1962 भारत-चीन युद्ध में छुड़ाए थे दुश्मन के छक्के! अब रिक्शा चलाने को मजबूर हुआ जवान

1962 India-China war
रेनू तिवारी । Mar 3 2021 12:32PM

पूर्व सेना के जवान को इस हिम्मत के लिए मैडल देकर सम्मानित भी किया गया था लेकिन अब लगभग 50 साल बाद परिस्थितियां काफी बदल गयी है। हमारें देश में सैनिकों का काफी सम्मान किया जाता है लेकिन देश का पूर्व जवान इस समय अपना परिवार चलाने के लिए रिक्शा चला रहा है।

अपने इतिहास में हिंदुस्तान ने कई लड़ाइयां लड़ी और लगभग हर बार देश को जीत का गौरव मिला। लेकिन एक युद्ध ऐसा था जो दरअसल युद्ध नहीं छल की दास्तां थी। जब दोस्ती की पीठ पर दगाबाजी का खंजर चलाया जाता है तो उसे 1962 का भारत चीन युद्ध कहते हैं। तब दोस्ती का भरोसा हिंदुस्तान का था, विश्वासघात का खंजर चीन का। उस युद्ध में हार से ज्यादा अपमान का लहू निकला। 1962 के भारत चीन युद्ध को कौन भूल सकता है। 62 कि वह तबाही को कौन भूल सकता है जो चीन ने बरपाई लेकिन उसके साथ ही हिंदुस्तान ने याद रखा एक सबक कि दोबारा 62 जैसी नौबत ना आए।

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इस युद्ध में हजारों सैनिकों ने अपनी जान गवाई थी। कई लोग उस लड़ाई में बुरी तरह गायल भी हो गये थे। इस युद्ध में सीना तान कर दुश्मनों से शेख अब्दुल करीम ने भी लड़ाई की थी। पूर्व सेना के जवान को इस हिम्मत के लिए मैडल देकर सम्मानित भी किया गया था लेकिन अब लगभग 50 साल बाद परिस्थितियां काफी बदल गयी है। हमारें देश में सैनिकों का काफी सम्मान किया जाता है लेकिन देश का पूर्व जवान इस समय अपना परिवार चलाने के लिए रिक्शा चला रहा है। पूर्व सेना के जवान और स्टार मेडल अवार्डी अपनी रोजी-रोटी चलाने के लिए हैदराबाद की सड़कों पर ऑटो रिक्शा चलाते हैं। 1971 में  भारत-चीन युद्ध में उनके योगदान के लिए शेख अब्दुल करीम को एक विशेष पुरस्कार मिला। 

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पूर्व सैनिक अब्दुल करीम ने बताया कि इंदिरा गांधी के शासनकाल के दौरान कई जवानों को पद से हटा दिया गया था। इस जवानों में वो भी एक थे। जब करीम सेना में थे तब उन्होंने सरकारी जमीन के लिए भी आवेदन किया था। इस दौरान उन्हें तेलंगाना के गोलापल्ली गांव में पांच एकड़ जमीन दी गई। लेकिन वक्त जैसे-जैसे बीता वह पूरी जमीन गांव के 5 लोगों में बांट दी गयी। शिकायत की थी इस चीज की लेकिन अभी इस पर काम चल रहा है। अब अपने परिवार का संभालने के लिए शेख अब्दुल करीम को रिक्शा चलाना पड़ा रहा है। करीम ने अपना दुख बयां करते हुए बताया कि सेना से निकाल दिए जाने के बाद उन्हों काफी दुखों का सामना करना पड़ा। उनके पास कोई घर भी नहीं था रहने के लिए। वह अपना परिवार और रोजी-रोटी के लिए 71 साल की आयु में रिक्शा चला रहे हैं। जमीन का काम अभी भी दफ्तरों में अटका हुआ है। 

आपको बता दें कि इंदिरा गांधी जब भारत की प्रधानमंत्री थी तब उन्होंने कई सैनिकों को उनके पद से हटा दिया था। जिसके बाद कई ऐसे सैनिक थे जो बेरोजगार हो गये थे। इन्हीं में से एक पूर्व सैनिक अब्दुल करीम भी थे। 

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