सीधे प्रधानमंत्री से सवाल पूछने की हिम्मत रखने वाला किसान नेता, जिसके दरवाजे तक आती थी सरकार

Mahendra Singh Tikait
अभिनय आकाश । Jan 4 2021 5:47PM

चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत एक ऐसे किसान नेता के तौर पर जाने जाते हैं जिसने देश के उस सबसे शोषित वर्ग को जुबान दी जो अपनी बात कह पाने में भी समर्थ नहीं था। देश का अन्नदाता किसान चौधरी टिकैत के नेतृत्व में उठ खड़ा हुआ और अपने हक के लिए लड़ने लगा।

बचपन में स्कूल की किताबों में आपने पढ़ा होगा कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। लेकिन इस कृषि प्रधान देश के किसान नेता का नाम बताने के लिए कहा जाए तो कुछ देर के लिए सोच में पड़ जाएंगे। चौधरी चरण सिंह वो नेता जिसने खेती-किसानों के मुद्दे को सरकारी फाइलों और गली-मोहल्ले से उठाकर एक राष्ट्रीय आंदोलन में तब्दिल कर दिया। एक राजनीतिज्ञ, किसान नेता, पार्टी के अध्यक्ष और एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री का नाम ही नहीं था। चरण सिंह एक विचारधारा का भी नाम था। देश में तीन कृषि कानूनों के खिलाफ घमासान जारी है और इसके समाधान के लिए सरकार और किसानों के बीच मंथन का दौर भी चल रहा है। एक नाम जो इन दिनों किसान आंदोलन में मुखर तौर पर सामने आया है वो नाम है भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत का। जिनकी पहचान ऐसे व्यवहारिक नेता की है जो धरना प्रदर्शनों के साथ ही किसानों के व्यवहारिक हितों की भी बात करते हैं। राकेश टिकैत बेटे हैं एक ऐसे किसान नेता कि जिसने कभी चुनाव ही नहीं लड़ा। वो कभी सरकारों के पास भी नहीं गए बल्कि सरकारें खुद चलकर उसके पास आती थी। जिसके नेतृत्व में न सिर्फ किसान एक ही झंडे के नीचे आने को राजी होते थे। बल्कि जिसके हुक्के की एक गुड़गुड़ाहट से दिल्ली के हुक्मरानों का सिंहासन भी डोल जाया करता था। वो नेता जो किसानों की हित के लिए सत्ता की आंखों में आंखे डालकर सवाल पूछने की हिम्मत रखता था।जिसने धारा 144 लगने के बावजूद कलेक्टरेट में घुसकर माइक पर दहाड़ते हुए कहा था- कलेक्टर हमारा मालिक नहीं है और अगर उसे हमारी आवाज से दिक्कत है तो अपना दफ्तर छोड़कर बाहर चला जाए। आज उसी किसान नेता की कहानी सुनाऊंगा जिसका नाम है महेंद्र सिंह टिकैत।

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जब कभी भी किसानों के आंदोलन का जिक्र होता है तो किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत की बात भी जरूर होती है। गंवई ठेठ अंदाज और किसानों से सीधा संवाद वो भी किसी मंच पर नहीं बल्कि किसानों के बीच हुक्का गुड़गुड़ाते हुए। कहा जाता था कि वो सरकार के पास नहीं बल्कि सरकार उनके दरवाजे तक आती थी। एक बार तो आलम ऐसा भी हुआ था कि उनके नेतृत्व में हुए आंदोलन की वजह से सत्तारूढ़ दल को अपनी रैली की जगह बदलनी पड़ी थी। 

चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत का जन्म उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर के कस्बा सिसौली में हुआ था। 6 अक्टूबर 1935 को एक किसान परिवार में जन्में महेंद्र सिंह के पिता चौहल सिंह टिकैत बालियान खाप के चौधरी थे। महेंद्र सिंह टिकैत ने गांव के ही स्कूल से सातवीं कक्षा तक पढ़ाई की। वो सिर्फ आठ वर्ष के ही थे जब उनके पिता का देहांत हो गया था। लोगों को अंदाजा भी नहीं था कि किसान नेता चौधरी चरण सिंह की कमी पूरी करने के लिए एक किसान नेता ने जन्म ले लिया है। पिता की मृत्यु के बाद आठ साल की उम्र में बालियान खाप की जिम्मेदारी संभाली। चौधरी टिकैत ने बड़ी सर्व खाप पंचायतों के जरिये दहेज प्रथा, मृत्यु भोज, नशाखोरी, भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक कुरीतियां नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। 

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चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत एक ऐसे किसान नेता के तौर पर जाने जाते हैं जिसने देश के उस सबसे शोषित वर्ग को जुबान दी जो अपनी बात कह पाने में भी समर्थ नहीं था। देश का अन्नदाता किसान चौधरी टिकैत के नेतृत्व में उठ खड़ा हुआ और अपने हक के लिए लड़ने लगा। 1986 में जब बिजली, सिंचाई और फसलों की कीमत को लेकर पूरे उत्तर प्रदेश के किसान आंदोलित थे तभी किसान संगठन की बड़ी जरूरत महसूस की गई। 17 अक्टूबर 1986 को सर्वसम्मति से चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत को भारतीय किसान यूनियन का अध्यक्ष चुना। किसान बिजली विभाग की मनमानी से परेशान थे जिसके बाद 27 जनवरी 1987 को करमूखेड़ी बिजली घर पर धरना शुरू किया। धरना खत्म कराने के लिए पुलिस ने गोली चलाई। इस घटना ने देश के किसानों को 

करमूखेड़ी में किसानों की भीड़ पर हुई गोलीबारी में दो किसान अकबर और जयपाल सिंह की मौत ने चौधरी टिकैत के अंदर एक ज्वालामुखी को जन्म दिया। एक मार्च 1987 को महारैली में टिकैत की हुंकार देश ही नहीं, विदेशों में भी सुनाई दी। किसानों के बीच बाबा टिकैत के नाम से मशहूर इस नेता की किसानों तक पहुंच ऐसी थी कि एक आवाज में लाखों किसान एकत्रित हो जाया करते थे। 25 अक्टूबर 1988 को महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में दिल्ली के बोट क्लब में किसानों की रैली की तैयारी थी। उस वक्त 30 अक्टूबर यानी इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि को लेकर तैयारियां तेज थी। किसान उसी मंच पर बैठ गए।

तब चौधरी टिकैत ने राजीव गांधी सरकार को चेतावनी देते हुए कहा खा कि सरकार उनकी बात नहीं सुनी इसलिए वे यहां आए हैं। करीब 14 राज्यों के पांच लाख किसानों ने दिल्ली में डेरा जमाया। विजय चौक से लेकर इंडिया गेट तक पर किसानों का हुजूम नजर आया। किसानों ने अपने ट्रैक्टर और बैल गाड़ियां बोट क्लब में खड़े कर दिए। उस वक्त टिकैत के नेतृत्व में राष्ट्रपति और लोकसभा अध्यक्ष से भेंट की लेकिन बात नहीं बन सकी। प्रदर्शनकारी किसानों को हटाने के इरादे से 30 अक्टूबर को पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया। किसान आंदोलन के चलते कांग्रेस को अपने रैली का स्थान बोट क्लब के स्थान पर लालकिला करना पड़ा था। 

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पीएम से पूछा- क्या आपने एक करोड़ रूपया लिया था?

देश के चर्चित घोटालों में से एक हर्षद मेहता कांड जिसने राजनीतिक गलियारों में भूचाल ला दिया था। हर्षद मेहता ने 1993 में पूर्व प्रधानमंत्री और उस वक्त कांग्रेस के अध्यक्ष पीवी नरसिम्हा राव पर केस से बचाने के लिए 1 करोड़ घूस लेने का आरोप लगाया था। उसने दावा किया कि पीएम को उसने एक सूटकेस में घूस की रकम दी थी। महेंद्र सिंह टिकैत उस वक्त किसानों की समस्या को लेकर उसी दौरान प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से मिले। इस दौरान चौधरी टिकैत ने प्रधानमंत्री राव से पूछ लिया कि क्या आपने एक करोड़ रुपया लिया था? सीधे प्रधानमंत्री से इस तरह के सवाल करने की हिम्मत महेंद्र टिकैत ही दिखा सकते थे। नरसिम्हा राव ने जवाब में कहा कि क्या आप भी ऐसा ही सोचते हैं? दरअसल, प्रधानमंत्री राव से टिकैत की मुलाकात मुलायम सिंह सरकार के रवैये को लेकर हुई थी। इस दौरान टिकैत ने हर्षद मेहता का नाम लेकर कहा था कि पांच हजार करोड़ का घोटाला करके और कई मंत्री भी घपला कर बैठे हैं। लेकिन सरकार उनसे वसूली नहीं कर पा रही और किसानों को 200 रुपए के लिए जेल भेजा जा रहा है। 

मायावती और टिकैत विवाद

साल 2009 में चौधरी टिकैत बिजनौर में एक सभा कर रहे थे। इस दौरान उनपर तत्कालीन सीएम मायावती पर जातिसूचक टिप्पणी के आरोप लगे। जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार करने के लिए सिसौली गांव में पुलिस और आरएएफ ने घेराबंदी कर दी। लेकिन किसानों के जबरदस्त विरोध की वजह से पुलिस महेंद्र सिंह टिकैत तक पहुंच ही नहीं पाई।15 मई 2011 को 76 साल की उम्र में महेंद्र सिंह टिकैत का निधन हो गया। लेकिन किसान आंदलन आज भी उनकी तरफ ही देखता है। -अभिनय आकाश

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