडिया पोर्टल मीडियापार्ट ने दावा किया कि भारत के प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने सुशेन गुप्ता नाम के एक दलाल को दसॉल्ट  और उसकी सहायक कंपनियों की तरफ से दी गई रकम की जांच की ही नहीं। पोर्टल ने कहा कि गुप्ता ने रक्षा मंत्रालय से महत्वपूर्ण दस्तावेज हासिल किए थे जिन्हें उसने दसॉल्ट एविएशन को सौंप दिए। इन दस्तावेजों ने भारत की गुप्त नीति को कंपनी के सामने उजागर कर दिया। इस कारण दसॉल्ट को अपने राफेल जेट बेचने में मदद मिली। सुशेन गुप्ता अभी ऑगुस्टावेस्टलैंड वीवीआईपी चॉपर डील में दलाली के आरोपों के कारण मुकदमेबाजी झेल रहा है। कंपनी ने साल 2000 की शुरुआत में ही हायर कर लिया था जब भारत ने 126 युद्धक विमान खरीदने की इच्छा जताई थी। इस फ्रेंच मीडिया पोर्टल ने दावा किया है कि 'ईडी की केस फाइल में दर्ज सबूतों' के आधार पर यह साफ कहा जा सकता है कि गुप्ता को 15 सालों तक यूरो के रूप में कई करोड़ रुपये दिए गए। एक एनजीओ शेरपा ने मामले में शिकायत दर्ज कराई। 

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फ्रांस के बड़े नेताओं का नाम क्यों? 

राफेल सौदे के दौरान फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने डील पर हस्ताक्षर किए थे। वर्तमान राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों उस समय वित्त मंत्री थे। इस जांच के आदेश फ्रांसीसी गैर सरकारी संगठन शेरपा की शिकायत और मीडियापार्ट की अप्रैल में सौदे में धांधली की रिपोर्टों के आधार पर दिए गए हैं।

दसॉल्ट एविएशन का क्या है कहना?

राफेल बनाने वाली कंपनी दसॉल्ट  एविएशन ने जांच पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। वैसे कंपनी ने आरोपों से इनकार किया है। 

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यूपीए सरकार का क्या था सौदा? 

साल 2007 एयरफोर्स के कहने पर मनमोहन सरकार 126 जेट लेने का टेंडर निकालती है। 2012 में टेंडर खुलता है। फ्रांस की कंपनी से जेट लेने की बात चलती है फिर सरकार बदल जाती है। मोदी सरकार एक नई डील करती है सीधे फ्रांस की सरकार के साथ। अनिल अंबानी की कंपनी का नाम आता है जिसे इस डील से फायदा होता है। मोदी सरकार से सवाल पूछे जाते हैं। मोदी सरकार कहती है हम सवालों के जवाब नहीं दे सकते क्योंकि फ्रांस से हमने प्रॉमिस किया है। फिर एक दिन वो आदमी सामने आता है जिसने मोदी सरकार ने उस वक्त डील की थी। यानी फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद और कहते हैं अनिल अंबानी की कंपनी को फायदा मोदी सरकार ने दिलाया। फिर राफेल डील पर बवाल होता है। राफेल डील मोदी सरकार के गले की फांस और कांग्रेस की आस बन जाती है। राजनीति एक-दूसरे को चोर बुलाने लगती है कोई प्रधानमंत्री को चोर कहता है तो पलटवार में जवाब आता है तुम्हारा तो पूरा खानदान चोर है। प्रवक्ताओं के आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता है। 

राफेल डील से जुड़ी बातें

जेट किसने खरीदी- भारत सरकार ने 

जेट किससे खरीदा- दसॉल्ट  एविएशन से

फ्रांस बीच में कहां से आया- बिचौलिये के तौर पर, ये दो सरकारों के बीच का समझौता था। फ्रांस की सरकार बिचौलिया और दसॉल्ट  एविएशन वेंडर बनी। 

रिलायंस डिफेंस का नाम कहां से आया- रिलायंस डिफेंस इस सौदे में ऑफसेट पार्टनर था। 

ऑफसेट पार्टनर क्या है?

 मोदी सरकार ने फ्रांस से जेट इस शर्त पर खरीदे थे कि जितना पैसा हम दसॉल्ट  को देंगे उसमें से आधा वापस देश में निवेश के जरिये आ जाएगा। दसॉल्ट  को लगभग 30 हजार करोड़ का निवेश करने के लिए हिन्दुस्तान में कंपनियों के साथ समझौता करना था। ये साझेदार ही थे ऑफसेट पार्टनर। रिलायंस डिफेंस इनमें से एक है। 

HAL क्या है और दसॉल्ट  से उसका सौदा कैसे खटाई में पड़ा?

हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड यानी एचएएल जिसकी बात आपने कांग्रेस की हर तकरीर में सुनी होगी। ये एक सरकारी कंपनी है। 2007 में भारत सरकार ने जेट विमान खरीदने के लिए टेंडर निकाला। 2014 तक दसॉल्ट  और एचएएल के बीच वर्क शेयर और एग्रीमेंट भी साइन हो गया। लेकिन ये डील इससे आगे नहीं बढ़ी। अप्रैल 2014 में जब प्रधानमंत्री मोदी ने 36 जेट फ्लाइ अवे कंडीशन में लाने की घोषणा की तो एचएएल इस दौर से बाहर हो गया। 

एचएएल को डील से अलग क्यों किया गया?

 तत्कालीन रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसकी वजह यूपीए सरकार को बताया। उनके मुताबिक पिछली सरकार के समय में ही सरकारी कंपनी एचएएल निर्माण शर्तों पर दसॉल्ट  एविएशन से सहमत नहीं हो सकी। ऐसे में यूपीए सरकार के समय में ही एचएएल डील से बाहर हो गई थी। 

526 करोड़ का जेट 1670 करोड़ में क्यों खरीदा?

अरुण जेटली के अनुसार 2016 में जो सौदा हुआ, उसके आधार पर बेयर एयरक्राफ्ट (विभिन्न युद्धक प्रणालियों से विहीन विमान) का दाम यूपीए की कीमत से नौ प्रतिशत कम था और हथियारों से युक्त विमान की बात करें। तब यह यूपीए की तुलना में भी 20 प्रतिशत सस्ता था। यूपीए सरकार दौरान भी ऑफर में भी सादे एयरक्राफ्ट और हथियारयुक्त एयक्राफ्ट के लिए दो अलग दाम थे। जेटली ने कहा था कि मोदी सरकार के दौरान हुई नई राफेल डील 58000 करोड़ रुपये की है। हमसे पूछा जा रहा था कि 1600 करोड़ रुपये की कीमत कहां से आई, जो कि एक साधारण गणित है. अगर 58000 करोड़ रुपये को 36 से भाग दिया जाए तो 1600 करोड़ रुपये ही आएगा।

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अब ये तो हमने आपके सामने राफेल डील से जुड़ी सारी बातों का निचोड़ रख दिया लेकिन राफेल देश के अंदर भी राजनीतिक लड़ाई से दो-चार हुआ है और आरोपों ने सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर भी दस्तक दी। इस पर भी नजर डालना लाजिमी है।

'चौकीदार...' के फ्लॉप शो के बाद फिर से 

गली-गली में शोर है... भीड़ से आवाज आती है "चौकीदार चोर है" सफेद कुर्ते और जीन्स में अलग-अलग भाव-भंगिमा के साथ तीखे तेवर और चुटीले अंदाज़ में कांग्रेस के तत्तकालीन अध्यक्ष और देश के 50 वर्षीय ऊर्जावान युवा नेता राहुल गांधी पूरे चुनाव, रैली दर रैली रोड शो दर रोड शो एक सूत्री कार्यक्रम पर चले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला। वो उनका मज़ाक उड़ाते है, उन्हें नाकाम बताते, भ्रष्टाचारी बताते और देश को उनसे मुक्ति दिलाने की बात करते। कांग्रेस अध्यक्ष ने पूरे चुनाव मोदी सरकार पर हमला करने का कोई मौका नहीं छोड़ा। नरेंद्र मोदी उद्योगपतियों के चौकिदार है, राफेल डील में गड़बड़ी हुई है। भ्रष्टाचार हुआ है जैसे आरोप लगाते-लगाते राहुल गांधी ने इसमें सुप्रीम कोर्ट को भी घसीटते हुए कह दिया की कोर्ट ने भी कह दिया चौकीदार चोर है। नतीजतन मामला न्यायालय की अवमानना का बना और फिर राहुल कोर्ट से कहते दिखे 'हमसे भूल हो गई हमको माफी दे दो'। लेकिन जिस राफेल के बहाने राहुल राजनीतिक उड़ान भर रहे थे और दो बरस से अपनी राजनीति के पैंतरे तय किये, पीएम को झूठा, फरेबी और बेईमान बताने से भी नहीं चूके, बोफोर्स के समानांतर राफेल को लाने की कवायद करते रहे लेकिन उसका धरातल पर आम जनता की नजर में असर कुछ खास नहीं दिखा। साल 2019 में हार के बाद जब राहुल गांधी ने अपना इस्तीफा ट्विटर पर सार्वजनिक किया तब भी यही दोहराया कि प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ अपने आरोप से वो पीछे नहीं हटे हैं - 'चौकीदार चोर है। 

सुप्रीम कोर्ट ने जांच की याचिका को किया खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने 14 दिसंबर 2018 को सौदे की जांच की याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि राफेल की खरीद में निर्णय लेने की प्रक्रिया पर संदेह करने की कोई गुंजाइश नहीं है। अदालत ने पिछले साल नवंबर में अपने फैसले पर पुनर्विचार की याचिकाओं को खारिज करते हुए सौदे को लेकर चल रहे राजनीतिक विवाद पर विराम लगा दिया था। 

फिर से गर्माया मुद्दा

अब जबकि फ्रांस में राफेल डील की जांच कराने की खबर आयी है, राहुल गांधी नये सिरे से एक्टिव नजर आ रहे हैं। राहुल ने ट्विटर पर लिखा मित्रों’ वाला राफ़ेल है, टैक्स वसूली- महंगा तेल है, PSU-PSB की अंधी सेल है सवाल करो तो जेल है। मोदी सरकार ____ है! इससे पहले भी राहुल गांधी ने एक और ट्वीट किया था, जिसमें एक फोटो शेयर कर कैप्शन में लिखा था, चोर की दाढ़ी में तिनका। राहुल गांधी को सक्रिय देख कांग्रेस नेताओं ने भी मोर्चा संभाल लिया है। कांग्रेस नेतृत्व ने प्रवक्ताओं को आगे कर दिया है। रणदीप सुरजेवाला के बाद कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने भी प्रधानमंत्री मोदी, बीजेपी और केंद्र सरकार से जोर जोर से सवाल पूछना शुरू कर दिया है।-अभिनय आकाश

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