गौतमबुद्ध, शंकराचार्य से गांधी तक, NTR-आडवाणी से राहुल तक, भारतीय राजनीति को बदलने वाली यात्राएं

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Prabhasakshi
अभिनय आकाश । Dec 30 2023 2:34PM

राहुल गांधी जैसी पदयात्राएं देश में पहले भी हुईं हैं। चाहे वो उनकी दादी इंदिरा गांधी के द्वारा की गई हो या फिर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की तरफ से निकाली गई एकता यात्रा हो। यात्राओँ के उस सिलसिले में इतिहास के पन्नों को खोलते हुए आज आपको देश की अहम सियासी यात्राओं के बारे में बताएंगे।

हमारी राजनीति में यात्राएं जनसमर्थन हासिल करने का सटिक मंत्र रही है। देश में गौतमबुद्ध, शंकराचार्य, गुरुनानक से लेकर महात्मा गांधी और विनोबा भावे तक की पदयात्रा का अपना स्वर्णिम इतिहास रहा है। महात्मा गांधी जब चला करते थे तो लोग जुड़ते चले जाते थे। वो कारवां इतना बड़ा हुआ करता था कि परिवर्तन की दिशा इस देश को आजादी में ले गई। हम सब जानते हैं कि राजनीतिक तौर पर सबसे पहली पदयात्रा महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुई दांडी मार्च है। जिससे न सिर्फ बॉम्बे सॉल्ट एक्ट की धारा 39 खत्म हुई बल्कि नमक बनाने पर जेल और भारी जुर्माना लगाने का कानून भी खत्म हुआ। कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अगले साल 14 जनवरी से 30 मार्च के बीच मणिपुर से महाराष्ट्र तक राहुल गांधी की भारत न्याय यात्रा की घोषणा की है। राहुल गांधी जैसी पदयात्राएं देश में पहले भी हुईं हैं। चाहे वो उनकी दादी इंदिरा गांधी के द्वारा की गई हो या फिर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की तरफ से निकाली गई एकता यात्रा हो। यात्राओँ के उस सिलसिले में इतिहास के पन्नों को खोलते हुए आज आपको देश की अहम सियासी यात्राओं के बारे में बताएंगे। 

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1982 की चैतन्य रथमयात्रा

1972 से 1982 के बीच आंध्र प्रदेश में दो विधानसभा चुनाव हुए। इस दौरान पांच बार मुख्यमंत्री बदले और एक बार राष्ट्रपति शासन लगा। जनता एक मजबूत और स्थिर सरकार चाहती है। राजनीति में एंट्री होती है तमिल सुपरस्टार एनटी रामाराव की और उन्होंने तेलगू देशम पार्टी बनाई। हैदराबाद से शुरू कर पूरे आंध्र प्रदेश में 75000 किलोमीटर की चैतम्य रथमय़ात्रा की। एनटी रामाराव ने इस दौरान चार बार पूरे राज्य का चक्कर लगाया। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में उनका नाम शुमार है। फिल्मी अंदाज में चारों ओर घूमने वाली फ्लड लाइट्स, माइक और स्पीकर के बीच जब एनटीआर भगवा पहनकर चैतन्य रथम के बीचों बीच से निकलकर वैन के ऊपर आते थे तो आंध्र मुग्ध हो जाता था। एनटीआर रोज करीब डेढ़ सौ किलोमीटर सफर करते। खेतों में काम कर रहे लोगों से मिलते। रैलियों करते। एक दिन में सौ-सौ जगह रुकते। रथ ही उनका प्रचार, घर, मंच सबकुछ था। एनटीआर का इतना क्रेज था कि लोग 72-72 घंटे उनका इंतजार करते। एनटीआर जब आते तो महिलाएं उनकी आरती उतारती।

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चंद्रशेखर की भारत एकता यात्रा और फिर प्रधानमंत्री का सफर

एक यात्रा आज से 39 साल पहले एक नेता ने की थी जिसे इंदिरा गांधी का युवा तुर्क कहा जाता था। उसने भी बिखरती पार्टी और कार्यकर्ताओँ में जोश भरने के लिए भारत एकता यात्रा की थी। जिसके बाद वो आगे चलकर देश का प्रधानमंत्री बना। चंद्रशेखर ने 6 जून 1983 को कन्याकुमारी के विवेकानंद स्मारक से भारत यात्रा की शुरुआत की। गुलाम भारत में जैसे गांधी ने पदयात्राओं के जरिये भारत की थाह लिए उसी तरह आजाद भारत की समस्याओं को चंद्रशेखर ने अपने पैरों से नापने की कोशिश की थी। जब चंद्रशेखर साल 1983 में तमिलानडु के एक गांव से गुजर रहे थे तो वहां पगडंडी पर एक बुजुर्ग महिला लालटेन लेकर खड़ी थी। गांव की एक बुजुर्ग महिला ने पूछा- पानी कब मिलेगा? पीने का पानी गांव में आता नहीं है। चंद्रशेखर ने कहा कि दिल्ली जाकर कहूंगा। जब संसद में वो भाषण देने के लिए खड़े हुए तो उन्होंने 6 चीजें ही बताई- रोटी, कपड़ा, मकान, पढ़ाई, दवाई और पानी। चंद्रशेखर ने संसद में कहा कि सरकारें चाहे जो आंकड़े पेश कर लें लेकिन देश की अधिकाशं आबादी आज भी इन बुनियादी चीजों से महरूम है। गांव की पगडंडियों और कस्बों से होते हुए करीब 3700 किलोमीटर की ये पद यात्रा 25 जून 1984 को दिल्ली के राजघाट पर समाप्त हुई। चंद्रशेखर ने भारत यात्रा की शुरुआत 3500 रुपए से की थी। इस दौरान खर्च यात्रा में शामिल लोग उठाते थे। वीपी सिंह की सरकार गिरने के बाद कांग्रेस ने चंद्रशेखर को पीएम पद के लिए समर्थन किया और 10 नवंबर 1990 को वो प्रधानमंत्री बने।

सबसे चर्चित रही आडवाणी की राम रथ यात्रा

25 सितंबर 1990 को तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने रामरथ यात्रा शुरू की। जिसका उद्देश्य सोमनाथ से अयोध्या तक रथ के जरिए जाना था। टोयोटा मिनी बस को रथ का रूप दिया गया। गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश में दंगे हो गए। रथयात्रा जब समस्तीपुर पहुंतो तो आ़डवाणी को लालू यादव ने गिरफ्तार करवा दिया। रथ यात्रा ने बीजेपी की सीटें 1991 के चुनाव में 85 से बढ़ाकर 120 तक पहुंचा दी। 

ट्रेन की सेंकेंड क्लास बागी में बैठे राजीव गांधी

1989 में चुनाव में हार मिलने के बाद राजीव गांधी ने साल 1990 में भारत यात्रा की शुरुआत की थी।1990 में पूर्व पीएम राजीव गांधी ने भारत रेल यात्रा की। उन्होंने ट्रेन के दूसरे दर्जे में बैठकर देशभर का दौरा किया, जिसके बाद उनका सियासी कद काफी बढ़ गया। हालांकि उनकी यात्रा उम्मीदों के मुताबिक परिणाम देने में कारगर साबित नहीं रही। कांग्रेस के अंतर्विरोध की वजह से यात्रा को सफल बनाने में उतनी कामयाबी हासिल नहीं हो पाई। जितनी उम्मीद की जा रही थी। राजीव आम लोगों के साथ अपनी यात्रा के जरिए जुड़ना चाह रहे थे। लेकिन पार्टी के भीतर गुटबाजी की वजह से भारत यात्रा को सफल बनाने में कामयाब नहीं हो पाए।

वाईएसआर रेड्डी की पदयात्रा 

अब बात उस यात्रा की जो सूखे की समस्या के चलते निकाली गई। आंध्र प्रदेश पद यात्रा। 10 साल से राज्य में टीडीपी की सरकार होने की वजह से एंटी इंकमबेंसी और लोगों के गुस्से को देखते हुए वाईएस राजशेखर रेड्डी ने इस यात्रा की शुरुआत की। 1500 किलोमीटर की ये यात्रा चवल्ला शहर से शुरू हुई औऱ 11 जिलों से होकर गुजरी। यात्रा से रेड्डी को अपार जन समर्थन मिला और 2004 के विधानसभा चुनाव में 294 में से 194 सीटों पर जीत के साथ उनकी सरकार बनी। 

कांग्रेस की न्याय यात्रा 

2024 लोकसभा चुनाव में अपनी जमीनी पकड़ मजबूत करने के लिए कांग्रेस ने फिर से जमीनी यात्रा की योजना बनाई है। इसके तहत कांग्रेस अपने पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की अगुवाई में भारत न्याय यात्रा शुरू करने जा रही है। बीते साल राहुल गांधी यात्रा पर निकले थे तब से ये कयास लगाए जा रहे थे कि वो आने वाले दिनों में एक और यात्रा निकाल सकते हैं। 27 दिसंबर को इस यात्रा का भी रूट फाइनल हो गया। इस यात्रा का नाम भारत न्याय यात्रा होगा। मणिपुर के इंफाल से इसकी शुरुआत होगी। पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे इस यात्रा को हरी झंडी दिखाएंगे। 20 मार्च को यात्रा का समापन मुंबई में होगा। कांग्रेस की योजना है कि लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले यानी आदर्श आचार संहिता लागू होने से पहले इस यात्रा को पूरा कर लिया जाए। यात्रा को उनकी भारत जोड़ो यात्रा का दूसरा चरण माना जा रहा है, जो उन्होंने 2022 के अंत से इस साल की शुरुआत तक की थी। ये अंतर यात्रा के स्वरूप से लेकर थीम तक में है। पहले चरण में भारत जोड़ने की बात कही गई थी इसमें न्याय की बात है। 

क्या होगा यात्रा का रूट

14 राज्यों और 85 जिलों से होकर ये यात्रा गुजरेगी। मणिपुर से इसकी शुरुआत होगी, नागालैंड, असम, मेघालय होते हुए पश्चिम बंगाल में आएगी। फिर बिहार, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और फिर राजस्थान होते हुए गुजरात पहुंचेगी। फिर महाराष्ट्र में इसका आखिरी पड़ाव होगा। यह पूरी यात्रा लगभग 55 दिन की होगी, जिसमें रोज लगभग 120 किलोमीटर की दूरी तय की जाएगी। लगभग रोज एक बड़ी सभा होगी और हर दिन लगभग पांच से सात किमी पैदल यात्रा चलेगी। सभा और पैदल यात्रा शहरों और कस्बों में होगी। राहुल गांधी ने साल 2022 में भारत जोड़ो यात्रा की थी तो कन्याकुमारी से कश्मीर तक इसका रूट था। इस यात्रा में भारत जोड़ो यात्रा की तरह रोज राहुल गांधी समाज के अलग-अलग तबके से संवाद करेंगे। यात्रा के दौरान कांग्रेस को लोगों जो फीडबैंक मिलेगा इसका इस्तेमाल कांग्रेस चुनावी मैनिफेस्टो बनाने के लिए किया जाएगा। 

इसलिए मणिपुर से शुरू हो रही यात्रा  

यात्रा की शुरुआत मणिपुर से रसे करने के के पीछे की वजह को साफ करते हुए वेणुगोपाल ने कहा कि यह देश का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। साथ ही पार्टी उस पूर्वोत्तर राज्य के लोगों के जख्मों पर मरहम लगाने की प्रक्रिया शुरू करना चाहती है, जहां जातीय हिंसा में 200 से ज्यादा लोग मारे गए। उधर, कांग्रेस लोकसभा चुनाव के लिए महाराष्ट्र के नागपुर से कैंपेन शुरुआत करेगी। गुरुवार को पार्टी एक विशाल रैली करेगी। कांग्रेस के 139वें स्थापना दिवस पर 'हैं तैयार हम' रैली का आयोजन होगा।

इंडिया गठबंधन के नेता भी होंगे शामिल

इस यात्रा में इंडिया के घटक दल भी उसी तरह शामिल होंगे, जैसे भारत जोड़ो यात्रा के दौरान हुए थे। पार्टी के एक सीनियर नेता की माने तो जिन जिन राज्यों से होकर ये यात्रा गुजरेगी वहां-वहां मौजूद घटक दल के साथियों के इससे जुड़ने की उम्मीद है। कांग्रेस की ओर से इसे लेकर घटक दलों से संपर्क भी किया जाएगा। 4 जनवरी को होने वाली बैठक में ये तय किया जाएगा कि यात्रा किस राज्य में कितने जिलों या शहरों से होकर गुजरेगी। रैली कहां होगी।  

भारत जोड़ो से कितनी अलग

यह भारत जोड़ो यात्रा का अगला चरण होने के बावजूद कई मायनों में उससे अलग है। यह अंतर यात्रा के स्वरूप से लेकर थीम तक में है। पहले चरण में भारत जोड़ने की बात कही गई थी। इसमें न्याय की बात है। पहली यात्रा दक्षिण से उत्तर की ओर निकाली गई थी, जो कन्याकुमारी से शुरू होकर कश्मीर में खत्म हुई थी। लगभग साढ़े चार महीने की यात्रा में 3600 किलोमीटर की दूरी तय की गई। कांग्रेस का कहना था कि भारत जोड़ो यात्रा का मुख्य मकसद देश में वढ़ रही नफरत, डर और कट्टरता के खिलाफ लड़ाई थी। भारत जोड़ो यात्रा कांग्रेस ने दो आम चुनावों के बीच में कुछ राज्यों के असेवली चुनावों के मद्देनजर की थी। 

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