निजी अस्पतालों के ICU में MBBS डॉक्टर की जगह हो रहा आयुष डॉक्टरों का इस्तेमाल

ICUs

वर्तमान में देखें तो लोकप्रिय जॉब साइट्स इन अस्पतालों द्वारा दिए गए विज्ञापनों से भरे पड़े हैं। इन विज्ञापनों में उनकी ओर से आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक डॉक्टर्स की मांग है जो आपातकालीन या आकास्मिक चिकित्सा अधिकारी के रूप में अस्पताल में काम कर सकें। इनमें कई कॉर्पोरेट चेन भी शामिल हैं।

कोई मरीज यदि निजी अस्पताल में भर्ती होता है और अपनी देखभाल के लिए लाखों का बिल भरता है। लेकिन जब उसे पता चलेगा कि उसकी देखभाल करने वाला कोई गैर एलोपैथिक डॉक्टर है तो उसे कैसा लगेगा? यूं कहें कि निजी अस्पताल में रात में आईसीयू में ड्यूटी करने वाले आपातकालीन चिकित्सा अधिकारी के रूप में कोई आयुर्वेदिक या होम्योपैथिक डॉक्टर हो सकता है। इस स्थिति में मरीज क्या सोचेगा? वर्तमान में देखें तो लोकप्रिय जॉब साइट्स इन अस्पतालों द्वारा दिए गए विज्ञापनों से भरे पड़े हैं। इन विज्ञापनों में उनकी ओर से आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक डॉक्टर्स की मांग है जो आपातकालीन या आकास्मिक चिकित्सा अधिकारी के रूप में अस्पताल में काम कर सकें। इनमें कई कॉर्पोरेट चेन भी शामिल हैं।

इसे भी पढ़ें: ओडिशा में कोरोना से अब तक 2,66,345 व्यक्ति संक्रमित, मृतकों की संख्या बढ़कर 1,121 हुई

आयुष चिकित्सक एक के योग्य एमबीबीएस डॉक्टर से आधे वेतन पर आ सकते हैं। लेकिन इन वर्ल्ड क्लास अस्पतालों में देखभाल के लिए भर्ती होने वाले मरीज इस बात से अनजान होते है। इतना ही नहीं, उनके दिल पर भी इसका असर नहीं पड़ता है। उन्हें अस्पताल का बिल एमबीबीएस डॉक्टर के हिसाब से भरना पड़ता है। फिलहाल सरकार आयुष डॉक्टरों को ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी स्वास्थ्य सेवा देने के लिए प्रशिक्षित करने पर जोर दे रही है। यह आयुष डॉक्टर उन क्षेत्रों में काम करेंगे जहां वर्तमान में डॉक्टरों की कमी है। हालांकि विज्ञापन बड़े शहरों के अस्पतालों के होते है जहां अक्सर एमबीबीएस और विशेषज्ञ डॉक्टरों की मांग रहती है। आयुष डॉक्टरों को निजी अस्पतालों में काम पर रखने की प्रथा सबसे ज्यादा मुंबई और पुणे में है। जिन अस्पतालों ने उनके लिए विज्ञापन जारी किए है उनमें कई बड़े अस्पताल शा

आयुष चिकित्सक एक के योग्य एमबीबीएस डॉक्टर से आधे वेतन पर आ सकते हैं। लेकिन इन वर्ल्ड क्लास अस्पतालों में देखभाल के लिए भर्ती होने वाले मरीज इस बात से अनजान होते है। इतना ही नहीं, उनके दिल पर भी इसका असर नहीं पड़ता है। उन्हें अस्पताल का बिल एमबीबीएस डॉक्टर के हिसाब से भरना पड़ता है। फिलहाल सरकार आयुष डॉक्टरों को ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी स्वास्थ्य सेवा देने के लिए प्रशिक्षित करने पर जोर दे रही है। यह आयुष डॉक्टर उन क्षेत्रों में काम करेंगे जहां वर्तमान में डॉक्टरों की कमी है। हालांकि विज्ञापन बड़े शहरों के अस्पतालों के होते है जहां अक्सर एमबीबीएस और विशेषज्ञ डॉक्टरों की मांग रहती है।

इसे भी पढ़ें: दिल्ली सरकार ने अगले चरण के सीरो सर्वे की शुरुआत की

आयुष डॉक्टरों को निजी अस्पतालों में काम पर रखने की प्रथा सबसे ज्यादा मुंबई और पुणे में है। जिन अस्पतालों ने उनके लिए विज्ञापन जारी किए है उनमें कई बड़े अस्पताल शामिल हैं। हालांकि जब यह खबर बाहर आई तो कई अस्पतालों ने इस बात से इनकार कर दिया। इनका यह भी कहना था कि यह ज्यादातर डॉक्टर एलोपैथिक डॉक्टरों की सहायता के लिए थे। हालांकि, अस्पतालों द्वारा दिए गए विज्ञापनों में यह बात साफ तौर पर कहा गया है कि इन डॉक्टरों को इमरजेंसी चिकित्सा और आईसीयू में इस्तेमाल किया जा सकता है। इनमें से अधिकांश बड़े अस्पतालों को राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड फॉर हॉस्पिटल एंड हेल्थ केयर से मान्यता प्राप्त है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़