Saudi-Pak डील के पीछे ट्रंप? कैसे फंस गया पूरा मामला, भारत-ईरान ने पलट दी बाजी

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अभिनय आकाश । Sep 19 2025 2:29PM

आखिर सऊदी ऐसा कर क्यों रहा है। भारत से रिश्ते ताक पर रख कर पाकिस्तान को पालने का क्या मतलब है? सबसे दिलचस्प सवाल ये है कि क्या अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी इस डील के हिमायती हैं।

इजरायल ने हमास की लीडरशिप को खत्म करने के लिए कतर की राजधानी दोहा में बम गिरा दिए तो पूछा जाने लगा कि बात बात पर उफा की दुहाई देने वाले देश उस वक्त कहां थे? सऊदी अरब से तो कतर की नहीं बनती। लेकिन क्या यूएई के फाइटर जेट्स ने इजरायली जेट्स का पीछा किया? इसी माहौल में मुस्लिम नाटो वाला शगूफा भी ईरान की तरफ से छेड़ा गया। मतलब कि अरब और मुस्लिम देशों का एक सैनिक संगठन जिसमें एक पर हमला हुआ तो सारे टूट पड़ेंगे वाली कसम टाइप। अभी ये चर्चा चल रही ही थी कि कि क्यों इस थ्योरी का प्रैक्टिकल मुस्किल है। तभी एक सरप्राइज मिल गया। मैक्यावली ने कहा था कि हम अक्सर एक गलती करते हैं। समुंदर जब शांत हो तब तूफान का अंदाजा नहीं लगाते। आज बात उसी तूफान की करेंगे। दरअसल,17 सितंबर को सऊदी अरब और पाकिस्तान ने एक नाटो नुमा डिफेंस पैक्ट साइन किया है। जिसमें लिखा है कि हम पर हमला मतलब तुम पर हमला और तुम पर हमला मतलब हम पर हमला। इस वादे ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। मान लीजिए कि भारत और पाकिस्तान के बीच फिर जंग भड़ गई या फिर ऑपरेशन सिंदूर जैसे हालात बन गए तो क्या सऊदी अरब भी अपनी ताकत भारत के खिलाफ झोक देगा। चीन और तुर्की तो पीछे से पाकिस्तान के साथ थे ही। क्या अब सऊदी अरब का खुला समर्थन भी उसे मिल जाएगा। क्या सऊदी अब पाकिस्तान की सेना पर पैसे लगाएगा। वही पैसा पाकिस्तान के नापाक मंसबों पर खर्चा होगा या फिर ये पाकिस्तान का ख्वाब है। लेकिन अगर ये सच है तो आखिर सऊदी ऐसा कर क्यों रहा है। भारत से रिश्ते ताक पर रख कर पाकिस्तान को पालने का क्या मतलब है? सबसे दिलचस्प सवाल ये है कि क्या अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी इस डील के हिमायती हैं। 

सऊदी-पाक में नाटो वाला समझौता

सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हुआ डिफेंस अग्रीमेंट ये भी कहता है कि अगर एक देश पर हमला हुआ तो दूसरा देश उसे खुद पर भी हमला मानेगा। कुछ वैसा ही समझौता जैसा नाटो के सदस्य देशों के बीच है। भले कहा जा रहा है कि ये समझौता पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच लंबे ऐतिहासिक रिश्तों का परिणाम है। लेकिन भारत के लिए ये डेवलपमेंट चिंता बढ़ाने वाला है। पाकिस्तान और सऊदी अरब की ओर से फिलहाल सैन्य करार के सभी प्रावधानों को सार्वजनिक नहीं किया गया है, लेकिन पाक द्वारा सऊदी को एटमी सुरक्षा देने के सवाल पर एक सऊदी अफसर ने दावा किया कि करार में सभी सैन्य विकल्पों का प्रयोग किया जा सकता है। पाक और सऊदी अरब का कहना है कि पिछले कुछ समय से दोनों देशों के बीच इस सैन्य करार के बारे में गहन विमर्श चल रहा था। अब डील को फाइनल किया गया है। पाक और सऊदी अरब का कहना है कि ये करार किसी भी तीसरे देश को मद्देनजर रखते हुए नहीं किया गया है।

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इस सैन्य डील का क्या होगा असर

सऊदी अरब इस डील से पश्चिम एशिया के सैन्य समीकरणों को बिगाड़ रहा है। सऊदी अपनी सुरक्षा को पाक को आउटसोर्स कर आग से खेलने का काम कर रहा है। इससे पाक आतंकियों को भारत के खिलाफ फिर सिर उठाने का मौका मिलेगा। रत के लिए ये सतर्कता बरतने का समय है। बड़ा सवाल है कि भारत यदि ऑपरेशन सिंदूर छेड़ता है तो सऊदी अरब क्या स्टैंड लेने वाला है। गेंद अब सऊदी अरब के पाले में रहने वाली है। डील कतर पर इजराइली हमले के कारण हुई  है। कतर असल में पश्चिम एशिया में सऊदी पाले में नहीं है। जबकि सऊदी और इजराइल लंबे समय से बैकडोर चैनल से संपर्क में हैं। सऊदी केवल इजराइल से फिलिस्तीन का हल चाहता है।

डील से पाक को या फिर सऊदी किसे ज्यादा फायदा

पाकिस्तान को सऊदी अरब से आर्थिक सहायता के साथ और भी ढेर सारी मदद मिलती रही है। लेकिन ये एग्रीमेंट इन दोनों के रिश्ते में एक नए आयाम को जन्म देता है। इस एअग्रीमेंट साथ सऊदी अरब ने अपने लिए डायरेक्ट न्यूक्लियर हथियार की उपलब्धता का रास्ता खोल दिया है। हालांकि ये भी सऊदी अरब ने साफ किया कि भारत के साथ उसके बहुत अच्छे रिश्ते हैं और आगे भी मजबूत रहेंगे। लेकिन भारत-पाक के रिश्तों का जो दौर चल रहा है उसमें आगे भी तकरार की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में सऊदी अरब का पक्ष किस तरह से होगा यह चिंता का विषय है। 

क्या ये डील इस्लामी नाटो की तैयारी है?

पाक और 22 अरब देश इस्लामी नाटो के विचार को आगे बढ़ा रहे हैं। इनमें पाकिस्तान ही ही दुनिया का एकमात्र परमाणु हथियार संपन्न देश है। लेकिन इस प्रस्तावित संगठन में नाटो जैसे एक प्रभुत्व वाला देश अमेरिका नहीं, इसलिए इस्लामी नाटो संभव नहीं। अमेरिका का इस डील पर क्या रुख रहेगा? सऊदी अरब पश्चिम एशिया में, जबकि पाक दक्षिण एशिया में अमेरिका का सबसे बड़ा व्यापार और रणनीतिक साझेदार है। अमेरिका बैलेंस ऑफ पावर के लिए ऐसी सैन्य डील को स्वीकार नहीं करेगा।

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अमेरिका का नजरिया क्या है

इस एग्रीमेंट के लिए अमेरिका को लूप में रखा गया होगा लेकिन इससे अमेरिका को कोई आपत्ति भी नहीं होगी। सऊदी से अमेरिका के रिश्ते अच्छे हैं और पाकिस्तान भी उनका मित्र है और इस बीच उनके रिश्ते फिर से मजबूत हुए हैं। यूएनजीए की मीटिंग से इतर ट्रंप शहबाज शरीफ और आसिम मुनीर से मुलाकात भी करने वाले हैं। उस दौरान भी इस डील को लेकर चर्चा हो सकती है। दूसरी तरफ अमेरिका की तरफ से डील को लेकर कोई आपत्ति दर्ज कराने वाला बयान भी नहीं आया है। 

ईरान ने बिगड़ा दिया पाक-सऊदी का गेम 

पाकिस्तान के साथ सऊदी ने जो डील की है वो ज्यादा दिन तक चलने वाली नहीं है। वैसे भी पाकिस्तान पर भरोसा करना बहुत मुश्किल है। ऐसा ईरान और इजरायल के बीच भीषण जंग के दौरान भी देखने को मिला था। ये पूरी दुनिया को पात है कि पाकिस्तान ने किस तरह से ईरान के साथ गद्दारी की थी। ईरान ने कई बार मुस्लिम देशों से अपील की थी कि वो इजरायल के खिलाफ आवाज उठाए और समर्थन दे। पाकिस्तान से भी ईरान को उम्मीद थी कि वो उसके साथ खुलकर खड़ा होगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बल्कि पाकिस्तान के फील्ड मार्शल आसिम मुनीर ने गद्दारी करते हुए ईरान के आर्मी चीफ मोहम्मद बघेरी की लोकेशन अमेरिका के साथ शेयर की। जिसके चलते इजरायली हमलों में जिनकी मौत हो गई। इसके अलावा अमेरिका ने ईरान के जिन तीन परमाणु अड्डों पर अटैक किया था, उसको लेकर दावा किया गया था कि अमेरिका ने पाकिस्तान के एयर स्पेस का इस्तेमाल किया था। यानी पाकिस्तान ने हमेशा दोहरा खेल खेला है। एक तरफ वो मुस्लिम देशों के साथ खड़ा दिखता है। दूसरी तरफ अमेरिका और दूसरे देशों से सैन्य और आर्थिक मजज लेता है। अब कहा जा रहा हैकि वैसा ही वो सऊदी के साथ भी करेगा। वहीं ईरान भी भारत का अच्छा खासा दोस्त है। अगर सऊदी किसी भी तरह से पाकिस्तान की मदद करेगा तो रास्ते में ही ईरान उसे रोकने का काम करेगा। 

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