जन्मदिन स्पेशल: युवा तार्किक नेताओं को संभालने में कामयाब नहीं हो पाए राहुल लेकिन सरकार को घेरने से नहीं चूके

Rahul Gandhi

लोकसभा चुनाव के परिणाम देख ऐसा प्रतीत होता था कि मानो कांग्रेस की जमानत जब्त हो गई हो और खुद राहुल गांधी भी इससे दुखी थी। जिसके बाद उन्होंने हार की जिम्मेदारी लेते हुए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था।

नयी दिल्ली। वायनाड से सांसद और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी आज अपना 51वां जन्मदिन मना रहे हैं लेकिन राहुल गांधी के लिए पिछले कुछ साल काफी उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं। साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी से कांग्रेस को कई उम्मीदें थीं। लेकिन राफेल और चौकीदार चोर है कैंपेन चलाने के बावजूद वह बुरी तरह से चुनाव हार गए। इतना ही नहीं राहुल गांधी अपने ही गढ़ 'अमेठी' से हार गए। हालांकि वायनाड के लोगों ने उन्हें स्वीकार करते हुए जीत का सहरा पहनाया था। 

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लोकसभा चुनाव के परिणाम देख ऐसा प्रतीत होता था कि मानो कांग्रेस की जमानत जब्त हो गई हो और खुद राहुल गांधी भी इससे दुखी थी। जिसके बाद उन्होंने हार की जिम्मेदारी लेते हुए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। हालांकि कांग्रेस नेता उन्हें बार-बार मनाते रहे कि आप अध्यक्ष पद पर वापसी करें लेकिन ऐसा प्रतीत होता था कि उन्होंने जैसे अध्यक्ष न बनने का प्रण ले लिया हो।

कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में राहुल गांधी ने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि उनकी बहन प्रियंका गांधी को अध्यक्ष बनाने के बारे में विचार भी नहीं किया जाना चाहिए। एक बार फिर से ऐसा प्रतीत हुआ कि गांधी परिवार के बाहर को कोई व्यक्ति अब अध्यक्ष बनने वाला है मगर पार्टी की निगाह अंतत: सोनिया गांधी पर जाकर टिक गई और उन्हें पार्टी का अंतरिम अध्यक्ष बना दिया गया।

राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद उनके खेमे के नेताओं की फजीहतें शुरू हो गईं। अध्यक्षों को बदला गया और चुनावों में फोकस किया जाने लगा। कहा जाने लगा था कि राहुल के युवा तार्किक नेताओं की अनदेखी होना शुरू हो गई और कई नेता पार्टी में खुद को असुरक्षित महसूस करने लगे। राहुल युवा चेहरों को कांग्रेस की पीढ़ी मानते थे लेकिन धीरे-धीरे दूरियां भी बढ़ती गईं। 

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कांग्रेस का भविष्य, कांग्रेस से ही खफा हो गया

राहुल गांधी जिन्हें कांग्रेस का भविष्य समझते थे वो अब पार्टी से खफा हैं। राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव तो हारा ही साथ ही साथ अपने करीबी मित्रो और भरोसेमंद साथियों का भरोसा भी हार गए। जिसकी वजह से इन लोगों ने कांग्रेस पर भरोसा करना छोड़ दिया। ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रशाद, अशोक तंवर, प्रियंका चतुर्वेदी, खुशबू सुंदर इत्यादि ने पार्टी छोड़ दी और कुछ तो पार्टी में साइडलाइन हैं। जिनमें सचिन पायलट, दीपेंद्र हुड्डा, मिलिंद देवड़ा और नवीन जिंदल शामिल हैं। रिपोर्ट्स हैं कि नवीन जिंदल भाजपा में शामिल हो सकते हैं।

भले ही आज दिल्ली कांग्रेस राहुल गांधी के जन्मदिन पर सेवा दिवस मना रही हो लेकिन एक दिन पहले असम के विधायक ने राहुल बाबा का नाम लेते हुए पार्टी को अलविदा कह दिया। मुश्किल दौर से गुजर रही कांग्रेस को बचाने की जिम्मेदारी क्या राहुल गांधी की नहीं है ? यह सवाल काफी अहम है क्योंकि कुछ ऐसी भी रिपोर्ट सामने आईं कि सचिन पायलट दिल्ली में थे फिर भी वो राहुल गांधी से नहीं मिले। ऐसा क्यों ? हालांकि अजय माकन ने कहा कि वो हमारे साथ संपर्क में हैं।

ट्विटर पर काफी एक्टिव हैं राहुल गांधी

भले ही पार्टी नेताओं को राहुल गांधी संभाल नहीं पाए हो लेकिन उन्होंने अकेले ही विपक्ष की भूमिका अदा की है। सरकार को घेरने के मामले में वो हमेशा ही एक्टिव रहे हैं। चाहे कोरोना वायरस हो या फिर भारत-चीन मसला इत्यादि उन्होंने कभी भी सरकार को यूं ही नहीं छोड़ा। कांग्रेस नेताओं का तो यहां तक कहना है कि सरकार पहले राहुल गांधी और पार्टी की आलोचना करती है और फिर बाद में चुपके से उनके सुझावों को लागू करती है। 

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ज्ञात हो तो राहुल गांधी ने 12 फरवरी 2020 को ट्वीट कर सरकार को चेताया था और सही कदम उठाने की अपील की थी। उस वक्त उन्होंने ट्वीट किया था कि हमारे लोगों और अर्थव्यवस्था के लिए कोरोना वायरस बहुत गंभीर खतरा है। सरकार इसे गंभीरता से नहीं ले रही। समय पर कदम उठाना बेहद जरूरी है। लेकिन केंद्र की मोदी सरकार अपने आप में मगन थी। हालांकि मार्च के आखिरी सप्ताह में मोदी सरकार ने राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी।

लॉकडाउन के दरमियां राहुल गांधी की मजदूरों के साथ की एक तस्वीर भी सामने आई थी। जिस पर भारी बवाल मचा था लेकिन उन्होंने स्पीक अप इंडिया कार्यक्रम के तहत लगातार सरकार को घेरने का काम किया। फिलहाल राहुल गांधी को पार्टी के अंर्तकलह को दूर करना चाहिए और 2024 के चुनावों में सबसे बेहतरीन विकल्प के तौर पर उभरने का प्रयास करना चाहिए।

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