कुछ ऐसी है भारत-ओमान के रिश्तों की कहानी, जिसके सुल्तान की मौत पर झुका दिया गया था तिरंगा

Oman
अभिनय आकाश । Feb 1 2022 6:32PM

ओमान भारत का एक रणनीतिक भागीदार है और खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी), अरब लीग और हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (आईओआरए) में एक महत्वपूर्ण वार्ताकार है। ओमान पर कई वर्षों तक सुल्तान काबूस बिन सैद अल सैद का शासन था, जो भारत के मित्र थे।

ओमान के शीर्ष रक्षा अधिकारी मोहम्मद नासिर अल ज़ाबी भारत के दौरे पर हैं। उनका ये आधिकारिक दौरा 30 जनवरी से शुरू हुआ और 4 फरवरी तक चलेगा। बीते दिनों उन्होंने भारत के रक्षा सचिव के साथ दोनों देशों के बीच के संयुक्त सैन्य सहयोग समिति की 11वीं बैठक भी की। जेएमसीसी रक्षा के क्षेत्र में भारत और ओमान के बीच जुड़ाव का सर्वोच्च मंच है जो दोनों पक्षों के बीच रक्षा आदान-प्रदान के समग्र ढांचे का मूल्यांकन और मार्गदर्शन प्रदान करता है। ऐसे में आपको बताते हैं कि ओमान रक्षा और सामरिक दृष्टि से क्यों भारत के लिए महत्वपूर्ण है? क्या है भारत-ओमान संबंधों का इतिहास? सुल्तान कबूस ने भारत की मदद कैसे की थी?

रक्षा सचिव अजय कुमार और ओमान के रक्षा मंत्रालय के महासचिव मोहम्मद बिन नासिर बिन अली अल जाबी ने सोमवार को भारत-ओमान संयुक्त सैन्य सहयोग समिति की 11वीं बैठक में भाग लिया। विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा ओमान भारत का एक रणनीतिक भागीदार है और खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी), अरब लीग और हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (आईओआरए) में एक महत्वपूर्ण वार्ताकार है। 

भारत-ओमान संबंधों का इतिहास है?

ओमान पर कई वर्षों तक सुल्तान काबूस बिन सैद अल सैद का शासन था, जो भारत के मित्र थे। आधुनिक अरब जगत के सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले नेता सुल्तान काबूस का जनवरी 2020 में 79 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वो भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा के छात्र रह चुके। अजमेर के मेयो कॉलेज के पूर्व छात्र सुल्तान काबूस के पिता ने अपने बेटे को कुछ समय के लिए पुणे में पढ़ने के लिए भेजा, जहां वह पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा के छात्र थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पुणे के एक निजी संस्थान से पूरा किया। 1996 में राष्ट्रपति के रूप में शर्मा जब मस्कट पहुंचे तो उन्होंने प्रोटोकॉल तोड़कर उनका स्वागत किया था। ओमान के सुल्तान काबूस बिन सईद अल सईद के निधन के साथ, भारत ने खाड़ी क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मित्र और भागीदार खो दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुल्तान काबूस के निधन पर शोक व्यक्त किया था और उन्हें क्षेत्र के लिए शांति का प्रतीक बताया था। 

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पीएम मोदी ने फरवरी 2018 में ओमान के सुल्तान काबूस से मुलाकात की थी, जब दोनों देशों ने रणनीतिक रूप से स्थित डुकम बंदरगाह का उपयोग करने के लिए एक रणनीतिक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए मस्कट से एक भारतीय राजनयिक बताया कि उनके छात्र दिनों से उनकी बहुत अच्छी यादें थीं ... और यही कारण है कि वे भारतीय समुदाय और मदद के लिए भारत के अनुरोधों के प्रति बहुत उदार थे। भारत सरकार ने उनके सम्मान में 13 जनवरी, 2020 को एक दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की। भारत और ओमान के बीच संबंधों को मजबूत करने और खाड़ी क्षेत्र में शांति को बढ़ावा देने के प्रयासों के लिए गांधी शांति पुरस्कार 2019 को मार्च 2021 में दिवंगत एचएम सुल्तान काबूस को प्रदान किया गया था।

सुल्तान कबूस ने भारत की मदद कैसे की थी?

18 नवंबर 1940 में सैय्यद कबूस बिन सैद अल सैद ओमान के राजघराने में पैदा हुए। तब ओमान को ओमान एंड मस्कट के नाम से जाना जाता था। उनके पिता सैयद बिन तैमूर सख्त सुल्तान थे। उनके दौर में ओमान पूरी दुनिया से कटा हुआ था। बेहद गरीब था और वहां पक्की सड़कें भी नहीं थी। जनता सुल्तान की अनुमति के बिना न चश्मा लगा सकती थी और न ही सीमेंट खरीद सकती थी। काबूस को उनके पिता ने 1958 में पढ़ने के लिए ब्रिटेन भेजा। सुल्तान ने 1965 में काबूस को वापस बुलाकर उन्हें हाउस अरेस्ट कर दिया। वजह थी काबूस का प्रोग्रेसिव माइंडेड होना। तैमूर खुद पढ़े लिखे थे लेकिन अपनी जनता को पढ़ाने के खिलाफ थे। जबकि काबूस की सोच इससे अलग थी। 1970 में काबूस ने ब्रिटेन की मदद से तख्ता पलट किया। पिता को पद से हटाकर खुद सुल्तान बन गए। सुल्तान बनते ही उन्होंने देश का नाम बदलकर ओमान रखा और मस्कट को उसकी राजधानी बनाया। काबूस को आधुनिक ओमान के निर्माण का क्रेडिट दिया जाता है। सुल्तान कबूस ने वेटिकन के पादरी फादर टॉम उज़ुन्नलिल की रिहाई में एक भूमिका निभाई थी, जिसे मार्च 2016 में यमन में अपहरण कर लिया गया था और सितंबर 2017 में रिहा कर दिया गया था। सुल्तान कबूस कथित तौर पर यमन की पार्टियों के साथ-साथ विदेश मंत्रालय के साथ लगातार संपर्क में था। जासूसी के आरोप में ईरान में जेल में बंद तीन अमेरिकी हाइकर्स को रिहा कर दिया गया था, एक कनाडाई नागरिक डॉ होमा हुडफ़र जो ईरान में कैद थे और सितंबर 2016 में रिहा हुए थे, उन्होंने रिहाई को सुरक्षित करने में भी मदद की थी। 2018 में जब प्रधानमंत्री मोदी ओमान गए थे तो काबूस ने महल में नाश्ता बनवाकर उनके होटल में भिजवाया था। ओमान में रह रहे भारतीय समुदाय के प्रति काबूस का रवैया बेहद उदार था। उनके पिता ने अजमेर के कॉलेज से पढ़ाई की थी। वहीं उनके दादा ने अपने जीवन के आखिरी साल भारत में बिताए और यहीं से ओमान की सत्ता चलाई। उन्हें मुंबई में दफनाया गया। काबूस की मौत के बाद भारत में 13 जनवरी को एक दिन के राजकीय शोक का ऐलान किया गया था। इस दिन झंडा आधा झुका था। ओमान के संस्कृति मंत्री और दिवंगत सुल्तान काबूस के 65 वर्षीय चचेरे भाई हेथम बिन तारिक काबूस की जगह नए सुल्तान बने। 

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ओमान में कितने भारतीय हैं?

ओमान में करीब 6.2 लाख भारतीय हैं, जिनमें से करीब 4.8 लाख कर्मचारी और पेशेवर हैं। ओमान में 150-200 से अधिक वर्षों से भारतीय परिवार रह रहे हैं। हजारों भारतीय डॉक्टर, इंजीनियर, चार्टर्ड अकाउंटेंट, शिक्षक, व्याख्याता, नर्स, प्रबंधक सहित अन्य पेशेवरों के रूप में काम कर रहे हैं। हिंद महासागर क्षेत्र में अपने स्टैंड को मजबूत करने कि दिशा में ये रणनीतिक कदम भारत ने सैन्य उपयोग और सैन्य समर्थन के लिए ओमान में डुकम के प्रमुख बंदरगाह तक पहुंच हासिल कर ली है। यह क्षेत्र में चीनी प्रभाव और गतिविधियों का मुकाबला करने के लिए भारत की समुद्री रणनीति का हिस्सा है। यह फरवरी '2018 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की ओमान यात्रा के प्रमुख अंशों में से एक था। उन्होंने ओमान के सुल्तान सैय्यद कबूस बिन सैद अल सैद से मुलाकात की थी और दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग पर समझौता ज्ञापन के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए थे। सूत्रों ने बताया कि इस समझौते के बाद भारतीय सैन्य जहाजों के रखरखाव के लिए दुकम बंदरगाह और ड्राई डॉक की सेवाएं उपलब्ध होंगी।

दुक्म बंदरगाह का क्या महत्व है?

दुक्म बंदरगाह ओमान के दक्ष‍िण-पूर्वी समुद्र तट पर स्थ‍ित है और यह ईरान के चाबहार बंदरगाह के करीब ही है। यहां तक पहुंच बनने के बाद भारत को हिंद महासागर के इस इलाके में सामरिक मजबूती हासिल हो जाएगी। दुकम ने भारतीय गतिविधियों में वृद्धि देखी है। हाल के वर्षों में, भारत ने पश्चिमी अरब सागर में इस बंदरगाह पर एक हमलावर पनडुब्बी तैनात की थी। एक शिशुमार श्रेणी की पनडुब्बी नौसेना के जहाज आईएनएस मुंबई और दो पी-8आई लंबी दूरी के समुद्री गश्ती विमानों के साथ दुक्म में दाखिल हुई। भारत को सैन्य उपयोग, टोही विमानों के लिए रणनीतिक ओमान बंदरगाह तक पहुंच प्राप्त है। साल 2017 के सितंबर में भारत ने यहां एक पनडुब्बी भेजा था। इसके साथ वहां नौसेना का जहाज आईएनएस मुंबई और दो पी-8 आई निगरानी विमान भी गए थे। मोदी की ओमान यात्रा के बाद संयुक्त बयान में कहा गया कि दोनों पक्षों ने कि सैन्य सहयोग पर समझौता ज्ञापन, 2005 में हस्ताक्षरित और 2016 में नवीनीकृत किया गया, ने द्विपक्षीय रक्षा संबंधों को मजबूत करने के लिए सामान्य ढांचा प्रदान किया है। भारत और ओमान ने गौर किया कि समुद्री सुरक्षा में सहयोग पर और दोनों देशों के तटरक्षकों के बीच मई 2016 में हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापनों ने संस्थागत बातचीत को गहरा करने के लिए एक मजबूत आधार प्रदान किया है।

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अन्य खिलाड़ी भी मैदान में हैं?

अगस्त 2017 में ओमान ने यूनाइटेड किंगडम के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए, जिसने रॉयल नेवी को पोर्ट ऑफ डुकम का उपयोग करने की अनुमति दी। समझौता यूके को डुकम में सुविधाओं तक पहुंच की अनुमति देता है, और जिन जहाजों को बंदरगाह पर डॉक करने की अनुमति दी जाएगी, उनमें एचएमएस क्वीन एलिजाबेथ विमान वाहक है, जो ब्रिटिश नौसेना का सबसे बड़ा जहाज है।

दुक्म बंदरगाह पर भारत और कौन-सी गतिविधियां कर रहा है?

पोर्ट ऑफ डुकम में एक विशेष आर्थिक क्षेत्र भी है, जहां कुछ भारतीय कंपनियों द्वारा 1.8 अरब डॉलर का निवेश किया जा रहा है। साल 2017 में अडानी समूह ने दुकम पोर्ट में निवेश के लिए एक समझौता किया था। दुक्म के निकट सामरिक तेल भंडार के संदर्भ में, भारत ने ओमान को भारत में सामरिक तेल भंडार के निर्माण में भाग लेने के लिए निमंत्रण दिया था।

ओमान रक्षा अधिकारी की यात्रा का एजेंडा?

जेएमसीसी के इतर, ज़ाबी के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मिलने की उम्मीद है और उन्हें खरीद और संयुक्त उत्पादन की संभावनाओं के लिए भारतीय रक्षा उत्पादन उद्योग के लिए एक जोखिम भी दिया जाएगा। उनकी यात्रा के बाद फरवरी के महीने में उच्च रक्षा प्रोफ़ाइल कार्यक्रमों की एक श्रृंखला होगी जिसमें ओमान के रॉयल नेवी (आरएनओ) के प्रमुख और रॉयल एयर फोर्स के प्रमुख द्वारा भारत की एक के बाद एक यात्राएं शामिल होंगी। ओमान (आरएएफओ), भारतीय नौसेना और सीआरएनओ के बीच स्टाफ वार्ता, और जोधपुर में एक द्विपक्षीय वायु सेना अभ्यास होगा। ओमान के नौसेना और वायु सेना प्रमुखों के दौरे 5 साल के अंतराल के बाद हो रहे हैं और इससे दोनों पक्षों की सेनाओं के बीच एक उच्च स्तरीय पुन: जुड़ाव हो सकेगा। द्विपक्षीय वायु सेना अभ्यास वार्षिक है और इस वर्ष ओमान की ओर से 150 से अधिक कर्मियों की भागीदारी होगी।

-अभिनय आकाश

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