Jan Gan Man: Ashwini Upadhyay की नई PIL ने SIR मामले को दिया नया मोड़, अब हर घुसपैठिये की मुश्किल बढ़ेगी!

Ashwini Upadhyay
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इसमें कोई दो राय नहीं कि हर लोकसभा चुनाव से पहले देशव्यापी एसआईआर कराने की मांग सीधे-सीधे मतदाता सूची की विश्वसनीयता से जुड़ी है। जिस लोकतंत्र में मतदाता ही संदिग्ध हों, वहां चुनावी नतीजों की नैतिक वैधता पर सवाल उठना स्वाभाविक है।

भारत के विभिन्न राज्यों में चल रही एसआईआर की प्रक्रिया के विरोध में विपक्ष के आ रहे तर्कों के बीच उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और भारत के पीआईएल मैन के रूप में विख्यात अश्विनी उपाध्याय ने एक जनहित याचिका के जरिये मांग की है कि हर लोकसभा चुनावों से पहले देशभर में एसआईआर कराई जानी चाहिए। साथ ही उन्होंने मांग की है कि फर्जी वोटिंग को संगठित अपराध की श्रेणी में लाया जाये। उन्होंने यह भी मांग की है कि जिनके नाम एसआईआर प्रक्रिया के दौरान काटे जा रहे हैं और यह पाया जा रहा है कि वह भारत के मतदाता होने की पात्रता नहीं रखते, ऐसे में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा कर कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए। बाइट।

देखा जाये तो देश में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर मचे सियासी शोर के बीच वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की जनहित याचिका ने बहस को उसके असली केंद्र में ला खड़ा किया है यानि लोकतंत्र की पवित्रता। एक ओर विपक्ष एसआईआर को राजनीतिक हथियार बताकर डर का माहौल बनाने में जुटा है, वहीं दूसरी ओर यह बुनियादी सवाल लगभग जानबूझकर हाशिये पर धकेल दिया गया है कि आखिर फर्जी वोटिंग लोकतंत्र के लिए कितना बड़ा खतरा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि हर लोकसभा चुनाव से पहले देशव्यापी एसआईआर कराने की मांग सीधे-सीधे मतदाता सूची की विश्वसनीयता से जुड़ी है। जिस लोकतंत्र में मतदाता ही संदिग्ध हों, वहां चुनावी नतीजों की नैतिक वैधता पर सवाल उठना स्वाभाविक है। लेकिन अजीब विडंबना है कि जो दल लोकतंत्र बचाओ का नारा लगाते नहीं थकते, वही मतदाता सूची की सफाई पर बौखला जाते हैं।

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सबसे अहम और तीखा सवाल फर्जी वोटिंग का है। अश्विनी उपाध्याय द्वारा फर्जी वोटिंग को “संगठित अपराध” की श्रेणी में लाने की मांग बिल्कुल तार्किक है। जब जाली नोट, ड्रग तस्करी और मानव तस्करी संगठित अपराध हो सकते हैं, तो फिर संगठित तरीके से फर्जी वोटिंग जो सत्ता की दिशा तय करती है, वह संगठित अपराध क्यों नहीं माना जाना चाहिए? 

देखा जाये तो विपक्ष की आपत्ति दरअसल एसआईआर के संभावित नतीजों पर है। उन्हें डर है कि वोट बैंक की वह कृत्रिम भीड़ छंट जाएगी, जो सालों से चुनावी गणित का आधार बनी हुई है। अश्विनी उपाध्याय की याचिका सत्ता या विपक्ष के पक्ष में नहीं, बल्कि संविधान के पक्ष में खड़ी है। यह बहस वोटर लिस्ट से कहीं बड़ी है, यह तय करेगी कि भारत का लोकतंत्र संख्या के भ्रम पर चलेगा या नागरिकता और कानून की ठोस बुनियाद पर। अब समय आ गया है कि राजनीति की धुंध हटे और यह साफ कहा जाए कि फर्जी वोटर लोकतंत्र का दुश्मन है और उसके खिलाफ कार्रवाई कोई विकल्प नहीं, बल्कि अनिवार्यता है।

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