इंदिरा के विदेश हाथ का जुमला, वीपी सिंह ने खुद के लिए मांगी सजा, 15 CM बदले फिर भी मुरादाबाद दंगों की रिपोर्ट कभी नहीं हुई सार्वजनिक, अब योगी करेंगे ये काम

Moradabad
Prabhasakshi
अभिनय आकाश । May 18 2023 2:34PM
आपको ये जानकर हैरानी होगी कि 1980 से अब तक प्रदेश में 15 मुख्यमंत्री बने, लेकिन कोई भी इस रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखने की हिम्मत नहीं जुटा सका।

उत्तर प्रदेश की एक ऐसी तस्वीर जिसे छुपाकर सत्ता में बने रहने की कोशिश की गई। आज हम 1980 में हुए मुरादाबाद दंगों की बात करेंगे। आप कह रहे होंगे की 43 साल पुराने दंगे की बात आज हम क्यों कर रहे हैं। दरअसल, आज तक उत्तर प्रदेश में कई सरकारें आई और चली गईं। लेकिन किसी भी सरकार ने उन दंगों की जांच रिपोर्ट को कभी भी सार्वजनिक नहीं होने दिया। लेकिन योगी सरकार ने मुरादाबाद दंगों की जांच रिपोर्ट को 43 साल बाद सार्वजनिक करने का फैसला किया। उत्तर प्रदेश सरकार ने घोषणा की है कि वो 1980 के महीनों तक चले दंगों पर जस्टिस एमपी सक्सेना आयोग की रिपोर्ट विधानसभा में पेश करेगी, जिसमें राज्य के कई जिलों में करीब 300 लोग मारे गए थे। सक्सेना उस वर्ष 1 अगस्त को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त हुए थे। उन्होंने नवंबर 1983 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। लेकिन इसकी सामग्री को कभी सार्वजनिक नहीं किया गया और इसकी सिफारिशों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि 1980 से अब तक प्रदेश में 15 मुख्यमंत्री बने, लेकिन कोई भी इस रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखने की हिम्मत नहीं जुटा सका।

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1980 में ऐसा क्या हुआ था?

13 अगस्त 1980 को मुरादाबाद शहर के ईदगाह में शुरू हुई हिंसा संभल, अलीगढ़, बरेली, इलाहाबाद (अब प्रयागराज) और मुरादाबाद के ग्रामीण इलाकों में 1981 की शुरुआत तक जारी रही। तत्कालीन राज्य गृह मंत्री स्वरूप कुमारी बख्शी ने विधानसभा को बताया कि इसमें मरने वालों की संख्या 289 थी। यह पहली बार था विभाजन के बाद यूपी ने इस पैमाने की सांप्रदायिक हिंसा देखी थी। जब उत्तरी और पूर्वी भारत के बड़े हिस्से जल रहे थे, संयुक्त प्रांत काफी हद तक शांतिपूर्ण रहा। मुरादाबाद ईदगाह के पास अनुसूचित जाति का मोहल्ला था। 13 अगस्त को ईद-उल-फितर पर ईदगाह में 50,000 से ज्यादा मुसलमान नमाज के लिए जमा हुए थे। एक अफवाह फैल गई कि प्रार्थना स्थल पर एक आवारा जानवर देखा गया है। घटना स्थल पर भारी पुलिस तैनाती थी और जैसे ही मांग की गई कि जानवर को हटा दिया जाना चाहिए, एक गरमागरम बहस शुरू हो गई और पुलिस पर पत्थर फेंके गए। जवाब में पुलिस और प्रांतीय सशस्त्र कांस्टेबुलरी (PAC) ने गोलियां चलाईं। फायरिंग और भगदड़ दोनों में कथित रूप से कई लोग मारे गए क्योंकि लोगों ने भागने की कोशिश की। पत्थर लगने से मौके पर मौजूद मजिस्ट्रेट डीपी सिंह गंभीर रूप से घायल हो गए और बाद में उनकी मौत हो गई।

राज्य सरकार की प्रतिक्रिया

यूपी विधानसभा में वीपी सिंह 9 जून, 1980 को मुख्यमंत्री बने थे। उन्होंने कहा कि 12 अगस्त को खुफिया शाखा ने रिपोर्ट दी थी। कई लोगों को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया था और मार्च 1981 में होली के बाद ही रिहा किया गया था। सिंह ने उनके लंबे कारावास को उचित ठहराते हुए कहा कि उन्हें "निर्दोष मृत या जेल में निर्दोष" के बीच चयन करना था।

इंदिरा का 'विदेशी हाथ'

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उस साल जनवरी में जनता पार्टी के प्रयोग के फेल होने के बाद सत्ता में लौटी थीं। उन्होंने आरोप लगाया कि एक "विदेशी हाथ" देश की स्थिरता को चोट पहुँचाना चाहता है। लेकिन प्रभावित इलाकों का दौरा करने के बाद उन्होंने कहा कि कोई विदेशी हाथ नहीं है। यह वह दौर था जब इंदिरा अक्सर कई मुद्दों के लिए "विदेशी हाथ" का हौवा खड़ा करती थीं। दंगों के दो दिन बाद, अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में इंदिरा ने कहा कि मुरादाबाद की घटना ने हमारे देश को चोट पहुंचाई है। मैं कहना चाहूंगा कि जिसने भी शरारत की है या दोषी है, चाहे वह अधिकारी हो या गैर-सरकारी, उसे बहुत कड़ी सजा दी जाएगी। फिर भी मुरादाबाद दंगों की हिंसक लहरें उसी दिन दिल्ली के बल्लीमारान और चावड़ी बाजार इलाकों में देखी गईं और कर्फ्यू लगाना पड़ा और सेना बुलानी पड़ी।

आरएसएस में शामिल होने वाले सरकारी कर्मचारियों को अनुशासनात्मक कार्रवाई की धमकी

तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्य मंत्री योगेंद्र मकवाना ने बीजेपी (जिसका गठन अप्रैल 1980 में हुआ था) और आरएसएस पर दंगों की साजिश रचने का आरोप लगाया। 28 अक्टूबर 1980 को इंदिरा की सरकार ने 30 नवंबर, 1966 के एक पुराने सर्कुलर को दोहराया, जिसमें कहा गया था कि आरएसएस या जमात-ए-इस्लामी में शामिल होने वाले सरकारी कर्मचारियों को अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। देश में वर्तमान स्थिति के संदर्भ में सरकारी सेवकों के लिए एक धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण सुनिश्चित करने की आवश्यकता और भी अधिक महत्वपूर्ण है। अक्टूबर 1980 के सर्कुलर में कहा गया है कि सांप्रदायिक भावनाओं और सांप्रदायिक पूर्वाग्रह को खत्म करने की जरूरत पर ज्यादा जोर नहीं दिया जा सकता है।

सदन में हंगामा

विपक्ष ने दंगों को रोकने में विफल रहने के लिए बार-बार राज्य और केंद्र सरकारों की आलोचना की थी। मुंबई उत्तर से सांसद रवींद्र वर्मा ने "विदेशी हाथ" थीसिस और सरकार की प्रतिक्रिया का मज़ाक उड़ाते हुए कहा था कि सरकार कहती है पूरे देश में विदेशी हाथ हैं और मेरे माननीय मित्र उठते हैं और कहते हैं कि हम विदेशी हाथ काट देंगे। परन्तु हमने एक भी हाथ ऐसा नहीं देखा जो उन्होंने काटा हो। दिसंबर में संसद के शीतकालीन सत्र में मुस्लिम लीग के जीएम बनतवाला ने सांप्रदायिक दंगों से उत्पन्न स्थिति पर सदन में गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए एक प्रस्ताव पेश किया। फॉरवर्ड ब्लॉक के चित्त बसु ने आरोप लगाया कि मुरादाबाद और कुछ नहीं बल्कि मुसलमानों पर राज्य की बेलगाम हिंसा का एक उदाहरण है। यूपी विधानसभा में जनता पार्टी के विधायक राजेंद्र सिंह ने मुरादाबाद में पुलिस कार्रवाई की तुलना जलियांवाला बाग हत्याकांड से की थी। तब वीपी सिंह ने जवाब दिया था कि मैं कोई स्पष्टीकरण देने के लिए खड़ा नहीं हुआ हूं। मैं अपने लिए सज़ा माँगने के लिए खड़ा हुआ हूँ। 

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