दिल्ली में LG भी वही और CM भी वही फिर इतनी खामोशी क्यों है?

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अंकित सिंह । Sep 10 2019 5:54PM

केजरीवाल हर चीज के लिए केंद्र पर आरोप लगाया करते थे और पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग करते थे तो वहीं केंद्र सरकार भी केजरीवाल के आरोपों को खामोशी से सुनकर किनारा कर देती थी।

दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए 6 महीने से भी कम का वक्त बचा है। ऐसे में सबकी निगाहें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी आम आदमी पार्टी पर है। ऐसा माना जा रहा है कि विधानसभा चुनाव में टक्कर भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच में है लेकिन कहीं ना कहीं कांग्रेस भी मजबूती से उभरने की कोशिश करेगी। दिल्ली वासियों को जहां केजरीवाल सरकार से बहुत ही उम्मीदें हैं वहीं केंद्र सरकार की तरफ से भी ऐसा लग रहा है कि चुनाव से पहले कुछ तोहफों का ऐलान किया जा सकता है। लेकिन सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि केजरीवाल और एलजी के बीच खासकर लोकसभा चुनाव के बाद उस तरीके की जुबानी जंग देखने को नहीं मिली है जो उससे पहले देखने को मिलती थी। 

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दिल्ली में एलजी भी वही हैं और मुख्यमंत्री भी वही हैं फिर इतनी खामोशी क्यों है? शायद केजरीवाल को भी अंदाजा लग गया है कि काम मायने रखता है ना कि राजनीतिक लड़ाई और यही कारण है कि लोकसभा चुनाव के बाद उनका ज्यादातर ध्यान काम पर केंद्रित रहा है। वह तरह तरह की योजनाओं का ऐलान कर रहे हैं और लोगों को अपनी सरकार की ओर खींचने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं अपने पार्टी संगठन को भी मजबूत करने में लग गए हैं। लोकसभा चुनाव से पहले दिल्ली सरकार और केंद्र की सरकार के बीच भी खूब तकरार देखने को मिलती थी। केजरीवाल हर चीज के लिए केंद्र पर आरोप लगाया करते थे और पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग करते थे तो वहीं केंद्र सरकार भी केजरीवाल के आरोपों को खामोशी से सुनकर किनारा कर देती थी। लेकिन आम चुनाव में मिली हार के बाद से केजरीवाल के आरोप केंद्र पर कम हो गए हैं। 

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दिल्ली के लिए पूर्ण राज्य के दर्जों की मांग करने वाले केजरीवाल जम्मू और कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने और वहां से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के फैसले पर भी केंद्र के समर्थन में दिखे। हर बात पर सबूत मांगने वाले केजरीवाल विपक्ष की उस ट्रिप में भी शामिल नहीं हुए जो घाटी का मुआयना करने के लिए श्रीनगर पहुंची थी। राष्ट्रवाद को लेकर उनका रवैया नरम हो गया है। कन्हैया कुमार मामले में भी भाजपा ने केजरीवाल को जब घेरा तो उन्होंने कहा कि इस संबंध में अभी कोई फैसला नहीं किया है। NRC का विरोध करने वाले केजरीवाल दिल्ली में भी इसे लागू करने की मांग पर खामोश हैं। केजरीवाल का ज्यादातर ध्यान अपने कामों को प्रचार के जरिए लोगों तक पहुंचाने पर है जिसके लिए वह फोन कॉल, टीवी, रेडियो और अखबार का सहारा ले रहे हैं। हालांकि आगामी चुनावों को देखते हुए भाजपा केजरीवाल सरकार पर पहले से भी ज्यादा हमलावर है। 

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अब बात केजरीवाल के आगामी राजनीतिक कदम की करते हैं। शीला दीक्षित के निधन के बाद से केजरीवाल को इस बात की उम्मीद है कि कांग्रेस के साथ शायद आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन हो सकता है। कांग्रेस के दिल्ली के बड़े नेता अजय माकन और प्रदेश प्रभारी पीसी चाको भी केजरीवाल की आम आदमी पार्टी से गठबंधन करने के पक्ष में थे परंतु शीला दीक्षित की वजह से लोकसभा चुनाव के दौरान यह गठबंधन नहीं हो सका था लेकिन अब ऐसा लगता है कि शायद यह गठबंधन हो जाए। वहीं पार्टी के ही कुछ नेताओं का यह भी मानना है कि कांग्रेस के साथ गठबंधन करना भविष्य के लिए अच्छा नहीं होगा और केजरीवाल की राजनीति शायद नीचे आ सकती है। इसके अलावा पार्टी को यह भी लगता है कि हम भाजपा को अपने खिलाफ एक बड़ा हथियार दे सकते हैं।  

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