जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा...एक जगह अगर जमा हो गए तीनों- अमर, अकबर, एंथोनी

अमेरिका से भारत की मित्रता या गठबंधन खत्म तो नहीं हो सकता। लेकिन अमेरिका को भारत ने कुछ चीजें स्पष्ट कर दी है। सबसे पहले तो हमारे लिए हमारा राष्ट्रहित सर्वोपरि है और भारत किसी भी दबाव के आगे झुकने वाला देश नहीं है।
हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनूर मालूम है, जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा। भारत ने अमेरिका को पैगाम साफ साफ दे दिया है। सवाल है कि अमेरिका बार बार अमेरिका के हुनर का इम्तिहान क्यों ले रहा है? इम्तिहान कुछ ऐसा कि जो जवाब मिला है वो पचा नहीं पाएंगे। डोनाल्ड ट्रंप अब भारत पर टैरिफ लगा रहे हैं। रूस से तेल क्यों लेते हो ये कहकर आंखें दिखा रहे हैं। नैतिकता का पाठ पढ़ा रहे हैं। एक बार चाणक्य ने विदेशी संबंधों को लेकर कहा था कि किसी भी देश को ऐसी मित्रता या गठबंधन तुरंत समाप्त कर देना चाहिए। जिससे भविष्य में उसे नुकसान हो। अमेरिका से भारत की मित्रता या गठबंधन खत्म तो नहीं हो सकता। लेकिन अमेरिका को भारत ने कुछ चीजें स्पष्ट कर दी है। सबसे पहले तो हमारे लिए हमारा राष्ट्रहित सर्वोपरि है और भारत किसी भी दबाव के आगे झुकने वाला देश नहीं है।
ट्रंप का टैरिफ बम
4 अगस्त को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ट्रूथ सोशल पर एक पोस्ट शेयर किया। फिर से एक धमकी देते हुए रूस से तेल खरीद को लेकर भारत पर हमला बोला। कहा भारत मोटा मुनाफा कमा रहा है। इसलिए हम उस पर लगे टैरिफ को बढ़ाएंगे। फिर 5 अगस्त को खबर आई कि 24 घंटे बाद वो भारत पर टैरिफ बढ़ाने वाले हैं। लेकिन चर्चा तो भारत के जवाब की सबसे ज्यादा है। 4 अगस्त को भारत के विदेश मंत्रालय ने लिखा कि हम रूस से तेल राष्ट्रीय हित में खरीद रहे हैं। हम जनता को सस्ता ईंधन देना चाहते हैं। रूस यूक्रेन युद्ध के समय अमेरिका ने खुद भारत को ऐसा करने के लिए प्रत्योसाहित किया था ताकी अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा बाजार स्थिर रहे। भारत ने याद दिलाया कि अमेरिका और यूरोपियन यूनियन अब भी रूस से व्यापार जारी रखे हुए है। यूरोप ने रूस से 2024 में 16.5 मिनियन टन एलएनजी लिया। कुल 67.5 बिलियन यूरो का सामान खरीदा। अमेरिका भी पीछे नहीं है वो भी रूस से यूरोनियम, पैलेडियम, खाद आज भी खरीद रहा है। भारत पर लग रहे आरोप नायाजय और बेमतलब हैं। अपने हितों की रक्षा के लिए जो जरूरी होगा वो किया जाएगा।
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स्ट्रैटर्जी बदल रचने लगे मानवता का ढोंग
भारत पाकिस्तान के युद्ध के बाद जिस तरह से ट्रंप भारत के आत्मसम्मान को भारत की मजबूरी समझ रहे थे। जिस तरह से भारत को बेइज्जत करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे थे। भारत पर टैक्स का बोझ लाद रहे थे। नोबेल प्राइज की खीज दुनिया के सामने जता रहे थे। भारत ने स्पष्ट कर दिया कि ये नहीं चलेगा। डोनाल्ड ट्रंप को लगता था कि शायद भारत उनकी धमकियों से डरकर अपने पुराने दोस्त रूस से तेल नहीं खरीदेगा। टीवी चैनल पर डोनाल्ड ट्रंप ने कहा भी कि भारत देखिए हमशे डर गया। लेकिन भारत ने इन धमकियों को अपनी चप्पल की नोक पर रखते हुए बताया कि रूस से तेल खरीदा जा रहा है तो उनकी हवा निकल गई। सारे प्लान फेल होते देख ट्रंप ने फिर अपनी स्ट्रैटर्जी बदली। मानवता का ढोंग रचते हुए यूक्रेन में हो रही मौतों के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराने लगे।
फायदा हमेशा ताकतवर का ही रहता
सबसे पहले इस बात को समझ लें जिसे शायद डोनाल्ड ट्रंप भूल गए हैं कि अमेरिका की ही पहल थी कि दुनियाभर के देशों को अपने हितों की हिफाजत करने की छूट मिली। कोई भी देश किसी भी देश के साथ व्यापार कर सकता था। जहां से सस्ता मिले वहां से खरीदों ऐसे बाजार खुला हुआ था। फ्री मार्केट का कंसेप्ट कहा गया और पिछले सात दशकों में अमेरिका इसका झंडाबदार रहा है। लेकिन ट्रंप अचानक इसे पलटना चाहते हैं। पहली सदी से ही दुनिया के अलग अलग हिस्सों के बीच व्यापार शुरू हो चुका था। सिल्क रूट के जरिए चीन का रेशन रोम पहुंचने लगा था। लेकिन इसमें एक समस्या ये थी कि व्यापार तभी फलता फूलता जब कोई ताकत उसकी हिफाजत करती। मंगोल, इस्लामिक सौदागरों से लेकर औपनिवेशिक काल तक चला। रास्ते बदले, सामान भी बदले लेकिन फायदा हमेशा ताककवर का ही रहता था। वही तय करता था कि कौन किससे व्यापार करेगा। किस कीमत पर करेगा। ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति के बाद 20वीं सदी में युद्ध छिड़ा और फिर अमेरिका में एक बिल पास हुआ। जिससे अमेरिका ने ट्रेड पर भारी टैक्स लगाए। फिर जो हुआ उसे हम द ग्रेट डिप्रेशन के नाम से जानते हैं।
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ट्रंप का फिल्प-फ्लॉप वाला रवैया
नोबेल शांति पुरस्कार चाहिए और इसके लिए वो कुछ भी करने के लिए तैयार हैं। अब जब उन्हें दूसरी बार अमेरिका को लीड करने का मौका मिला है तो वो चाहते हैं कि वो अमेरिका के महानतम राष्ट्रपति बन जाएं और इस बात की उन्हें बहुत जल्दबाजी है। वो जल्दी में कुछ ऐसा करना चाहते हैं कि अमेरिका के लोग और पूरी दुनिया के लोग ये मान लें कि वो सबसे शक्तिशाली व्यक्ति हैं और उन जैसा अमेरिका का कोई राष्ट्रपति कभी हुआ नहीं। वो अमेरिका को फिर से महान बनाने की कोशिश कर रहे हैं। महान बनाने के लिए उनके पास समय बहुत ही कम है। ट्रंप रूस के खिलाफ बयान भी देते हैं और रूस के साथ व्यापार भी करते हैं। रूस से सामान भी खरीदते हैं। चीन पर पहले 145 % का टैरिफ लगाते हैं और बाद में उनसे डील करके इस टैरिफ को घटाकर 30 % कर देते हैं। ट्रंप के इस दांव पेंच को भारत अब अच्छे से समझ चुका है।
रूस से तेल खरीदना बंद नहीं करेगा भारत
भारत अपना 85% तेल आयात करता है। इसका 35% फिलहाल वह रूस से ले रहा है। सोचिए, आज का भारत किस पर आश्रित है? यह उस मुल्क पर आश्रित है, जो आपकी शर्तों पर तेल मुहैया करवाता है। पैसे भी आपकी ही करंसी में लेता है। जहां तक हथियारों का सवाल है, हमने हमेशा रूस की उंगली थामी है। क्यों? क्योंकि वह उसकी तकनीक भी साझा करता है। अमेरिका की तरह इससे इनकार नहीं करता। ऑपरेशन सिंदूर में हम S400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की तारीफ कर रहे थे ना, यह रूस से ही भारत को मिला है। फिर मिसाइल हों, टैंक हों, मेड इन इंडिया में भारत के साथ कंधे से कंधा मिला कर रूस खड़ा है। जहां तक रूस से तेल खरीदने का सवाल है, भारत इससे समझौता नहीं करेगा। रूस से तेल भी आएगा और हथियार भी। भारत पर सैंक्शंस तब लगेंगे जब पहले रूस पर नए सैंक्शंस लगें। अभी ट्रंप डांवाडोल हैं। एक-आध दिन में उनके विशेष दूत स्टीव विटकॉफ मॉस्को में होंगे। पर्दे के पीछे दोनों महाशक्तियां एक दूसरे से उलझना नहीं चाहतीं।
क्या रूस-चीन-भारत मिलकर बनाएंगे महागठबंधन
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप के बयानों ने भारत को ठेस पहुंचाई है और इससे भारत को अपनी रणनीति पर दोबारा सोचने पर मजबूर कर सकता है। अगर ऐसा होता है, तो इसका मतलब भारत की विदेश नीति में बड़ा बदलाव होगा। पूर्व विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर ने एक बार कहा था-अमेरिका से दुश्मनी भारी होती है और दोस्ती जानलेवा। भारत के लिए चीन से संबंधों में सुधार अच्छा कदम है। विश्व के मानचित्र पर एक नजर डालें तो पता चल जाएगा कि रूस, चीन और भारत कितने बड़े देश हैं। ये अगर एक साथ हों, तो एक नए विश्व की संरचना संभव है। ज्यादातर विदेश नीति जानकार मानते हैं कि भारत-अमेरिका के रिश्ते सिर्फ ट्रंप के कार्यकाल तक सीमित नहीं हैं। ये रिश्ते सालों में बने हैं और दोनों देशों के बीच गहरी रणनीतिक साझेदारी है। चीन के साथ अच्छे संबंध ठीक हैं, लेकिन चीन भारत का मुख्य रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी बना रहेगा। हालांकि ट्रम्प की टैरिफ नीति और भारत, रूस, और चीन के संभावित गठजोड़ का वैश्विक शक्ति संतुलन पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। यदि यह गठजोड़ सफल होता है, तो यह वैश्विक व्यापार और भू-राजनीति में अमेरिका के एकध्रुवीय वर्चस्व को चुनौती दे सकता है। ब्रिक्स और एससीओ जैसे मंच इस गठजोड़ को और मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। भारत के लिए यह एक अवसर है कि वह वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को मजबूत करे।
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