डूबते सूर्य को दिया गया अर्घ्य, छठी मैया के जयघोष से गूंज उठा पूरा देश, हर घाट पर उमड़ी आस्था की लहर

बिहार में यह पर्व अपने पारंपरिक वैभव के साथ-साथ इस बार राजनीतिक चमक से भी सराबोर रहा। चुनावी मौसम में भी छठ का सूर्य किसी दल का नहीं, बल्कि जनभावना का प्रतीक बन गया। गंगा घाटों पर उमड़ी लाखों की भीड़ ने एक स्वर में कहा— “सूर्य ही साक्षी हैं, श्रद्धा ही पहचान है।''
देशभर में आज लोक आस्था का महापर्व छठ अपने चरम पर रहा। जब डूबते सूरज को अर्घ्य देने का क्षण आया, तब हर घाट, हर जलाशय, हर छत और हर बालकनी से भक्ति की गूंज उठी— “छठी मइया के जयकारे लगल बा…” यह दृश्य अद्भुत, अलौकिक और अविस्मरणीय था। सर पर टोकरी लिए श्रद्धालु पुरुष, सिर पर चुनरी ओढ़े गीत गाती महिलाएं और उनके संग चलती बच्चों की टोली, पूरा वातावरण मानो एक जीवंत लोककथा बन गया था। सूर्यदेव के समक्ष हाथ जोड़े लोगों में भक्ति की आभा झलक रही थी और हर श्रद्धालु के चेहरे पर ‘आस्था का तेज’ स्पष्ट दिख रहा था।
छठ व्रतियों ने जब डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया, तब ऐसा प्रतीत हुआ मानो जल ही नहीं, आत्मा भी सूर्य में विलीन हो रही हो। व्रतियों के होंठों पर लोकगीत थे और वातावरण में धूप, गन्ना, ठेकुआ और लाल सूरज की आभा एक साथ घुलमिलकर संस्कार, श्रद्धा और संस्कृति का संगम रच रही थी। देश के हर हिस्से में, चाहे वह दिल्ली-नोएडा का आधुनिक अपार्टमेंट हो या पटना का गंगाघाट—छठ की भव्यता का एक ही रंग था- समर्पण।
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दिल्ली-एनसीआर में जब श्रद्धालुओं ने एक स्वर में सूर्यदेव को नमन किया, तो लगा कि महानगरों की भागदौड़ के बीच भी भारतीय परंपरा का दीपक अभी जल रहा है। वहीं राज्य सरकारों और सामाजिक संगठनों की ओर से की गई व्यवस्थाओं ने इस पर्व को और भी सुव्यवस्थित बना दिया। हर घाट पर सुरक्षा, स्वच्छता और सेवा के भाव का सुंदर समन्वय देखने को मिला जिससे श्रद्धालु खुश नजर आये।
उधर, बिहार में यह पर्व अपने पारंपरिक वैभव के साथ-साथ इस बार राजनीतिक चमक से भी सराबोर रहा। चुनावी मौसम में भी छठ का सूर्य किसी दल का नहीं, बल्कि जनभावना का प्रतीक बन गया। गंगा घाटों पर उमड़ी लाखों की भीड़ ने एक स्वर में कहा— “सूर्य ही साक्षी हैं, श्रद्धा ही पहचान है।” इसी बीच एक अनोखा दृश्य राजनीति के आकाश में भी उभरा जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान के घर पहुंचे। वहां उन्होंने छठ पर्व के ‘खरना’ का प्रसाद ग्रहण किया। यह सिर्फ एक औपचारिकता नहीं, बल्कि आस्था और राजनीति के संगम का प्रतीक था— जहां धर्म ने राजनीति को भी विनम्र बना दिया।
चिराग पासवान ने सोशल मीडिया पर लिखा— “माननीय मुख्यमंत्री जी, मेरे घर पधारकर ‘खरना प्रसाद’ ग्रहण करने के लिए धन्यवाद। आपके द्वारा दी गई शुभकामनाओं के लिए आभारी हूँ।” बिहार की धरती पर इस दृश्य ने यह सन्देश दिया कि छठ केवल एक पर्व नहीं, बल्कि वह शक्ति है जो भिन्न मतों को भी एक ही भक्ति में जोड़ देती है।
हम आपको बता दें कि मंगलवार सुबह जब उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा, तब यह चार दिवसीय महापर्व संपन्न होगा। लेकिन यह समाप्ति नहीं, बल्कि नवआरंभ होगी— क्योंकि छठ हमें याद दिलाता है कि भले ही जीवन में अंधकार आए, परंतु सूर्य फिर उगता है, और हर बार हमारे भीतर की आस्था उसे देखने को तैयार रहती है।
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