नरसिम्हा राव को Forgotten PM बनाने के लिए कांग्रेस ने की कड़ी मेहनत!

Narasimha Rao
अभिनय आकाश । Jul 8 2020 4:07PM

प्रधानमंत्री बनने के बाद नरसिम्हा राव सोनिया गांधी से नियमित अंतराल पर मिलते रहते थे लेकिन उन्होंने सोनिया गांधी को कभी-भी सत्ता केंद्र के रूप में उभरने नहीं दिया। नटवर सिंह ने कहा था कि नरसिम्हा राव को लगा कि बतौर प्रधानमंत्री उन्हें सोनिया को रिपोर्ट करने की जरूरत नहीं है और उन्होंने ऐसा ही किया।

राजनीति में निर्वासित जीवन जी रहे किसी व्यक्ति के अचानक महत्वपूर्ण हो जाने के देश में बहुत उदाहरण मौजूं हैं।  लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव शायद अकेले ऐसे व्यक्ति हैं जो अपनी मृत्यु के डेढ़ दशक बाद सिर्फ मीडिया में ही नहीं अचानक मुख्यधारा की राजनीति में भी सम्मान के साथ याद किए जा रहे हैं, जिसके वो बहुत पहले से ही वाजिब हकदार थे। तेलंगाना सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की जन्मशती के उपलक्ष्य पर सालभर चलने वाले समारोह की शुरुआत की, मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने नरसिम्हा राव को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समकक्ष रखते हुए भारत रत्न प्रदान करने की मांग की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर निशाना साधने के लिए कई बार राव का जिक्र किया है। 

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वहीं कांग्रेस पार्टी हमेशा नरसिम्हा राव से किनारा काटती दिखती है। और तो और कांग्रेस कुरेद-कुरेद कर नरसिम्हा राव से जुड़ी यादों को मिटाने की कोशिश करती रही। लेकिन इतिहास किसी पार्टी या किसी व्यक्ति की इच्छाओं का रेहन नहीं होता। इसलिए कांग्रेस याद करे या न करे। देश नरसिम्हा राव को याद करता रहता है। कोई मौनी बाबा कहे, कोई बाबरी मस्जिद के ढहने के लिए जिम्मेदार कहे, कोई भारत इजराइल संबंधों की मजबूत शुरुआत करने वाला नेता बताए। कोई न्यूक्लियर बम की तैयारी करने वाला कहे। कोई इकनामिक पालिसी में बदलाव लाने वाला कहे।

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निजाम के खिलाफ आंदोलन से सीएम की कुर्सी तक

वर्ष 1947 में भारत को आजादी मिली लेकिन उस वक्त हैदराबाद के निजाम ने भारत में शामिल होने से साफ इनकार कर दिया। यहां तक की वंदे मातरम गाने पर रोक लगा दी। इसके बाद नरसिम्हा राव ने निजाम के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया था। 1951 में राव कांग्रेस में शामिल हुए। वर्ष 1957 से 77 तक वो आंध्र प्रदेश विधानसभा के सदस्य रहे। इस दौरान नरसिम्हा राव ने आंध्र प्रदेश में स्वास्थ्य, कानून और सूचना जैसे अहम मंत्रालय भी संभाले। वर्ष 1971 में वो आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बने। मुख्यमंत्री रहते उन्होंने ही आंध्र प्रदेश में भूमि सुधार की शुरुआत की थी। उस वक्त आंध्र प्रदेश ऐसा करने वाला देश का पहला राज्य था। 

इंदिरा गांधी के रहे करीबी

जब पंजाब आतंकवाद से धधक रहा था, दार्जिलिंग में गोरखा और मिजोरम में अलगाववादी समस्या पैदा हो रही थी तो इन्दिरा गांधी ने नरसिम्हा राव को गृह मंत्री बनाया था। अमृतसर के स्वर्ण मन्दिर में सेना का प्रवेश और नरसिम्हा राव पर इन्दिरा सरकार को फिर से बचाने का दायित्व आया। इन्दिरा गांधी की हत्या के चन्द घण्टो बाद ही हैदराबाद से नरसिम्हा राव को वायुसेना के विमान से दिल्ली लाया गया था। तब सिख-विरोधी दंगों से दिल्ली जल रही थी। बाद में राजीव गांधी ने उन्हें रक्षा तथा मानव संसाधन मंत्री बनाया। जब पंजाब आतंकवाद से धधक रहा था, दार्जिलिंग में गोरखा और मिजोरम में अलगाववादी समस्या पैदा हो रही थी तो इन्दिरा गांधी ने नरसिम्हा राव को गृह मंत्री बनाया था। अमृतसर के स्वर्ण मन्दिर में सेना का प्रवेश और नरसिम्हा राव पर इन्दिरा सरकार को फिर से बचाने का दायित्व आया। इन्दिरा गांधी की हत्या के चन्द घण्टो बाद ही हैदराबाद से नरसिम्हा राव को वायुसेना के विमान से दिल्ली लाया गया था। तब सिख-विरोधी दंगों से दिल्ली जल रही थी। बाद में राजीव गांधी ने उन्हें रक्षा तथा मानव संसाधन मंत्री बनाया। 

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 साल 1990 भारत के लिए मुश्किल भरा था। देश की आर्थिक हालत बिगड़ी हुई थी। इस हद तक की कर्जदारों को लौटाने के लिए डॉलर न के बराबर थे। हालात ऐसे बन गए थे कि भारत की गिनती कर्ज लेकर लौटाने में सक्षम नहीं होने वाले देशों में शामिल होने वाली थी। हफ्ते भर बाद भारत कच्चा तेल नहीं खरीद सकता था। देश के पास तेल आयात करने के लिए पैसा नहीं था। भारत के लिए मुश्किल दौर था और उस दौरान दिल्ली में एक अहम मुलाकात हुई। आरबीआई गवर्नर वेंकटरमन और मनमोहन सिंह की मुलाकात जो उस वक्त पीएम चंद्रशेखर के सलाहकार थे। उस वक्त देश के हालात इतने बुरे थे कि आरबीआई ने मनमोहन सिंह के सामने सोना गिरवी रखने का प्रस्ताव रखा। चंद्रशेखर ने आरबीआई गवर्नर को देश के सोना को गिरवी रखने की इजाजत देते हुए सरकार को बाहर से समर्थन देने वाली कांग्रेस के मुखिया राजीव गांधी को इसकी जानकारी देने की बात कही। राजीव गांधी और वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा की सहमति चल ही रही थी कि चंद्रशेखर की सरकार गिर गई। भारत की राजनैतिक परिस्थियों को देखते हुए भारत की आर्थिक रेटिंग भी क्रेडिट-रेटिंग एजेंसियों ने घटा के निम्नतम स्तर पर कर दिया था। सरकार गिरने के बाद एक बार फिर चुनाव होने थे। तभी देश को एक और बड़ा झटका लगा। चुनाव प्रचार के दौरान ही मई 1991 में LTTE द्वारा राजीव गांधी की हत्या कर दी गई। उस वक्त एक शख्स जिसने कांग्रेस का घोषणापत्र तैयार किया था, तबीयत बिगड़ने के बाद उसके सक्रिय राजनीति से संन्यास की अदकलें तेज हो गई थी। लेकिन उसकी एक बार फिर से न केवल सक्रय राजनीति में एंट्री होती है बल्कि  प्रधानमंत्री भी बना दिया जाता है। जब नरसिम्हा राव प्रधान मंत्री बने तो कांग्रेसी दिग्गजों का अन्दाज था कि वो एक लघु कथा के फुटनोट हैं और शीघ्र ही सोनिया गांधी अपनी पारिवारिक वसीयत संभाल लेंगी। किसे पता था कि नरसिम्हा राव एक लम्बे, नीरस ही सही, उपन्यास का रूप ले लेंगे और पूरे पांच वर्ष तक प्रधानमंत्री पद पर डटे रहेंगे। नेहरू परिवार के बाहर का प्रथम कांग्रेसी जो इस पद पर पूरी अवधि तक रहा। 

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मनमोहन सिंह की वित्त मंत्रालय में एंट्री

 आपने देखा होगा अक्सर हमारे देश के विद्वान आर्थिक उदारीकरण के लिए नरसिम्हा राव की सरकार में वित्त मंत्री रहे मनमोहन सिंह को क्रेडिट देते हैं। लेकिन ये विद्वान कभी भी नरसिम्हा राव का नाम नहीं लेते हैं। जिन्होंने मनमोहन सिंह की प्रतिभा को पहचाना और उनको वित्त मंत्री बनाया। उस समय प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव रहे पीसी अलेक्जेंडर अपनी आत्मकथा ‘थ्रू कॉरीडोर्स ऑफ पावर : एन इनसाइडर्स स्टोरी’ में बताते हैं कि राव पहले ही उन्हें इशारा दे चुके थे कि वे डॉ मनमोहन सिंह को वित्तमंत्री बनाना चाहते हैं। भारत में आर्थिक उदारीकरण की बुनियाद रखने वाली इस जोड़ी ने विदेशी निवेश की खिड़की खोलने की शुरुआत की। नरसिम्हा राव पहले राष्ट्रनायक थे जिन्होंने “लुक ईस्ट” (पूर्व को देखो) की विदेश नीति रची थी। चीन का खतरा उन्होंने अपनी 1993 की बीजिंग यात्रा पर भांप लिया था। तभी से दक्षिण एशिया राष्ट्रों से रिश्ते प्रगाढ़ बने। 

सोनिया गांधी से क्यों पैदा हुई दूरी

 प्रधानमंत्री बनने के बाद वे सोनिया गांधी से नियमित अंतराल पर मिलते रहते थे लेकिन उन्होंने सोनिया गांधी को कभी-भी सत्ता केंद्र के रूप में उभरने नहीं दिया। नटवर सिंह ने एक बार इंटरव्यू में कहा था कि नरसिम्हा राव को लगा कि बतौर प्रधानमंत्री उन्हें सोनिया गांधी को रिपोर्ट करने की जरूरत नहीं है और उन्होंने ऐसा ही किया। यह बात सोनिया गांधी को पसंद नहीं आई। नरसिम्हा राव के एक बयान 'जैसे इंजन ट्रेन की बोगियों को खींचता है वैसे ही कांग्रेस के लिए यह जरूरी क्यों है कि वह गांधी-नेहरू परिवार के पीछे-पीछे ही चले? ने इस दूरी को और बढ़ा दिया। 

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बाबरी मस्जिद विवाद

कांग्रेस के बाहर और भीतर एक बड़ा तबका है, जो अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराये जाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को जिम्मेदार मानता है। राहुल गांधी ने भी एक बार कहा था कि उस समय अगर मेरे परिवार से कोई प्रधानमंत्री होता तो मस्जिद नहीं गिरती। नरसिम्हा राव की जीवनी 'हाफ लॉयन : हाउ पीवी नरसिम्हा राव ट्रांसफॉर्म्ड इंडिया लिखने वाले पत्रकार विनय सीतापति इस विषय पर विस्तार से चर्चा करते हुए लिखा कि  राव ने उस दौरान बीजेपी नेताओं और अन्य हिंदू नेताओं से कई गुप्त बैठकें कीं। इन बैठकों में उन्हें आश्वस्त किया गया कि अदालत के फैसले के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया जाएगा। इन नेताओं में बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी भी थे। सन्तों से प्रवाहमय संस्कृत में संवाद कर प्रधानमंत्री ने उन्हें कारसेवा टालने हेतु मना भी लिया था। पर कल्याण सिंह की सरकार के वचन भंग के सामने केन्द्र की सरकार उन्नीस पड़ गई। नरसिम्हा राव ने लोकसभा में कहा भी था कि रामभक्तों (भाजपा) से तो सामना किया जा सकता है, पर भगवान राम से नहीं। जनता दोनों के मध्य अन्तर नहीं कर पाई और कांग्रेस पार्टी की रामविरोधी छवि बन गई। वह चुनाव हार गई। 

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 1998 के चुनाव में कांग्रेस ने नहीं दिया टिकट

1996 के चुनाव में कांग्रेस हार गई थी लेकिन राव के लिए यह बड़ा झटका नहीं था। उनकी प्रतिष्ठा को असली धक्का तब लगा जब 1998 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने उन्हें टिकट देने से ही मना कर दिया। यह अपने आप में ऐतिहासिक घटना थी। बाद में जब सोनिया गांधी अध्यक्ष बनीं तो राव अनौपचारिक रूप से कांग्रेस से बहिष्कृत ही कर दिए गए।

जब अटल ने पोखरण का श्रेय राव को दिया

बात 26 दिसंबर 2004 की है। मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक कार्यक्रम था। साहित्यिक संस्था के शताब्दी समारोह का समापन का मौका था। अटल बिहारी वाजपेयी भी इस प्रोग्राम में शरीक हुए थे। दो शब्द कहने की बारी आई, तो पोखरण का जिक्र कर वह बोले- लोग एटम के लिए श्रेय मुझको देते हैं, लेकिन इसका क्रेडिट तो नरसिम्हा राव जी को है। अटल बिहारी वाजयेपी ने साल 2004 में कहा था कि उन्होंने मई 1996 में जब नरसिंह  राव के बाद प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली, तो राव ने मुझे बताया था कि बम तैयार है, मैंने तो सिर्फ विस्फोट किया है।

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नरेगा से मनरेगा

कांग्रेस की नरसिम्हा राव के प्रति सोच को एक पुराने अखबार ने अपने कार्टून के माध्यम से प्रदर्शित करने की कोशिश की थी जब उसमें यह दिखाया गया था कि ग्रामीण रोजगार योजना(नरेगा  का नाम मनरेगा क्यों कर दिया गया। मनमोहन सिंह  सरकार को आशंका हुई होगी कि एनआरईजीए. कही नरसिम्हा राव इम्प्लायमेन्ट गारन्टी योजना न कहलाने लग जाए। अतः महात्मा गांधी का नाम जोड़ दिया गया। मजाक ही सही पर इस बात से कांग्रेस पार्टी की नीयत उजागर हो जाती है। 

राजधानी में जगह की कमी समाधि स्थल नहीं बनाए जा सकते

दिसंबर 2004 में राव की मृत्यु हो गई। कांग्रेस तब तक केंद्र में सत्ता में वापस आ गई थी। सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष थीं। राव की मृत्यु के एक दिन बाद, शव को नई दिल्ली के अकबर रोड पर कांग्रेस मुख्यालय के द्वार पर लाया गया। लेकिन राव के पार्थिव शरीर को श्रद्धांजलि देने के लिए अंदर नहीं जाने दिया गया। उनके पार्थिव शरीर को एआईसीसी के गेट के बाहर फुटपाथ पर रखा गया था। इस बात की पुष्टि वरिष्ठ नेता मार्गरेट अल्वा ने अपनी आत्मकथा Courage & Commitment में की थी, जो 2016 में प्रकाशित हुई। तब कांग्रेस का बचाव करते हुए यह तर्क दिया गया था कि राव का शरीर इतना भारी था कि उसे गन कैरेज से उठाकर कांग्रेस मुख्यालय के अंदर रखना मुश्किल था। परिजनों की इच्छा का हवाला देकर शव को हैदराबाद ले जाया गया।  पूर्व प्रधानमंत्री होने के नाते राव का समाधि स्थल दिल्ली में होना चाहिए था। लेकिन यूपीए सरकार ने फैसला किया कि राजधानी में जगह की कमी है और अब यहां समाधिस्थल नहीं बनाए जा सकते।  इस फैसले से साफ था कि कांग्रेस अपने ही पूर्व अध्यक्ष और प्रधानमंत्री के साथ कोई जुड़ाव नहीं रखना चाहती थी। विडम्बना तो यह थी कि संजय गांधी जो कभी भी किसी भी राजपद पर नहीं रहे, की समाधि राजघाट परिसर में बनी। केवल पांच महीने रहे प्रधान मंत्री, जो लोकसभा में बैठे ही नहीं, (चरण सिंह) के लिये किसान घाट बन गया। सात माह कांग्रेस के सहारे प्रधानमंत्री रहे चंद्रशेखर सिंह का भी एकता स्थल पर अंतिम संस्कार किया गया। मगर सम्पूर्ण पांच साल की अवधि तक प्रधानमंत्री रहे पीवी नरसिम्हा राव का शव सोनिया गांधी ने सीधे हैदराबाद रवाना करा दिया था। दिल्ली में उनके नाम कोई स्मारक नहीं, कोई गली नहीं।

बीजेपी के नरसिम्हा राव

अक्टूबर, 2014 में तब केंद्र सरकार में सहयोगी दल तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) ने एक प्रस्ताव पारित कर सरकार से मांग की थी कि नई दिल्ली में पीवी नरसिम्हा राव का समाधि स्थल बनाया जाए। इसके बाद तत्कालीन केंद्रीय शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू ने इससे संबंधित प्रस्ताव मंत्रिपरिषद के सामने रखा जिसके बाद राष्ट्रीय राजधानी में पूर्व प्रधानमंत्री के नाम पर भी एक स्मृतिस्थल बन गया है।

-अभिनय आकाश 

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