रामपुर की छुरी से भी ज्यादा तेज है आजम खान की जुबान

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अंकित सिंह । Jul 26 2019 6:49PM

भले ही आजम की बाते पूरी दुनिया को बुरी लगे पर उनकी पार्टी को यह सब हमेशा भला ही लगा है। तभी तो, आज तक उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई बल्कि खुद पार्टी अध्यक्ष उनके बचाव में खड़े रहते हैं।

आज़म ख़ान जितने दिग्गज नेता हैं उतना ही उनका विवादों से भी नाता रहा है। आजम खान को अगर हम समझने की कोशिश करें तो हम एक लाइन में यह सरलता के साथ कह सकते हैं कि ज्यादातर समय इनके मुख से जो बयान निकलता है उस पर विवाद होना तय समझिए। उनके बयान, खासकर के जो महिलाओं के लिए आते हैं वे अक्सर सुर्खियां बन जाते हैं। गुरुवार को भी आजम खान के साथ ऐसा ही कुछ हुआ। रामपुर से जीतकर पहली बार लोकसभा सांसद बने आजम खान ने तीन तलाक विधेयक पर बहस के दौरान कार्यवाही का संचालन कर रहीं पीठासीन अक्ष्यक्ष रमा देवी को लेकर ऐसे बातें कह दी जिसपर हंगामा मच गया। रमा देवी को आज़म ख़ान की टिप्पणी बेहद नागवार गुजरी और उन्होंने फौरन माफी मांगने की बात कह दी। आजम ने माफी तो नहीं मांगी और उल्टा उन्हें बोलने नहीं देने का आरोप लगाकर सदन से वॉकआउट कर गए। भले ही आजम की बाते पूरी दुनिया को बुरी लगे पर उनकी पार्टी को यह सब हमेशा भला ही लगा है। तभी तो, आज तक उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई बल्कि खुद पार्टी अध्यक्ष उनके बचाव में खड़े रहते हैं। 

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गुरुवार को भी कुछ ऐसा ही हुआ। आजम खान पहले अमर्यादित टिपण्णी करते हैं, फिर विवाद होता है, वह माफी नहीं मांगते हैं और अखिलेश यादव बचाव में खड़े हो जाते हैं। रमा देवी को लेकर आज़म ख़ान ने जो बातें कही हैं उस पर उन्हें किसी पार्टी का समर्थन नहीं मिल रहा है बल्कि सभी पार्टिया एक सुर में उनके निष्कासन की मांग कर रही हैं। महिला सांसदों ने तो उनके खिलाफ मोर्चा ही खोल दिया है। हैरानी की बात तो यह है कि आज़म ख़ान अपनी गलती मानने को तैयार नहीं। आजम खान के इस बयान की महिला आयोग ने भी निंदा की है और उन्हें नोटिस भेजने की बात कह रही है। हालांकि यह सब उनके लिए आम बात हो चुकी है क्योंकि वो इन परिस्थितियों के आदि हो चुके हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान भी वह सुर्खियों में आ चुके थे जब उन्होंने जया प्रदा को लेकर विवादित टिपण्णी कर दी थी। हालांकि जया से आजम खान की यदावत कोई नई बात नहीं है।   

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जब अमर सिंह समाजवादी पार्टी के चाणक्य हुआ करते थे तब जयाप्रदा की पार्टी में तूती बोलती थी। जया 2004 और 2009 में समाजवादी पार्टी की टिकट पर रामपुर से सांसद भी रह चुकी हैं। 2009 में आजम खान के तमाम विरोध के बावजूद भी मुलायम सिंह ने जया को रामपुर से चुनाव लड़वाया था। उस चुनाव में आजम और जया के बीच जमकर नोक-झोक होती रही। जहां आजम खान और उनके समर्थक जया को 'नचनिया’ और ‘घुँघरू वाली’ कहते थे वहीं जया चुनावी सभाओं में आजम को भैया कहती थीं। उस चुनाव के दौरान आजम खान और उनके समर्थकों ने जया की फ़िल्मों के अंतरंग दृश्यों के पोस्टर तक पूरे शहर में लगाए। फिर भी जया वह चुनाव जीतने में कामयाब रहीं। हांलांकि उनके रिश्ते आजम खान के साथ कभी नहीं सुधरे। इस लोकसभा चुनाव में भी यह यदावत देखने को मिली जब भाजपा ने जया को आजम के खिलाफ चुनावी मैदान में उतारा। उन्होंने जया प्रदा के अंत: वस्त्र को लेकर घटिया टिप्पणी कर दी थी जिसके बाद उनकी काफी फजीहत हुई थी। 

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आजम पर चुनाव आयोग हो या फिर महिला आयोग, सभी ने ऐक्शन की बात की। चुनाव आयोग ने तो आजम पर 72 घंटे के लिए प्रचार करने पर रोक लगा दी थी। पर उनकी पार्टी को यह सब रास आता रहा और पूरी सपा उनके बचाव में आ गई। लोकसभा चुनाव के बाद से ही आजम लगातार मीडिया की सुर्खियों में हैं। हाल में जहां एक ओर वह भ्रष्टाचार को लेकर चर्चा में रहे और उनके खिलाफ एक के बाद एक 23 मामले दर्ज हो चुके हैं। वहीं मॉब लिंचिंग को लेकर उनके बोल देशवासियों को रास नहीं आये। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा था कि मुस्लिम नौजवानों को मॉब लिंचिंग के जरिए उनके पूर्वजों के पाकिस्तान नहीं जाने की सज़ा दी जा रही है। पिछले 10 साल की अगर हम बात करें तो आजम कहीं ना कहीं लगातार चर्चा में रहे हैं। कभी मुस्लिम के पक्ष में दिए उटपटांग बयान को लेकर तो कभी मुजफ्फरनगर दंगे को लेकर। एक समय वह महिलाओं के ऊपर तेजाब फेकने की भी बात कर चुके हैं। हालांकि इस दौरान उनकी पार्टी हमेशा उनके साथ रही। 1998 में राज्यसभा का सदस्य होने के नाते आजम ने तत्कालीन रेल मंत्री रहे नीतीश कुमार से अजीबो-गरीब सवाल पूछ लिया था जिस पर खूब विवाद हुआ था। आजम ने पूछा था कि रेलवे की कैंटीन में परोसा जाने वाला मटन हलाल होता है या झटके का?

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एक परिचय

समाजवादी पार्टी में आजम खान के कद का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि अमर सिंह के साथ विवाद में पार्टी इनके साथ खड़ी रही। अमर के मुताबिक वो आजम खान ही थे जिनकी बजह से वह सपा में हाशिए पर चले गए। यह बात इस समय की है जब मुलायम सिंह के बाद पार्टी में अमर सिंह की ही ज्यादा चलती थी। जब 2017 की शुरूआत में सपा परिवार में अंतर्कलह हई थी तब भी इनका जलवा कायम रहा। मुलायम और अखिलेश, दोनों ही गुट के सबसे विश्वसनीय चेहरा बने रहे। खैर, आजम खान छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय रहे। आपातकाल के बाद वह जनता पार्टी में शामिल हो गए और 1980 में जनता पार्टी (सेकुलर) के टिकट पर रामपुर सीट से चुनाव जीतकर विधायक बने। भले ही जनता दल टूटता और बिखड़ता रहा पर आजम सियासत की सीढ़ियां चढ़ते रहे और रामपुर सीट से चुनाव जीतकर विधायक बनते रहे। 1992 में वह मुलायम सिंह यादव के साथ हो लिए और समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य के तौर पर पार्टी में शामिल हो गए। 1996 में उन्हें अपनी सीट से हार मिली। हालांकि इस दौरान सपा के MY समीकरण के तहत वह पार्टी के 'मुस्लिम चेहरे' के तौर पर उभरते रहे। 1996 से 2002 तक आजम राज्यसभा के सदस्य रहे। यूपी की कई सरकारों में उन्होंने अलग-अलग मंत्रालयों का जिम्मा संभाला है।  

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