भारत के पड़ोसियों के साथ अमेरिका की नीति से पैदा हो रही असहज स्थिति, एशिया में तनाव के बादल नजर आ रहे हैं, चीन खुश तो बहुत होगा

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अभिनय आकाश । Aug 21 2023 2:03PM

तेजी से बदलते जियो पॉलिटिक्स के वर्तमान दौर में भारत और अमेरिका अहम रणनीतिक पार्टनर बन गए हैं। चीन की दादागिरी के खिलाफ हिंद प्रशांत क्षेत्र में दोनों देश कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं।

जब कभी भी तीसरे विश्व युद्ध की बात होती है और कहा जाता है कि जब कभी भी वर्ल्ड वॉर 3 हुआ तो ये अमेरिका और चीन के बीच होगा। ये कोई चौंकाने वाली बात भी नहीं है। अमेरिका और चीन की प्रतिद्ववंदिता जग जाहिर है। हालांकि शीत युद्ध के दौर में दोनों देशों को राजनयिक संबंध बने तो वो काफी अच्छा शुरुआत के साथ हुए। इसके अलावा यूएनएससी में ताइवान से उसकी परमानेंट सीट वापस लेकर चीन को सौप दी गई। अमेरिका चीन की अर्थव्यवस्था के फलने-फूलने और आगे बढ़ने में लगातार अपनी भूमिका निभाता रहा। धीरे-धीरे चीन ने खुद को वैश्विक अर्थव्यवस्था में तब्दील किया। वो देखते ही देखते दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया। इससे चीन की राजनीतिक मंशा और आर्थिक पात्रता आसमान छूने लगे। यही से चीन ने अमेरिका को डिप्लोमैटिक और सैन्य मानकों के जरिए चुनौती देना शुरू कर दिया। ये सब उस दौर में हो रहा था जब ग्लोबल फाइनेंशियल क्राइस अपने चरम पर थी। अमेरिका के अफगानिस्तान और इराक के युद्ध की वजह से दुनिया एकध्रुवीय आधिपत्य पर सवाल उठा रही थी। ऊपर से शी जिनपिंग के दौर में चीन की आक्रमकता और भी ज्यादा बढ़ी। वैश्विक पटल पर खुद को एक सुपरपावर के रूप में प्रजेंट करने का उसका सपना साफ नजर आने लगा। अब दोनों एक दूसरे को सबसे बड़ा प्रतिद्ववंदी मानने लगे हैं। 

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वहीं तेजी से बदलते जियो पॉलिटिक्स के वर्तमान दौर में भारत और अमेरिका अहम रणनीतिक पार्टनर बन गए हैं। चीन की दादागिरी के खिलाफ हिंद प्रशांत क्षेत्र में दोनों देश कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं। अमेरिका और भारत दोनों ने ही खुद को दुनिया में सबसे करीबी पार्टनर घोषित किया है। पीएम मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान दोनों देशों ने ये ऐलान किया था। इस दौरान बाइडेन और पीएम मोदी दोनों ने समुद्री नौवहन में आ रही चुनौतियों को अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक दूर करने पर बल दिया था। चीन लगातार ताइवान पर हमले की धमकी दे रहा है जिसे अमेरिका से कानूनी सुरक्षा हासिल है। यही वजह है कि अमेरिका भारत का साथ चाहता है। 

एशिया में भारत-अमेरिका के बीच क्यों बढ़ा तनाव

भारत और अमेरिका की दोस्ती के बीच एशिया में तनाव के बादल नजर आ रहे हैं। दोनों देशों के बीच विवाद की वजह बना है भारत का पड़ोसी देश बांग्लादेश। बांग्लादेश में चुनाव होने वाले हैं और उसको लेकर अमेरिका की भूमिका पर भारत ने नाराजगी जताई है। भारत से साफ कहा है कि अमेरिका ने बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार को अस्थिर करने के लिए जो भी कदम उठाएं हैं वो भारत की सुरक्षा के लिए हितकारी नहीं है। 

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बांग्लादेश में कट्टरपंथियों को बढ़ा रहा अमेरिका ? 

बांग्लादेश को अमेरिका द्वारा थोपे गए राजनीतिक संकट से उबारने के लिए भारत पर दबाव बढ़ रहा है। मीडिया रिपोर्ट में कहा जा रहा है कि शेख हसीना के राजनीतिक विरोधियों, विशेष रूप से इस्लामी कट्टरपंथी संगठनों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। जनवरी 2024 में संसदीय चुनाव निर्धारित हैं। भारत विरोधी भावनाओं और बदलती वफादारी से भरे पड़ोस में शेख हसीना सरकार शायद भारत की सबसे करीबी और एकमात्र विश्वसनीय भागीदार है। हालाँकि भारत पारंपरिक रूप से दक्षिण एशिया में "बड़ी शक्ति" रहा है, हाल के वर्षों में चीन ने उस स्थिति को गंभीर रूप से चुनौती दी है, जिसकी क्षेत्र में रुचि और पदचिह्न हर गुजरते दिन के साथ बढ़ रहे हैं। इस बीच, अमेरिका में जो बाइडेन प्रशासन ने बांग्लादेश की लोकतांत्रिक वापसी को रोकने और संसदीय चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष सुनिश्चित करने के लिए कई दंडात्मक उपायों की घोषणा की है। चुनाव में धांधली में शामिल किसी भी व्यक्ति के खिलाफ वीजा प्रतिबंध लगाने की धमकी के अलावा, अमेरिकी विदेश विभाग ने अर्धसैनिक बल रैपिड एक्शन बटालियन (आरएबी) के कई सेवारत और सेवानिवृत्त अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाया है। शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग ने पिछले चुनावों में जीत हासिल की है। 2009 से प्रधान मंत्री शेख हसीना पर चुनावों में हेरफेर करने और अपने निर्विवाद अधिकार और लगातार जीत का मार्ग प्रशस्त करने के लिए राजनीतिक विरोधियों को डराने का आरोप लगाया गया है, जिसने उन्हें देश में सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाली नेता बना दिया है।

भारत ने जताई नाराजगी

लगभग एक दशक तक, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और शेख हसीना ने विश्वास और विश्वास का एक मजबूत रिश्ता बनाया है जिसने दोनों देशों और क्षेत्र की अच्छी सेवा की है। अक्सर बांग्लादेश पर निर्देशित भाजपा नेताओं के मुस्लिम विरोधी बयानों को नजरअंदाज करने में शेख हसीना की राजनीतिक कुशलता ने द्विपक्षीय संबंधों को सफलतापूर्वक मजबूत किया है और यह सुनिश्चित किया है कि वे मजबूत बने रहें। अवामी लीग के सांसद सबर हुसैन चौधरी ने कहा कि भारत-बांग्लादेश साझेदारी व्यापार और निवेश से लेकर कनेक्टिविटी और सुरक्षा तक विस्तारित हो गई है जिसमें लोगों से लोगों के संपर्क ने उत्प्रेरक के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत ने कहा कि अमेरिका का कदम न केवल हिन्दुस्तान की सुरक्षा बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए सकारात्मक नहीं है। भारत ने साफ कहा गहै कि वो वाशिंगटन की तरह से ही एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव चाहता है। भारत ने ये बयान ऐशे समय पर दिया है जब 3 सप्ताह बाद ही अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना नई दिल्ली में जी 20 शिखर सम्मेलन के मंच पर एक साथ नजर आएंगे। 

अमेरिका की नीति से पैदा हो रही असहज स्थिति

भारत ने अमेरिका को दो टूक कहा है कि अमेरिकी सेनाओं के अफगानिस्तान से वापसी की वजह से पूरे क्षेत्र की सुरथा व्यवस्था में तब्दीली आ गई। भारत के नॉर्थ ईस्टर्न राज्यों में हालात खतरनाक हो गए। तालिबान अब अफगानिस्तान पर अपनी पकड़ जमा चुका हैय़ अमेरिका ने तो तालिबान संग चुपके से डील कर ली लेकिन महिलाओं, बच्चों और अल्पसंख्यकों पर विचार नहीं किय गया। अब इसके दुष्परिणाम साफ नजर आ रहे हैं। अमेरिका की भारत के पड़ोसियों के साथ नीति से नई दिल्ली के लिए असहज स्थिति पैदा हो रही है। 

चीन की कैसे लग सकती है लॉटरी

बांग्लादेश-अमेरिका संबंधों में तनाव ने चीन को शेख हसीना के करीब जाने की इजाजत दे दी है। जून में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने एक बयान में कहा कि हम बांग्लादेश की संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा में दृढ़ता से समर्थन करते हैं। चीन ने यह भी कहा कि वह स्वतंत्र घरेलू और विदेशी नीतियों को बनाए रखने और अपनी राष्ट्रीय वास्तविकताओं के अनुरूप विकास पथ अपनाने में बांग्लादेश का समर्थन करता है। लेकिन उभरती स्थिति को भारत पर दोहरी मार के रूप में देखा जा रहा है। अमेरिका के साथ इसकी बढ़ती निकटता ने उम्मीदें बढ़ा दी हैं कि यह शेख हसीना की ओर से बाइडेन प्रशासन में हस्तक्षेप करे। वहीं ढाका के साथ खड़े होने के चीन के फैसले ने अब यह जरूरी बना दिया है कि दिल्ली शेख हसीना को बचाने के लिए वाशिंगटन के साथ अपने प्रभाव का इस्तेमाल करे। यदि अमेरिका ऐसा करने में विफल रहता है तो यह भारत का नुकसान होगा। इसलिए भारत ने अमेरिका से साफ कहा है कि अगर जमात ए इस्लामी को संरक्षण दिया गया जिससे उसका विकास हो तो भारत में सीमापार आतंकवाद बढ़ सकता है। यही नहीं बांग्लादेश में चीन का प्रभाव काफी बढ़ जाएगा जो खुद अमेरिका नहीं होते देखना चाहेगा। 

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