इंदिरा के विदेश हाथ का जुमला, वीपी सिंह ने खुद के लिए मांगी सजा, 15 CM बदले फिर भी मुरादाबाद दंगों की रिपोर्ट कभी नहीं हुई सार्वजनिक, अब योगी करेंगे ये काम

उत्तर प्रदेश की एक ऐसी तस्वीर जिसे छुपाकर सत्ता में बने रहने की कोशिश की गई। आज हम 1980 में हुए मुरादाबाद दंगों की बात करेंगे। आप कह रहे होंगे की 43 साल पुराने दंगे की बात आज हम क्यों कर रहे हैं। दरअसल, आज तक उत्तर प्रदेश में कई सरकारें आई और चली गईं। लेकिन किसी भी सरकार ने उन दंगों की जांच रिपोर्ट को कभी भी सार्वजनिक नहीं होने दिया। लेकिन योगी सरकार ने मुरादाबाद दंगों की जांच रिपोर्ट को 43 साल बाद सार्वजनिक करने का फैसला किया। उत्तर प्रदेश सरकार ने घोषणा की है कि वो 1980 के महीनों तक चले दंगों पर जस्टिस एमपी सक्सेना आयोग की रिपोर्ट विधानसभा में पेश करेगी, जिसमें राज्य के कई जिलों में करीब 300 लोग मारे गए थे। सक्सेना उस वर्ष 1 अगस्त को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त हुए थे। उन्होंने नवंबर 1983 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। लेकिन इसकी सामग्री को कभी सार्वजनिक नहीं किया गया और इसकी सिफारिशों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि 1980 से अब तक प्रदेश में 15 मुख्यमंत्री बने, लेकिन कोई भी इस रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखने की हिम्मत नहीं जुटा सका।
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1980 में ऐसा क्या हुआ था?
राज्य सरकार की प्रतिक्रिया
यूपी विधानसभा में वीपी सिंह 9 जून, 1980 को मुख्यमंत्री बने थे। उन्होंने कहा कि 12 अगस्त को खुफिया शाखा ने रिपोर्ट दी थी। कई लोगों को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया था और मार्च 1981 में होली के बाद ही रिहा किया गया था। सिंह ने उनके लंबे कारावास को उचित ठहराते हुए कहा कि उन्हें "निर्दोष मृत या जेल में निर्दोष" के बीच चयन करना था।
इंदिरा का 'विदेशी हाथ'
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उस साल जनवरी में जनता पार्टी के प्रयोग के फेल होने के बाद सत्ता में लौटी थीं। उन्होंने आरोप लगाया कि एक "विदेशी हाथ" देश की स्थिरता को चोट पहुँचाना चाहता है। लेकिन प्रभावित इलाकों का दौरा करने के बाद उन्होंने कहा कि कोई विदेशी हाथ नहीं है। यह वह दौर था जब इंदिरा अक्सर कई मुद्दों के लिए "विदेशी हाथ" का हौवा खड़ा करती थीं। दंगों के दो दिन बाद, अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में इंदिरा ने कहा कि मुरादाबाद की घटना ने हमारे देश को चोट पहुंचाई है। मैं कहना चाहूंगा कि जिसने भी शरारत की है या दोषी है, चाहे वह अधिकारी हो या गैर-सरकारी, उसे बहुत कड़ी सजा दी जाएगी। फिर भी मुरादाबाद दंगों की हिंसक लहरें उसी दिन दिल्ली के बल्लीमारान और चावड़ी बाजार इलाकों में देखी गईं और कर्फ्यू लगाना पड़ा और सेना बुलानी पड़ी।
आरएसएस में शामिल होने वाले सरकारी कर्मचारियों को अनुशासनात्मक कार्रवाई की धमकी
तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्य मंत्री योगेंद्र मकवाना ने बीजेपी (जिसका गठन अप्रैल 1980 में हुआ था) और आरएसएस पर दंगों की साजिश रचने का आरोप लगाया। 28 अक्टूबर 1980 को इंदिरा की सरकार ने 30 नवंबर, 1966 के एक पुराने सर्कुलर को दोहराया, जिसमें कहा गया था कि आरएसएस या जमात-ए-इस्लामी में शामिल होने वाले सरकारी कर्मचारियों को अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। देश में वर्तमान स्थिति के संदर्भ में सरकारी सेवकों के लिए एक धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण सुनिश्चित करने की आवश्यकता और भी अधिक महत्वपूर्ण है। अक्टूबर 1980 के सर्कुलर में कहा गया है कि सांप्रदायिक भावनाओं और सांप्रदायिक पूर्वाग्रह को खत्म करने की जरूरत पर ज्यादा जोर नहीं दिया जा सकता है।
सदन में हंगामा
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