काश आज सद्दाम होते...ऐसा शख्स जिसने इजरायल पर मिसाइल दाग उस जगह ही मस्जिद बनवा दी, ईरान जंग के बीच तानाशाह का नाम क्यों चर्चा में आया?

कुछ लोग उसे अरब की शान कहते हैं, जिसने पश्चिमी ताकतों को खुली चुनौती दी। वो शख्स जिसने अपने खून से कुरान लिखवाकर धार्मिक जुनून का सबूत दिया।
जंग इजरायल और ईरान के बीच छिड़ी है। लेकिन इस वक्त एक ऐसे किरदार की चर्चा तेज हो चली है जिसे कुछ लोग नायक मानते हैं और कुछ लोग खलनायक। लेकिन एक बात तो है कि उसकिी जिंदगी ने दुनिया को हिला कर रख दिया था और इसी वजह से दुनिया में उसको लेकर राय बंटी हुई है। उसकी मौत पर अमेरिकी भी रोने वाले हैं तो उसके जीते जी अमेरिकी ही दुश्मन हैं। सद्दाम का नाम सुनते ही किसी को बहादुर नेता की छवि याद आती है तो किसी को एक बेरहम तानाशाह की। वो आदमी जिसने इजरायल पर मिसाइलें दागी और जिस जगह से मिसाइलें छोड़ी गई वहीं पर मस्जिद बनवा दिया। कुछ लोग उसे अरब की शान कहते हैं, जिसने पश्चिमी ताकतों को खुली चुनौती दी। वो शख्स जिसने अपने खून से कुरान लिखवाकर धार्मिक जुनून का सबूत दिया। वो शख्स जिसने जब अपने देश की बागडोर संभाली तो अपने देश में विकास के लिए खूब काम किया। लेकिन एक दूसरा पहलू उसे निर्दलीय तानाशाह भी बनाता है। सत्ता के लिए उसने निर्दोष लोगों की जान ली। उसने लोगों के दिलों में डर पैदा किया। विरोध करने वालों को मरवा दिया। इराक, जिसे कभी पश्चिमी एशिया का पावर सेंटर माना जाता था, आज एक ऐसे दौर से गुजर रहा है जहां उसकी जमीन और आसमान दूसरों के युद्धों का गलियारा बन चुके हैं। वहीं उसके सबसे बड़े नेता का जिक्र इजरायल और ईरान की जंग के दौरान भी देखने को मिला है।
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दूसरों के युद्धों का गलियारा बना इराक का आसमान
इजरायल के रक्षा मंत्री इजरायल कैट्ज ने चेतावनी दी कि ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई का हश्र इराक के पूर्व तानाशाह सद्दाम हुसैन जैसा हो सकता है। कैट्ज ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, याद रखें कि पड़ोसी देश ईरान के तानाशाह का क्या हुआ था, जिसने इजरायल के खिलाफ यह रास्ता अपनाया था। खामेनेई के भाग्य को सद्दाम हुसैन से जोड़ने वाली कैट्ज़ की चेतावनी को अत्यधिक आवेशपूर्ण बयान माना जा सकता है, जो यहूदी राज्य और उसके कट्टर प्रतिद्वंद्वी तेहरान के बीच बढ़ती दुश्मनी को दर्शाता है। 2003 में अमेरिका के नेतृत्व वाले आक्रमण के बाद सद्दाम हुसैन को उखाड़ फेंका गया और मार डाला गया, जो उनके शासन के पूर्ण पतन का प्रतीक था। इजरायल के कट्टर दुश्मन सद्दाम हुसैन की मौत के बाद उनके देश में बिना परमिशन के ही हवाई जहाजों का आवागमन आम हो चला है। 12 जून की सुबह, जब इजराइली लड़ाकू विमान ने ऑपरेशन राइजिंग लायन के तहत ईरान के ईरान के इस्फहान और नतांज में सैन्य ठिकानों पर हमला किया तो इराकी हवाई क्षेत्र से बिना अनुमति के ही गुजरकर ये स्ट्राइक किया। तब बगदाद, बसरा, मोसुल और एरबिल के लोग घबराए हुए थे। यह कोई पहला मौका नहीं था, बल्कि बीते कुछ हफ्तों में कई बार सुबह और शाम के समय इन शहरों में साउंड की गति से तेज उड़ने वाले जेट विमानों की आवाजें गूंजी हैं। बसरा इंटरनेशनल एयरपोर्ट के पास धमाकों की आवाज तक सुनी गई। लेकिन हैरानी की बात है कि इराक की सरकार न तो जेट व मिसाइलों को रोक पा रही है, न कोई विरोध दर्ज करा पा रही है। नतीजतन, जनता का गुस्सा चरम पर है। सोशल मीडिया पर 'काश सद्दाम होता', 'हमारे आसमां हमारे नहीं' जैसे ट्रेंड्स वायरल हैं।
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सद्दाम हुसैन की सरकार जाने के बाद शिया-सुन्नी के बीच सत्ता का बंटवारा
इराक़ की बहुसंख्यक आबादी शिया ही है। जब तक सद्दाम हुसैन इराक़ की सत्ता में रहे तब तक यहां शिया हाशिए पर रहे। सद्दाम हुसैन सुन्नी मुसलमान थे। लेकिन 2003 के बाद से अब तक इराक़ के सारे प्रधानमंत्री शिया मुसलमान ही बने और सुन्नी हाशिए पर होते गए। 2003 से पहले सद्दाम हुसैन के इराक़ में सुन्नियों का ही वर्चस्व रहा। सेना से लेकर सरकार तक में सुन्नी मुसलमानों का बोलबाला था। सद्दाम के दौर में शिया और कुर्द हाशिए पर थे। इराक़ में शिया 51 फ़ीसदी हैं और सुन्नी 42 फ़ीसदी हैं। 2003 के बाद, ईरान समर्थित मिलिशिया जैसे हिजबुल्लाह ब्रिगेड्स और कटाइब सैयद अल-शुहदा का इराक में उदय हुआ। अब इन मिलिशिया गुटों में एक लाख से ज्यादा लड़ाके हैं। आरोप है कि इन्हें ईरान से ड्रोन्स, रकिट्स और बैलिस्टिक मिसाइलें मिलती हैं। राजनीतिक प्रभाव को देखें तो मिलिशिया से जुड़े नेता संसद में 50 से ज्यादा सीटें रखते हैं। कई इराकी इन मिलिशियाओं को विदेशी हमलों से सुरक्षा की उम्मीद मानते हैं, लेकिन कई उनकी हिंसा से डरते भी हैं।
अमेरिका ने इराक में सद्दाम को हटा अपने लोग बिठाए?
20 मार्च ही वो तारीख है, जब इराक में जैविक हथियार होने के शक की बुनियाद पर करीब 20 साल पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बुश ने युद्ध की शुरुआत की थी। ये वो दौर था जब आदेश के साथ ही अमेरिकी नौसेना की क्रूज मिसाइलों ने इराक की राजधानी बगदाद में कई जगहों पर हमले किए। बगदाद शहर बम और हवाई हमलों की आवाज से गूंज रहा था और इसके साथ ही सद्दाम हुसैन के लंबे शासन का अंत होने जा रहा था। सिर्फ 21 दिनों में अमेरिका ने इराक के तमाम बड़े शहरों को अपने कब्जे में ले लिया था, लेकिन सद्दाम हुसैन अमेरिका की पकड़ से दूर था। 13 दिसंबर, 2003 में अमेरिका को सद्दाम हुसैन को पकड़ने में कामयाबी मिली। पांच सप्ताह के युद्ध के बाद राष्ट्रपति बुश ने 1 मई, 2003 को अपना 'मिशन अकम्प्लिश' भाषण दिया। सद्दाम की सरकार गई और इराक पर कब्जा हुआ। इसके बाद अमेरिका ने कोएलिशन प्रोविजनल अथॉरिटी बनाई, जिसने इराकी संसाधनों और नीतियों पर नियंत्रण किया। वर्तमान सरकार को अमेरिका और ईरान दोनों का समर्थन है, लेकिन जनता इसे कठपुतली मानती है।
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इराक आक्रमण ने दुनिया को कैसे बदल दिया?
आक्रमण के न केवल इराक बल्कि दुनिया के लिए भी दूरगामी परिणाम थे। सबसे महत्वपूर्ण रूप से, इसने उन परिस्थितियों को जन्म दिया जिसमें आतंकवादी इस्लामिक स्टेट का जन्म हुआ, जिसने 2014 में अपनी "खिलाफत" की घोषणा की और देश में क्रूर और लंबे समय तक सांप्रदायिक गृहयुद्ध को जन्म दिया। संघर्ष ने पश्चिम एशिया में अमेरिका के प्रभाव को भी कम कर दिया। आक्रमण से पहले, इराक और अफगानिस्तान ने बफर के रूप में कार्य किया जिसने पश्चिम एशिया में ईरानी प्रभाव को कम कर दिया। इराक में आक्रमण के बाद की अराजकता में ईरान ने एक मुकाम हासिल किया और राष्ट्रपति बशर अल-असद के सीरियाई शासन को सैनिकों की आपूर्ति, और सशस्त्र और वित्तपोषण सहित अपनी सीमाओं के बाहर अपने सैन्य अभियानों को बढ़ाने के लिए क्षेत्रीय शक्ति के बदले हुए संतुलन का उपयोग किया। आक्रमण ने रणनीति के रूप में ड्रोन हमलों के युग की शुरुआत की।
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