गुजरात चुनाव: जसदान सीट पर भाजपा को कुंवरजी बावलिया पर भरोसा, कांग्रेस को कोली समुदाय का सहारा

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जसदान राजकोट जिले में पिछड़े निर्वाचन क्षेत्रों में आता है। इस सीट पर गुजरात विधानसभा के पहले चरण के चुनाव में एक दिसंबर को मतदान होगा। इस निर्वाचन क्षेत्र में करीब 2.6 लाख मतदाता हैं जिनमें कोली समुदाय के करीब एक लाख लोग हैं तथा करीब 60,000 पाटीदार हैं।

जसदान (गुजरात)। गुजरात विधानसभा चुनाव में जसदान निर्वाचन क्षेत्र में कड़ा मुकाबला होने की संभावना है। भाजपा जहां दल-बदल कर आए कुंवरजी बावलिया पर भरोसा कर रही है, वहीं कांग्रेस को बावलिया के कोली समुदाय के समर्थन से यह सीट अपने पास बरकरार रहने की आस है। बावलिया 2018 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे और उपचुनाव में यह सीट अपने पास बरकरार रखी थी। लेकिन पांच बार के विधायक बावलिया को इस बार अपने पूर्व करीबी एवं अन्य कोली नेता भोलाभाई गोहिल से कड़ी टक्कर मिल रही है जिन्हें कांग्रेस ने इस सीट से चुनाव मैदान में उतारा है।

जसदान राजकोट जिले में पिछड़े निर्वाचन क्षेत्रों में आता है। इस सीट पर गुजरात विधानसभा के पहले चरण के चुनाव में एक दिसंबर को मतदान होगा। इस निर्वाचन क्षेत्र में करीब 2.6 लाख मतदाता हैं जिनमें कोली समुदाय के करीब एक लाख लोग हैं तथा करीब 60,000 पाटीदार हैं। अन्य मतदाताओं में अन्य पिछड़ा वर्ग (कोली को छोड़कर), दलित एवं मुसलमान शामिल हैं। इस क्षेत्र को प्रतिबद्ध कोली वोट बैंक के चलते कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। भाजपा ने बस यहां उपुचनाव जीता है। कोली सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात में संख्या की दृष्टि से एक बड़ा समुदाय है। तटीय क्षेत्रों में उनकी अच्छी खासी संख्या है।

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वर्ष 1995 से बावलिया ने कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर लगातार चार बार (1995, 1998, 2002और 2007 में) जसदान सीट जीती थी। वह 2009 में राजकोट सीट से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे। वह 2014 में राजकोट से भाजपा उम्मीदवार से लोकसभा चुनाव हार गए थे। कांग्रेस ने एक बार फिर उन्हें जसदान विधानसभा सीट से प्रत्याशी बनाया तथा उन्होंने जीत दर्ज की थी। 2017 में बावलिया एवं प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व में मतभेद हो गया जिसके चलते वह कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। बावलिया ने 2018 में भाजपा के टिकट पर जसदान विधानसभा उपचुनाव में जीत दर्ज की।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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