आंबेडकर ने संस्कृत को आधिकारिक भाषा बनाने का प्रस्ताव दिया था : प्रधान न्यायाधीश बोबडे

Ambedkar

प्रधान न्यायाधीश शरद बोबडे ने बुधवार को कहा कि डॉ. भीमराव आंबेडकर ने संस्कृत को आधिकारिक बनाने का प्रस्ताव दिया था क्योंकि वह राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों को अच्छी तरह समझते थे और यह भी जानते थे कि लोग क्या चाहते हैं।

नागपुर। देश के प्रधान न्यायाधीश शरद बोबडे ने बुधवार को कहा कि डॉ. भीमराव आंबेडकर ने संस्कृत को आधिकारिक बनाने का प्रस्ताव दिया था क्योंकि वह राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों को अच्छी तरह समझते थे और यह भी जानते थे कि लोग क्या चाहते हैं। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि प्राचीन भारतीय ग्रंथ ‘न्यायशास्त्र’ अरस्तू और पारसी तर्क विद्या से जरा भी कम नहीं है और ‘‘कोई कारण नहीं है कि हमें इसकी अनदेखी करनी चाहिए और अपने पूर्वजों की प्रतिभाओं का लाभ ना उठाया जाए।’’ न्यायमूर्ति बोबडे महाराष्ट्र राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (एमएनएलयू) के शैक्षणिक भवन के उद्घाटन के दौरान संबोधित कर रहे थे।

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महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, केंद्रीय मंत्री और नागपुर से सांसद नितिन गडकरी तथा अन्य लोगों ने डिजिटल तरीके से आयोजित कार्यक्रम में भागीदारी की। संविधान निर्माता बी आर आंबेडकर को उनकी 130 वीं जयंती पर याद करते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘आज सुबह मैं थोड़ा उलझन में था कि किस में मुझे भाषण देना चाहिए। आज डॉ. आंबेडकर की जयंती है जो मुझे याद दिलाती है कि बोलने के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली और काम के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली के बीच का संघर्ष बहुत पुराना है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय को कई आवेदन मिल चुके हैं कि अधीनस्थ अदालतों में कौन सी इस्तेमाल होनी चाहिए किंतु मुझे लगता है इस विषय पर गौर नहीं किया गया है।’’ प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘लेकिन डॉ. आंबेडकर को इस पहलू का अंदाजा हो गया था और उन्होंने यह कहते हुए एक प्रस्ताव रखा कि भारत संघ की आधिकारिक संस्कृत होनी चाहिए।’’

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न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा, ‘‘आंबेडकर की राय थी कि चूंकि उत्तर भारत में तमिल स्वीकार्य नहीं होगी और इसका विरोध हो सकता है जैसे कि दक्षिण भारत में हिंदी का विरोध होता है। लेकिन उत्तर भारत या दक्षिण भारत में संस्कृत का विरोध होने की कम आशंका थी और यही कारण है कि उन्होंने ऐसा प्रस्ताव दिया किंतु इस पर कामयाबी नहीं मिली।’’ देश के प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि आंबेडकर को ना केवल कानून की गहरी जानकारी थी बल्कि वह सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों से भी अच्छी तरह अवगत थे। न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा, ‘‘वह जानते थे कि लोग क्या चाहते हैं, देश का गरीब क्या चाहता है। उन्हें इन सभी पहलुओं की अच्छी जानकारी थी और मुझे लगता है कि इसी वजह से उन्होंने यह प्रस्ताव दिया होगा।’

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि ‘लॉ स्कूल’ कानूनी पेशे की ‘नर्सरी’ है। उन्होंने कहा, ‘‘लॉ स्कूल नर्सरी के समान है जहां से हमारे कानूनी पेशेवरों के साथ न्यायाधीशों की पौध भी तैयार होती है। महाराष्ट्र राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के साथ उनमें से कई लोगों के सपने साकार होते हैं।’’ प्रधान न्यायाधीश बोबडे 23 अप्रैल को सेवानिवृत्त हो जाएंगे। न्यायमूर्ति एन वी रमण अगले प्रधान न्यायाधीश होंगे।

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