Bahujan Samaj Party: बिहार में अकेले दम पर चुनाव लड़ेगी मायावती की पार्टी BSP, किस पर भारी पड़ेगी दलित वोटों की लड़ाई

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साल 2000 के विधानसभा चुनाव में 294 सीटों पर उम्मीदवार उतरे और 5 सीटें जीती। यह राज्य में बीएसपी की सबसे बड़ी जीत थी। फिर 2005 के चुनाव में पार्टी ने 283 सीटों पर कैंडिडेट्स उतारे और 2 सीटों पर जीत हासिल की। अक्तूबर 2005 के विधानसभा चुनाव में 212 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 4 सीटें जीती।

उत्तर प्रदेश की राजनीति में लगातार मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी पिछड़ती जा रही है। ऐसे में मायावती ने एक बार फिर अपनी राजनीतिक सक्रियता को बढ़ाया है। लगातार दलित वोट बैंक के छिटकने से परेशान बसपा अध्यक्ष ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए अपनी रणनीति बनानी शुरूकर दी है। इस दौरान पार्टी ने सभी 243 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर दिया है। 

ऐसे सवाल उठता है कि क्या मायावती बिहार के राजनीति मैदान से अपने भतीजे आकाश आनंद को फिर लॉन्च करने की तैयारी में हैं। वहीं एक अहम सवाल यह भी उठता है कि यूपी विधानसभा चुनाव में एक सीट पाने वाली बसपा क्या बिहार के दलित वोट बैंक को अपनी तरफ कर पाने में कामयाब होगी। उत्तर प्रदेश की राजनीति में लगातार बसपा पिछड़ती जा रही है। ऐसे में मायावती का प्रयास एक बार खुद को राष्ट्रीय स्तर का दलित नेता साबित करने का है। ऐसे में बिहार चुनाव उनके सामने एक बड़े मौके की तरह है।

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बिहार में पार्टी का प्रदर्शन

बता दें कि साल 1990 में बहुजन समाज पार्टी ने बिहार विधानसभा के चुनावी मैदान में दस्तक दी थी। उस दौरान बिहार और झारखंड संयुक्त राज्य थे और बिहार विधानसभा सीटों की संख्या 324 थी। 1990 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने 164 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। हालांकि पार्टी 0.7 फीसदी वोट शेयर के साथ किसी भी सीट पर जीत नहीं हासिल कर पाई थी। फिर साल 1995 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी के उम्मीदवार 161 सीटों पर उतरे और 1,34 फीसदी वोट शेयर के साथ 2 सीटों पर जीत हासिल की थी।

साल 2000 के विधानसभा चुनाव में 294 सीटों पर उम्मीदवार उतरे और 5 सीटें जीती। यह राज्य में बीएसपी की सबसे बड़ी जीत थी। फिर 2005 के चुनाव में पार्टी ने 283 सीटों पर कैंडिडेट्स उतारे और 2 सीटों पर जीत हासिल की। अक्तूबर 2005 के विधानसभा चुनाव में 212 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 4 सीटें जीती। साल 2010 और 2015 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 3.21 और 2.1 फीसदी वोट शेयर मिले, लेकिन कोई पार्टी कोई सीट नहीं जीत सकी। फिर साल 2020 के विधानसभा चुनाव में 80 सीटों पर पार्टी ने उम्मीदवार उतारे लेकिन 1.5 फीसदी वोट शेयर के साथ पार्टी 1 सीट जीत सकी।

बिहार चुनाव क्यों जरूरी

हालांकि बसपा के पास ऑप्शन की काफी ज्यादा कमी है। क्योंकि बिहार विधानसभा चुनाव के बाद यूपी में पंचायत चुनाव होने वाले हैं और उसके अगले साल विधानसभा चुनाव होंगे। लेकिन साल 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले बीएसपी अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को बड़ा संदेश देने का प्रयास कर रही है। भले ही बिहार विधानसभा चुनाव में बसपा को एक भी सीट न मिले, लेकिन पार्टी का प्रयास 3 से 5 फीसदी वोट शेयर हासिल करना होगा।

बता दें कि बिहार के सीमावर्ती जिलों में बसपा पार्टी का प्रभाव पहले भी दिखा है। बक्सर से गोपालगंज जैसे जिलों से कई बार पार्टी के विधायक चुनकर बिहार विधानसभा जाते दिखे हैं। ऐसे में बसपा पार्टी दलित वोट बैंक के सहारे एक बड़ा दांव खेलते नजर आ रही है।

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