अश्विनी उपाध्याय के बेटे ने भी दाखिल की पक्षकार बनाने की याचिका, कहा- ज्ञानवापी परिसर में मीडिया की एंट्री, जनता को पता चले असलियत क्या है?

ashwini upadhyay
अभिनय आकाश । May 31 2022 7:54PM

निखिल उपाध्याय की तरफ से कोर्ट के समक्ष पक्षकार बनाने के साथ ही एक दिन के लिए ज्ञानवापी परिसर में सभी मीडिया को जाने देने की मांगे रखी है। उनका कहना है कि सभी न्यूज चैनलों को वहां जाने की अनुमति दी जाए और वे जाकर वहां से जनता को बताएं कि असलियत क्या है।

देश में इस वक्त औरंगजेब, ज्ञानवापी मस्जिद और 1991 एक्ट को लेकर चर्चा का बाजार गर्म है। इतिहास से लेकर वर्तमान तक की बातें की जा रही हैं। स्थानीय अदालत से मामला सुप्रीम कोर्ट तक में चल रहा है। वहीं वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय के बेटे ने भी अब ज्ञानवापी मामले में वाराणसी की जिला अदालत में एक अर्जी दाखिल की है। कानून के छात्र निखिल उपाध्याय ने हस्तक्षेप याचिका के माध्यम से कोर्ट से उनकी भी दलीलें सुनने की गुहार लगाई गई है। निखिल उपाध्याय का कहना है कि 1991 का प्लेसेज ऑफ वर्सिप एक्ट केवल पर्सनल लॉ के सिद्धांतों पर या निजी तौर पर बनाए गए स्थलों पर ही लागू होता है। 

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निखिल उपाध्याय की तरफ से दायर याचिका के अनुसार उपासना स्थल कानून मंदिर के लिए बना है मस्जिद के लिए नहीं। पूजा स्थल कानून की दलील मंदिर पक्ष अपनी तरफ से दे सकता है। मस्जिद पक्ष नहीं दे सकता। इसके साथ ही उनकी तरफ से कहा गया है कि कोई भी कानून न्यायिक समीक्षा को रोक नहीं सकती है। कानून किसी भी नागरिक के न्याय के अधिकार को भी नहीं छीन सकती है। 

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निखिल उपाध्याय की तरफ से कोर्ट के समक्ष पक्षकार बनाने के साथ ही एक दिन के लिए ज्ञानवापी परिसर में सभी मीडिया को जाने देने की मांगे रखी है। उनका कहना है कि सभी न्यूज चैनलों को वहां जाने की अनुमति दी जाए और वे जाकर वहां से जनता को बताएं कि असलियत क्या है। इससे पहले सोमवार को पांच अन्य लोगों ने भी अर्जी दाखिल की थी। इनमें प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग लार्ड विश्वेश्वर के वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी भी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 7 नियम 11 के तहत मेरिट के जिस बिंदु पर सुनवाई चल रही है, उसमें प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग लार्ड विश्वेश्वर को पक्षकार नहीं बनाया गया है। वह मुख्य देवता हैं और आवश्यक पक्षकार हैं। ऐसे में उनका पक्ष सुना जाना आवश्यक है। उनका पक्ष सुने बिना उनके हितों की क्षति होगी।

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