Amit Shah Birthday: कभी भाजपा नेताओं के लिए चिपकाए थे पोस्टर, आज खुद देश के पोस्टर ब्वॉय बने

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अभिनय आकाश । Oct 22 2019 11:42AM

अमित शाह की शालीनता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जब एक टीवी इंटरव्यू में अमित शाह से यह सवाल किया गया कि भावी अध्यक्ष के बाद उनकी भूमिका क्या होगी तो इसके जवाब में उन्होंने कहा कि जो भी अध्यक्ष जी'' तय करेंगे। खुद बीते पांच वर्षों से ज्यादा समय से पार्टी का अध्यक्ष रहा हो और जिसने भाजपा से अर्श से फर्श तक पहुंच गई। यह दिखाता है कि भाजपा में किस तरह परंपराओं का सम्मान किया जाता है। 22 अक्टूबर को गृह मंत्री अमित अनिलचंद्र शाह का जन्मदिन है।

अमित शाह प्रधानमंत्री से 14 साल छोटे हैं और इस वक्त उनकी उम्र 54 साल है। अमित शाह और प्रधानमंत्री के रिश्तों और राजनीति के परिदृश्य को समझने की कोशिश करेंगे तो देखेंगे, प्रधानमंत्री कार से उतरते हैं और अमित शाह चुपचाप एक सामान्य कार्यकर्ता की तरह फूलों का एक गुलदस्ता देते हैं। अमित शाह और नरेंद्र मोदी 1987 से एक-दूसरे को जानते हैं। उनके रिश्तों में कितनी अनऔपचारिकता होगी, दुनिया की नजर में इन दो नेताओं को बराबर देखे जाता रहा है। लेकिन बारिक से देखने पर यह साफ प्रतीत होता है कि नेता कौन है और बाॅस कौन है।

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पब्लिक लाइफ में किस हद तक औपचारिक और अनिुशासित होना पड़ता है, राजनीति के छात्रों के शोध में शाह एक मिसाल की तरह हैं। शाह की शालीनता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जब एक टीवी इंटरव्यू में अमित शाह से यह सवाल किया गया कि भावी अध्यक्ष के बाद उनकी भूमिका क्या होगी तो इसके जवाब में उन्होंने कहा कि जो भी अध्यक्ष जी' तय करेंगे। खुद बीते पांच वर्षों से ज्यादा समय से पार्टी का अध्यक्ष रहा हो और जिसने भाजपा से अर्श से फर्श तक पहुंच गई। यह दिखाता है कि भाजपा में किस तरह परंपराओं का सम्मान किया जाता है। 22 अक्टूबर को गृह मंत्री अमित अनिलचंद्र शाह का जन्मदिन है। 

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नरेंद्र मोदी के सबसे बड़े सेनापति और मोदी की आंख, कान और जुबान समझे जाने वाले अमित शाह ही है जिनकी आंखों से पीएम मोदी चुनावी राजनीति को देखते, विरोधियों की आवाज को सुनते और सलाह से विपक्षियों पर बरसते हैं। ख़ैर ये सब तो बातें हैं बातों का क्या, लेकिन ये शाह का कमाल ही था जिसने पहले यूपी फतह फिर दिल्ली विजय से मोदी को अजेय बनाया। बीजेपी तो पहले भी जीत चुकी है लेकिन ऐसी जीत पहले कभी नहीं मिली। 182 की चौखट पर हांफने वाली बीजेपी अपने बूते बहुमत के आंकड़े को पार किया। दसों दिशाओं से आने वाली जीत आती चली गई। मोदी के अश्वमेध रथ पर अमित शाह जैसा सारथी घर्र-घर्र करते हुए आगे बढ़ा तो उसकी चाप से हिन्दुस्तान का मुकद्दर रचने चले नए सिंकंदर की जयजयकार सुनाई पड़ने लगी। 2019 में भाजपा को मिली इस विराट सफलता के मैन ऑफ द मैच नरेंद्र मोदी और कप्तान अमित शाह की जोड़ी पूरे देश में ऐसी दौड़ी की क्या भोपाल क्या जयपुर क्या बंगाल एक-एक कर सारे प्रदेश भाजपा की झोली में आकर गिरने लगे। 

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जिस भाजपा के बारे में कहा जाता था कि 'बैठक, भोजन और विश्राम... भाजपा के यह तीन काम' शाह ने इस धारणा को भी ध्वस्त कर दिया। वह खुद तो मेहनत करते ही हैं, कार्यकर्ताओं को भी प्रेरित करते हैं। शाह, जमीन से फीडबैक लेकर प्रधानमंत्री तक उसे पहुंचाते हैं. शाह पहले ऐसे बीजेपी अध्यक्ष हैं, जिनके कार्यकाल में पूर्वोत्तर तक पार्टी की धमक पहुंच रही है। वो लड़का जो कभी अटल बिहारी वाजपेयी और भाजपा के दूसरे दिग्गज नेताओं के लिए पोस्टर चिपकाता था, आज खुद पार्टी का और देश का पोस्टर ब्वॉय बन चुका है। लोकसभा चुनाव 2019 में अपने सिसायी भाषण में नक्सलवाद, आतंकवाद, माओवाद को समाप्त करने के संकल्प, बांग्लादेशी घुसपैठियों को देश से बाहर करने के दावे और देश विरोधी गतिविधि करने वालों को जेल की सलाखों के पीछे भेजने की बात शाह यूं ही नहीं कर रहे थे। ये हुंकार सिर्फ चुनावी नहीं था, ये ललकार सिर्फ चुनावी नहीं थी। अमित शाह के इन भाषणों के पीछे था पूरा एजेंडा जिनके मायने तब समझ आए जब 30 मई को अमित शाह पहली बार मोदी कैबिनेट का हिस्सा हो गए। शपथ के बाद पीएम मोदी ने उन्हें गृह मंत्रालय की कमान सौंपकर यह जता दिया कि मोदी सरकार 2 में उनकी हैसियत नंबर दो की होगी।

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अमित शाह कुछ अलग तरह के गृह मंत्री हैं और पारंपरिक राजनीति में विश्वास नहीं रखते हैं। जम्मू कश्मीर की समस्या पर वर्तमान सरकार के नजरिए को स्पष्टता से रखते हुए अमित शाह ने सदन में साफ कर दिया कि एकता अखंड और संप्रुभता के सूत्र में भारत को बांधना है और इसमें धारा 370 सबसे बड़ी अड़चन है। अपने दूसरे कार्यकाल में मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर को टॉप एजेंडे में रखा। शाह की खासियत है कि वो जिस काम को करने की सोचते हैं उसे तो उन्हें बस करना होता है किसी भी कीमत पर करना होता है। देश की आंतरिक सुरक्षा की बागडोर ऐसे अ’सरदार’ फैसले लेने वाले गृह मंत्री के हाथों में हो तो फिर आम-आवाम भी उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चलने को तैयार रहती है क्योंकि उन्हें पता है कि वो महफूज हैं और देश सब संभाल लेंगे। हालांकि अपने जन्मदिन पर शाह ना तो गुजरात स्थित अपने पैतृक आवास पर होंगे ना ही कोई जश्न मनाएंगे। इसकी वजह है कि वह दौरे पर होंगे। जी हां, आपने सही पढ़ा महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनाव तो बीत गए फिर किस बात का दौरा! दरअसल, यही शाह की पहचान है और उनके कार्य करने का तरीका। 

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