4 पर चली चर्चा, एक पर बनी सहमति, फाइल हुआ नए उपराष्ट्रपति का नाम! बीजेपी के लिए साबित होंगे दूसरे एपीजे अब्दुल कलाम

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब मालदीव और ब्रिटेन के दौरे से वापस लौटेंगे। उस नाम पर आधिकारिक मुहर लग जाएगी। जगदीप धनखड़ ने अपने मन से इस्तीफा नहीं दिया। कोई स्वास्थ्य कारण नहीं थे बल्कि मामला कुछ और ही था। पीएम मोदी के नेतृत्व में भाजपा के कई बड़े नेताओं के साथ बैठक हुई। नामों के ऊपर चर्चा हुई।
10 जून, 2002 की सुबह अवुल पकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम एना यूनिवर्सिटी के कैंपस के किसी भी दूसरी खूबसूरत सुबहों जैसी ही थी, जहां अपनी क्लास लेकर लौट रहे थे। तभी एना यूनिवर्सिटी के वीसी प्रोफेसर ए कलानिधि भागते हुए उनके पास आए। कहा कि सुबह से कई बार ऑफिस की घंटी बजी और कोई आपसे बात करना चाहता है। जब मैं उनके साथ उनके दफ्तर पहुंचा तो उस वक्त भी घंटी बज रही थी और फ़ोन उठाते ही सामने से आवाज आई - प्रधानमंत्री आपसे बात करना चाहते हैं। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने हालचाल लेने के बाद डॉ एपीजे अब्दुल कलाम से कहा मैं एक पार्टी मीटिंग से लौट रहा हूं जहां हम सभी ने मिलकर ये फैसला लिया है कि देश को एक राष्ट्रपति के रूप में आपकी जरूरत है। मुझे आज रात घोषणा करनी और आपकी तरफ से सिर्फ एक हाँ या ना की आवश्यकता है। अटल बिहारी वाजपेयी ने डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का जवाब सुनने के बाद तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से बात की। सोनिया गांधी ने बस इतना पूछा कि क्या कलाम की उम्मीदवारी फाइनल है? इसके बाद सोनिया गांधी ने अपनी पार्टी और सहयोगी दलों से बातचीत की और 17 जून 2002 को डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की राष्ट्रपति उम्मीदवारी को समर्थन देने की घोषणा कर दी। न सब के बावजूद 18 जुलाई 2002 को डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल की और 25 जुलाई, 2007 तक भारत के राष्ट्रपति रहे। उस वक्त बीजेपी ने एक ऐसा मास्टर स्ट्रोक खेला था जिससे विपक्ष भी चारों खाने चित हो गया था और उसे समर्थन के अलावा कुछ सूझा ही नहीं था। लेकिन इस वक्त देश की राजनीति में हलचल तेज है और वजह है कि भारत के उपराष्ट्रपति पद का खाली होना। जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे ने न सिर्फ सभी को चौंकाया है बल्कि दिल्ली की सत्ता के गलियारों में एक नई दौड़ की शुरुआत भी कर दी है। अब हर किसी की नजर उस कुर्सी पर है। हर किसी के मन में यही सवाल है कि देश का अगला उपराष्ट्रपति कौन होगा। संविधान के अनुच्छेद 68 के मुताबिक नया उपराष्ट्रपति अगले छह महीनों में चुना जाना अनिवार्य है। लेकिन ये मोदी सरकार है जहां फैसले देर से नहीं समय से पहले होते हैं। चुनाव आयोग ने उपराष्ट्रपति चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है और अगले 72 घंटों में चुनाव शेड्यूल की घोषणा भी की जा सकती है। संभावना है कि अगस्त के अंत तक देश को नया उपराष्ट्रपति मिल जाएगा और यहीं से विपक्ष की धड़कने बढ़ चुकी है। चार नामों पर चर्चा चल रही थी और एक नाम को लेकर सहमति लगभग बन गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब मालदीव और ब्रिटेन के दौरे से वापस लौटेंगे। उस नाम पर आधिकारिक मुहर लग जाएगी। जगदीप धनखड़ ने अपने मन से इस्तीफा नहीं दिया। कोई स्वास्थ्य कारण नहीं थे बल्कि मामला कुछ और ही था। पीएम मोदी के नेतृत्व में भाजपा के कई बड़े नेताओं के साथ बैठक हुई। नामों के ऊपर चर्चा हुई।
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किन नामों पर हुई चर्चा
सबसे पहला और बड़ा नाम जिस पर चर्चा हुई कि राजनाथ सिंह को उपराष्ट्रपति बनाया जाए। लेकिन भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने कहा कि इसकी संभावना नहीं है क्योंकि पिछले बार भी उन्हें कहा गया था कि आप उपराष्ट्रपति बन सकते हैं। उन्होंने साफ मना कर दिया था। वे स्वयं भारत के रक्षा मंत्री हैं और उन्होंने उपराष्ट्रपति पद को ग्रहण करने से मना कर दिया था। इस बार इसकी संभावना बिल्कुल न के बराबर है। दूसरा नाम जिस पर चर्चा हुई कि जेपी नड्डा बन सकते हैं। बड़ा फेमस उनका बीते दिनों का बयान रहा कि जो मैं चाहूंगा वही रिकॉर्ड पर जाएगा। लेकिन जेपी नड्डा का नाम इसलिए नहीं हो सकता है क्योंकि जिस तरह से अचानक इलेक्शन कमीशन एक्टिव हुआ। जेपी नड्डा मंत्री हैं और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। दो मंत्रालय को देख रहे हैं। ऐसे में उनकी संभावना भी कम लग रही है। बीजेपी के एक नेता ने बताया कि इसकी दूर दूर तक कोई संभावना नहीं है। एक और बात चल रही थी कि क्या जेडीयू की तरफ से उपसभापति हरिवंश को उपराष्ट्रपति बनाया जा सकता है। इसके अलावा नीतीश कुमार के नाम को लेकर भी चर्चा चली।
किसको लेकर बनी सहमति
लेकिन तमाम तैरतों नामों के बीच अगला राष्ट्रपति बिहार से ही होने वाला है और उनका नाम आरिफ मोहम्मद खान है। वो वर्तमान में बिहार के राज्यपाल है। एक ऐसा नाम जिसके ऊपर भाजपा से लेकर आरएएस तक इस बात पर सहमत हैं। ये भारतीय जनता पार्टी के लिए दूसरे एपीजे अब्दुल कलाम हो सकते हैं। बहुत सारे सवाल सेक्युलर पार्टियों की ओर से उठाए जाते हैं। ऐसे में आपके पास उपराष्ट्रपति के रूप में ऐसा चेहरा सामने आ जाएगा तो चीजें बिल्कुल बदल जाएंगी।
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क्या उनकी दावेदारी को मजबूत बनाती है
उपराष्ट्रपति का पद बेहद सम्मानजनक पद होता है। धनखड़ साहब एक पढ़े लिखे और वरिष्ठ व्यक्ति थे। काम ही ऐसा होता है जिसमें योग्य और विद्दान व्यक्ति की जरूरत होती है। आरिफ मोहम्मद खान दोनों ही चीजों में क्वालिफाई करते हैं। राजनीतिक तौर पर भी वो सबसे मुफीद नाम हो सकते हैं। अलीगढ़ विश्वविद्यालय के वाइस चासंलर और केंद्र में मंत्री रह चुके हैं। केरल में राज्यपाल भी रहे और फिर उन्हें बिहार सौंपा गया। संविधान की जानकारी आरिफ मोहम्मद खान को इस कदर है कि इनके मुकाबले संसद के अंदर बहुत कम ही लोग होंगे जो इनसे संविधान के अंदर बहस जीत पाएंगे। इनकी खासियत ये है कि वो एक प्रोग्रेसिव और थिकिंग मुस्लिम चेहरा हैं। वो रूढिवाढ़ी और कट्टरपंथ के खिलाफ रहते हैं। हिंदुस्तान की सेच और कल्चर के हमेशा समर्थक रहे हैं।
तीन तलाक को लेकर राजीव गांधी से भिड़ गए थे
ये 1986 की बात है। मां इंदिरा गांधी की मौत के बाद राजीव गांधी राजनीतिक के दांव-पेंच सीख रहे थे। इसी बीच मध्य प्रदेश के इंदौर की शाह बानो का केस चर्चा में आया. शाह बानो के शौहर मशहूर वकील मोहम्मद अहमद खान ने 43 साल साथ रहने के बाद तीन तलाक दे दिया। शाह बानो पांच बच्चें के साथ घर से निकाल दी गईं। शादी के वक्त तय हुई मेहर की रकम तो अहम खान ने लौटा दी, लेकिन शाह बानो हर महीने गुजारा भत्ता चाहती थीं। उनके सामने कोर्ट जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। कोर्ट ने फैसला शाह बानो के पक्ष में सुनाया और अहमद खान को 500 रुपए प्रति महीने गुजारा भत्ता देने का फैसला सुना दिया। शाह बानो की इस पहल ने बाकी मुस्लिम महिलाओं के लिए कोर्ट जाने का रास्ता खोल दिया, जिससे मुस्लिम समाज के पुरुष बेहद नाराज हुए। इसी केस पर राजीव गांधी की सरकार ने अपना प्रोगरेसिव चेहरा दिखाया था। शाहबानो केस में आरिफ मोहम्मद ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन किया था। लेकिन, राजीव गांधी ने कानून लाकर फैसले को पलट दिया था। संसद में आरिफ मोहम्मद ने जमकर विरोध किया था और मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। गृह राज्य मंत्री आरिफ मोहम्मद खान को आगे किया था। खान ने अपने विचारों को लोकसभा में खुलकर रखा था। आरिफ मोहम्मद ने मौलाना आजाद के विचारों से अपने भाषण की शुरूआत करते हुए कहा था कि कुरान के अनुसार किसी भी हालत में तालकशुदा औरत की उचित व्यवस्था की ही जानी चाहिए। हम दबे हुए लोगों को ऊपर उठाकर ही कह सकेंगे कि हमने इस्लामिक सिद्धांतों का पालन किया है और उनके साथ न्याय किया है।
मुस्लिम कट्टपंथ के खिलाफ एक प्रखर आवाज
वर्तमान में वक्फ का मसला चल रहा है। वो वक्फ में बदलाव के पक्ष में हैं। वक्फ के खिलाफ उन्होंने बड़े तार्किक बयान भी बीते दिनों दिए कि वक्फ में बदलाव की क्यों आवश्यकता है। मतलब आइडियोलॉजिकल रूप से तो मुफीद हैं ही वहीं राजनीतिक रूप से भी एकदम फिट बैठ रहे हैं। सेक्युलर पार्टियों को भी बड़ा झटका लग जाएगा। कलाम साहब जब चुनाव में आए बहुत सारे लोगों की राय बदल गई और उन्हें मजबूरन वोट करना पड़ा। इस नाम के आते ही ममता, कांग्रेस के अंदर भी और राजद के अंदर भी दो मत दिखेंगे। एक तरह का मैसेज भी चला जाएगा। सरकार की गरिमा भी बढ़ेगी। एंटी मुस्लिम छवि बानने की कोशिश को भी धक्का लगेगा। जिहाद, कट्टरपंथ के खिलाफ खुलकर बोलने वाले विद्नान और बहुत बड़े स्कॉलर का उपराष्ट्रपति बनना भाजपा के लिए सबसे बेहतर रहेगा। सूत्रों से हमें मिली जानकारी के अनुसार बताया जा रहा है कि इनके नाम पर मुहर लग गई है और बस पीएम मोदी के वापस लौटने पर इनके नाम की घोषणा कर दी जाएगी।
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