जलती दिल्ली को मोदी के दबंग ने संभाल लिया

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अभिनय आकाश । Feb 28 2020 5:07PM

बीते दो दिनों से दिल्ली लगातार जल रही थी। ये आग किसने लगाई, क्यों लगाई इसे लेकर जितने ही सवाल उतने ही विचार सामने आ रहे हैं। लेकिन देश की राजधानी में आग लगाकर हिन्दू-मुसलमान करके सियासत की रोटियां सेंकते लोगों के साथ ही सत्ता पक्ष पर लगातार विपक्ष की तरफ से निशाने पर रहे।

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के पद पर आसीन अजीत कुमार डाभोल जिनका नाम सुनकर आतंकवादियों और उपद्रवियों के तो होश उड़ते ही हैं बल्कि रौबिले अंदाज की वजह से बड़े-बड़े मंत्री और अफसर भी सहमे रहते हैं। 7 जून 2018 की दोपहर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस के रोज गार्डन में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करने के बाद मुलाकात की और दोनों अपनी-अपनी तय प्रतिक्रियाओं के साथ अपने-अपने प्लेटफॉर्म पर खड़े थे। वहां मौजूद जनता से ट्रंप पहले मुखातिब हुए। उन्होंने कहा, “मुझे मीडिया, अमेरिका और भारत के लोगों को बताने में गर्व हो रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी और मैं सोशल मीडिया पर वैश्विक नेता हैं।” उनके इस बयान से लोगों को हंसी जरूर आई लेकिन बाद में उन्होंने असली कूटनीतिक बात शुरू की। जब ट्रंप असली बात की तरफ बढ़े- “माननीय प्रधानमंत्री मैं आपके साथ काम करने की राह देख रहा हूं ताकि हम अपने-अपने देशों के लिए नौकरियां पैदा कर पाएं”- तभी हवा के झोंके मोदी के पास पड़े कुछ पन्ने उड़ा ले गए। ऐसा देखते ही पहली कतार में लगी अपनी सीट से एक व्यक्ति उठकर खड़ा हो जाता है। इस कतार में उनके साथ भारत के विदेश सचिव, अमेरिका में भारत के राजदूत और अन्य वरिष्ठ अधिकारी बैठे थे। लेकिन इन सब से पहले उठकर और लॉन से बिखरे हुए पन्नों को इकट्ठा करके पोडियम पर मौजूद अपने बॉस (मोदी) को वापस दे देता है। 72 साल के उस व्यक्ति ने हमेशा की तरह सूट और टाई पहन रखी थी। कागज इकट्ठा करके मोदी को देने के बाद वहां से लौटने से पहले, उन्होंने ग्लास के कवर को भी वापस उसके ऊपर रखा। यह कवर भी हवा का शिकार हुआ था। इसके बाद मोदी ने बिना किसी बाधा के अपना भाषण दिया। ये शख्स था देश का राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल। 

बीते दो दिनों से दिल्ली लगातार जल रही थी। ये आग किसने लगाई, क्यों लगाई इसे लेकर जितने ही सवाल उतने ही विचार सामने आ रहे हैं। लेकिन देश की राजधानी में आग लगाकर हिन्दू-मुसलमान करके सियासत की रोटियां सेंकते लोगों के साथ ही सत्ता पक्ष पर लगातार विपक्ष की तरफ से निशाने पर रहे। नार्थ ईस्ट दिल्ली की जिन गलियों में पिछले दो दिनों से दंगा होता रहा और ये सवाल लगातार उठाया जा रहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो ट्रंप के साथ बैठकों में व्यस्त हैं लेकिन उनके डिप्टी यानी कि गृह मंत्री अमित शाह कहीं नजह क्यों नहीं आ रहे। 26 फरवरी को शाम के साढे चार बज रहे थे। दिल्ली के सबसे ज्यादा हिंसा प्रभावित क्षेत्र में आंखों पर काला चश्मा, काले कोट और रौबदार अंदाज में सुरक्षाकर्मियों से घिरे एक शख्स की एंट्री होती है। वो शख्स गाड़ी से नीचे उतरकर इलाकों में पैदल चला और यहां के रहवासियों से मिलकर बात की उन्हें ये समझाने की कोशिश की कि सरकार हालात सामान्य करने की कोशिश में लगी है। इस शख्स का नाम है राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकार अजीत डोभाल। स्थिति पर नियंत्रण पाने के लिए उन्होंने कमान अपने हाथों में ले ली है। पुलिस ने हालात को अपनी मुट्ठी में लिया और यूं कहे कि काबू में ले लिया और ये कब हुआ जब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल उन हिंसाग्रस्त इलाकों में गए और फिर अगले दिन मौजपुरा इलाके में जाकर लोगों से बातचीत की और पूरी रिपोर्ट गृह मंत्री अमित शाह तक पहुंचाई। 

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अजीत डोभाल लोगों को आश्वासन देने के क्रम में बार-बार पीएम साहब और एचएम साहब का नाम लेते नजर आए और ये भी कहा कि वो उन्हीं के निर्देश पर यहां आए हैं। 

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अजीत डोभाल यानी भारत की सुरक्षा से जुड़े सबसे ताकतवर नौकरशाह जिनकी नियुक्ति सीधे पीएम मोदी ने की है और डोभाल सिर्फ उन्हीं के प्रति जवाबदेह हैं। वो नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल (एनएससी) के प्रमुख हैं। ये एक सलाहकार बॉडी है जिसे गृह मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और विदेश मंत्रालय के साथ काम करना पड़ता है।

डोभाल के शुरुआती दिनों के बारे में जानकारी माीडिया में बेहद ही सीमित है। उनका जन्म 1945 में हुआ था।  ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखने वाले डोभाल उत्तराखंड की पहाड़ियों में घिरी नाम के गांव में पैदा हुए थे। उनके पिता भारत की फौज में एक अफसर थे। उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम और कांग्रेस नेता एचएन बहुगुणा उनकी मां के चचेरे भाई थे। डोभाल की पढ़ाई राजस्थान के अजमेर मिलिट्री स्कूल में हुई और इसके बाद की डिग्री की पढ़ाई के लिए वो आगरा विश्वविद्यालय गए, जहां उन्होंने अर्थशास्त्र की पढ़ाई की। 1968 में वो भारतीय पुलिस सेवा का हिस्सा बने। वो उस साल के केरल कैडर का हिस्सा थे। कोट्टायम में ट्रेनिंग के बाद उन्हें थालास्सेरी का अपर पुलिस अधीक्षक नियुक्त किया गया। 1971 के अंत और 1972 की शुरुआत में जब शहर में कुख्यात सांप्रदायिक दंगे हुए तब डोभाल वहीं थे। केरल पुलिस के एक पूर्व महानिदेशक एलेक्जेंडर जैकब के मुताबिक डोभाल ने दंगों को रोकने में अहम भूमिका निभाई थी। जैकब ने 1989 में इन दंगों पर एक रिपोर्ट लिखी जिसमें उन्होंने ये बात कही है। 1972 तक डोभाल को आईबी में भेज दिया गया था, वो इसके ऑपरेशन विंग का हिस्सा थे। 

ये तो हुई उनके बारे में मोटा-मोटी जानकारी। अब हम आपको अजीत डोभाल से जुड़े कुछ रोमांचक किस्से के बारे में बताते हैं। 

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बात 1988 की है। स्वर्ण मंदिर के पास जहां एक ज़माने में जरनैल सिंह भिंडरावाले की तूती बोलती थी, वहां अमृतसर के लोगों और ख़ालिस्तानी अलगाववादियों ने एक रिक्शावाले को बहुत तन्मयता से रिक्शा चलाते देखा। वो इस इलाक़े में नया था और देखने वो ऐसा ही प्रतीत हो रहा था जैसा कि आम  रिक्शावाले हुआ करते हैं।  लेकिन फिर भी ख़ालिस्तानियों को उस पर कुछ-कुछ शक हो चला था।

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स्वर्ण मंदिर की पवित्र दीवारों के आसपास ख़ुफ़ियातंत्र के पैतरों और जवाबी पैतरों के बीच उस रिक्शा वाले को ख़ालिस्तानियों को ये विश्वास दिलाने में दस दिन लग गए कि उसे आईएसआई ने उनकी मदद के लिए भेजा है। ऑपरेशन ब्लैक थंडर से दो दिन पहले वो रिक्शावाला स्वर्ण मंदिर के अहाते में घुसा और पृथकतावादियों की असली पोज़ीशन और संख्या के बारे में महत्वपूर्ण ख़ुफ़िया जानकारी लेकर बाहर आया। वो रिक्शावाला और कोई और नहीं बल्कि भारत सरकार के वर्तमान सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल थे।

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डोभाल कई ऐसे खतरनाक कारनामों को अंजाम दे चुके हैं जिन्हें सुनकर जेम्स बांड के किस्से भी फीके लगने लगते हैं। डोभाल सात साल पाकिस्तान में रह चुके हैं, यह  बात तो हर किसी ने सुनी होगी। लेकिन पाकिस्तान से जुड़े एक किस्से का जिक्र खुद एनएसए ने एक बार विदर्भ मैनेजमेंट एसोसिएशन के समारोह में करते हुए कहा था कि "लाहौर में औलिया की एक मज़ार है, जहाँ बहुत से लोग आते हैं। मैं एक मुस्लिम शख़्स के साथ रहता था। मैं वहाँ से गुज़र रहा था तो मैं भी उस मज़ार में चला गया। वहां कोने में एक शख़्स बैठा हुआ था जिसकी लंबी सफ़ेद दाढ़ी थी। उसने मुझसे छूटते ही सवाल किया कि क्या तुम हिंदू हो?

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डोभाल ने उन्हें बताया कि नहीं। डोभाल के मुताबिक़, "उसने कहा मेरे साथ आओ और फिर वो मुझे पीछे की तरफ़ एक छोटे से कमरे में ले गया। उसने दरवाज़ा बंद कर कहा, देखो तुम हिंदू हो। मैंने कहा आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? तो उसने कहा आपके कान छिदे हुए हैं। मैंने कहाँ, हाँ बचपन में मेरे कान छेदे गए थे लेकिन मैं बाद में कनवर्ट हो गया था। उसने कहा तुम बाद में भी कनवर्ट नहीं हुए थे। ख़ैर तुम इसकी प्लास्टिक सर्जरी करवा लो नहीँ तो यहाँ लोगों को शक हो जाएगा।"

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डोभाल आगे बताते हैं, "उसने मुझसे पूछा कि तुम्हें पता है मैंने तुम्हें कैसे पहचाना। मैंने कहा नहीं तो उसने कहा, क्योंकि मैं भी हिंदू हूं। फिर उसने एक अलमारी खोली जिसमें शिव और दुर्गा की एक प्रतिमा रखी थी। उसने कहा देखो मैं इनकी पूजा करता हूँ लेकिन बाहर लोग मुझे एक मुस्लिम धार्मिक शख़्स के रूप में जानते हैं।"

जब 1999 में इंडियन एयरलाइंस की उड़ान आईसी-814 को काठमांडू से हाईजैक कर लिया गया था तब उन्हें भारत की ओर से मुख्य वार्ताकार बनाया गया था। बाद में, इस फ्लाइट को कंधार ले जाया गया था और यात्रियों को बंधक बना लिया गया था।

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अगस्त 2005 के विकीलीक्स केबल में ज़िक्र है कि डोभाल ने दाऊद इब्राहिम पर हमला करवाने की योजना बनाई थी लेकिन मुंबई पुलिस के कुछ अधिकारियों की वजह से इसे अंतिम समय पर अंजाम नहीं दिया जा सका।

सर्जिकल स्ट्राइक हो या जम्मू कश्मीर से 370 के क्लाइमेक्स से लेकर एंडिग तक की बात, अजीत डोभाल का किरदार नरेंद्र मोदी और अमित शाह की लिखी हर हिट कहानी में सशक्तता से होता है। दिल्ली में बीते दो दिनों से धुएं का गुबार और जलते बाजार से हलकान और परेशान लोगों को भरोसा देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी को किसी विश्वसनीय चेहरे की जरूरत थी और डोभाल इसमें फिट पाये गए। हालांकि डोभाल के दिल्ली की सड़कों पर दमदार एंट्री से एक धड़ा माहौल बानने में लग गया कि गृह मंत्री पर मोदी का भरोसा नहीं रहा इसलिए देश-विदेश में आंतकवाद से लड़ने में सहायक रहे डोभाल को जमीन पर उतारने की जरूरत आन पड़ी। लेकिन डोभाल ने पहले तो जनता फिर मीडिया को ये साफ-साफ बता दिया कि वो गृह मंत्री के प्रतिनिधि के रूप में ही यहां आए हैं और जैसा कि उन्होंने कहा वैसा ही देखने को भी मिला। हिंसा प्रभावित क्षेत्र का दौरा खत्म कर वो सीधा अमित शाह को ब्रीफ करने गए।- अभिनय आकाश

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