कट्टर ईमानदार, फिर कैसे हुआ भ्रष्टाचार, शराब घोटाले से जुड़े सिसोदिया के तार, CBI ने केस का बनाया मजबूत आधार, सुप्रीम सुनवाई में भी राहत नहीं मिली इस बार

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अभिनय आकाश । Feb 28 2023 5:30PM

सीबीआई ने कहा कि प्रभावी जांच के लिए मंत्री की हिरसत जरूरी है। सिसोदिया कह रहे हैं कि उनकी कोई भूमिका नहीं है। लेकिन जांच से पता चलता है कि उन्होंने व्यक्तिगत रूप से फैसले लिए। 5 से 12 फीसदी के प्रॉफिट मार्जिन से जुड़ा नोट सिसोदिया के कंप्यूटर से ही तैयार हुआ।

आज बात अरविंद केजरीवाल और उनके डिप्टी मनीष सिसोदिया की करेंगे। भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ी हुई आम आदमी पार्टी के नंबर दो नेता मनीष सिसोदिया को सीबीआई की पांच दिन की हिरासत में भेजा गया। इन पांच दिनों में सीबीआई मनीष सिसोदिया से घोटाले के तारों को जोड़ने की कोशिश करेगी। उनसे सवाल जवाब करेगी। सीबीआई ये भी पूछेगी कि शराब माफियाओं को पहुंचाए गए फायदे के सबूत कैसे मिटाए गए। दिल्ली सरकार में कुल छह मंत्री हैं। इनमें से एक सत्येंद्र जैन पहले से ही जेल में हैं। अब मनीष सिसोदिया भी पहुंच गए, जिनके पास 18 विभाग हैं। उनके विभाग अभी किसी मंत्री को दिए नहीं गए हैं। अब तो जांच की आंच में अरविंद केजरीवाल भी आ रहे हैं। 

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सुप्रीम सुनवाई में भी राहत नहीं मिली 

मनीष सिसोदिया की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस नरसिम्हा की बेंच ने सुनवाई की। मनीष सिसोदिया की तरफ से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने पक्ष रखा। सिसोदिया की याचिका पर सुनवाई करते हुए सीजेआई ने कहा कि जमानत अर्जी का विकल्प आपके पास है। आप हाई कोर्ट जा सकते हैं। सीजेआई ने पूछा कि क्या जमानत के लिए अनुच्छेद 32 का इस्तेमाल किया जा रहा है? सीजेआई ने कहा कि आप सीधे सुप्रीम कोर्ट से जमानत और दूसरी राहत मांग रहे हैं। आपने अर्नब गोस्वामी और विनोद दुआ केस का हवाला दिया। पर वो इससे बिल्कुल अलग थे। आपको निचली अदालत से बेल लेनी चाहिए। एफआईआर रद्द करवाने के लिए हाई कोर्ट जाना चाहिए। जस्टिस नरसिम्हा ने कहा कि मामला दिल्ली का है, इसका मतलब ये नहीं है कि आप सीधे सुप्रीम कोर्ट आ जाएं। 

सीबीआई कैसे मजबूत केस बना रही 

सीबीआई ने कहा कि प्रभावी जांच के लिए मंत्री की हिरसत जरूरी है। सिसोदिया कह रहे हैं कि उनकी कोई भूमिका नहीं है। लेकिन जांच से पता चलता है कि उन्होंने व्यक्तिगत रूप से फैसले लिए। 5 से 12 फीसदी के प्रॉफिट मार्जिन से जुड़ा नोट सिसोदिया के कंप्यूटर से ही तैयार हुआ। उन्होंने कथित साजिश में इस्तेमाल किए गए मोबाइल फोन भी नष्ट कर कर दिए। उपमुख्यमंत्री ने टालमटोल भरे जवाब दिए और इसके विपरीत सबूतों का सामना किए जाने के बावजूद जांच में सहयोग नहीं किया। सीबीआई ने सिसोदिया से उनकी निगरानी में आबकारी नीति के मसौदे में किए गए बदलावों पर जवाब मांगा। सीबीआई के करीबी कानूनी सूत्रों के हवाले से कहा गया कि आबकारी नीति के पहले मसौदे में कई प्रावधान नहीं थे जिन्हें बाद में अंतिम मसौदे में शामिल किया गया। सीबीआई आबकारी विभाग के एक अधिकारी द्वारा दिए गए एक बयान पर भरोसा कर रही है जिसने कथित रूप से कहा है कि अंतिम मसौदे में इन विवादास्पद प्रावधानों को शामिल करने में सिसोदिया शामिल थे। सीबीआई ने सिसोदिया के डिजिटल उपकरणों को यह सत्यापित करने के लिए जब्त कर लिया था कि मसौदा नीति में ये परिवर्तन कैसे किए गए थे और यह कुछ व्यवसायियों को लाभ पहुंचाने के लिए किया गया था या नहीं। एजेंसी यह कहते हुए मनीष सिसोदिया की हिरासत की मांग की कि वह इस बारे में सामने नहीं आ रहे हैं कि इन विवादास्पद प्रावधानों को अंतिम आबकारी नीति में कैसे शामिल किया गया जबकि वे प्रारंभिक मसौदे का हिस्सा नहीं थे।

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आबकारी मामले में क्या हैं आरोप?

चीफ सेक्रेट्री के द्वारा भेजी गई जिस रिपोर्ट के आधार पर एलजी ने नई आबकारी नीति की सीबीआई जांच के निर्देश दिए थे, उसमें दिल्ली सरकार और आबकारी मंत्री मनीष सिसोदिया पर मुख्यतः से ये आरोप लगाए गए थे। कोरोना काल में हुए नुकसान की भरपाई के लिए शराब बेचने वाली कंपनियों की 144.36 करोड़ रुपए की लाइसेंस फीस माफ कर दी गई। एल-1 के टेंडर में शामिल एक कंपनी की 30 करोड़ की अर्नेस्ट डिपॉजिट मनी कंपनी को वापस कर दी गई। विदेशी शराब और बियर के केस पर मनमाने ढंग से 50 रुपये प्रति केस की छूट दी गई, जिसका फायदा कंपनियों ने उठाया। एक ब्लैक लिस्टेड कंपनी को दो जोन के ठेके दे दिए गए। कार्टल पर पाबंदी के बावजूद शराब विक्रेता कंपनियों के कार्टल को लाइसेंस पहुंचा। दिए गए। बिना एजेंडा और कैबिनेट नोट सर्कुलेट कराए कैबिनेट में मनमाने तरीक से प्रस्ताव पास करवाए गए। शराब विक्रेताओं को फायदा पहुंचाने के लिए ड्राई डे की संख्या 21 से घटाकर 3 की गई। मास्टर प्लान के नियमों का उल्लंघन करते हुए नॉन कन्फर्मिंग इलाकों में ठेके खोलने की इजाजत दी गई। ठेकेदारों का कमीशन 2.5 फीसदी से बढ़ाकर 12 फीसदी किया गया। दो जोनों में शराब निर्माता कंपनी को रिटेल सेक्टर में शराब बेचने की इजाजत दी गई। एलजी की मंजूरी लिए बिना दो बार पॉलिसी को एक्सटेंड किया और मनमाने तरीके से डिस्काउंट ऑफर दिए गए, जिससे कुछ कंपनियों को फायदा पहुंचा। नई पॉलिसी लागू करने में जीएनसीटी एक्ट-1991, ट्रांजैक्शन ऑफ बिजनेस रूल्स 1993, दिल्ली एक्साइज एक्ट 2009 और दिल्ली एक्साइज रूल्स 2010 का उल्लंघन किया गया।

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