Prabhasakshi NewsRoom: Yogi ने अखिलेश को बताया 'राम द्रोही' और 'कृष्ण द्रोही', ‘राजनीतिक इस्लाम’ को सबसे बड़ा खतरा करार दिया

योगी का यह कथन कि “हलाल उत्पादों की बिक्री से धर्मांतरण और आतंकवाद को मदद मिलती है” भी एक गंभीर दावा है। साथ ही अखिलेश यादव पर ‘राम द्रोही’ और ‘कृष्ण द्रोही’ होने का आरोप केवल शब्दों की तलवार नहीं, बल्कि एक राजनीतिक रणनीति है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक बार फिर अपने भाषणों से राजनीतिक विमर्श का केंद्र बदल दिया है। गोरखपुर में आयोजित ‘दीपोत्सव से राष्ट्रोत्सव’ कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि “ब्रिटिश और फ्रांसीसी उपनिवेशवाद की चर्चा तो होती है, लेकिन सनातन धर्म पर सबसे बड़ा प्रहार करने वाले ‘राजनीतिक इस्लाम’ की बात नहीं होती।” योगी ने छत्रपति शिवाजी, गुरु गोविंद सिंह और महाराणा प्रताप जैसे योद्धाओं को ‘राजनीतिक इस्लाम’ के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक बताया। इसी मंच से उन्होंने संघ की 100 वर्ष की यात्रा की प्रशंसा की और कहा कि संघ ने प्रतिबंध, लाठीचार्ज और गोलीबारी के बावजूद अपने संकल्प पर अडिग रहकर राम मंदिर निर्माण को संभव बनाया।
साथ ही उन्होंने समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि “अखिलेश न केवल राम द्रोही हैं, बल्कि कृष्ण द्रोही भी हैं।” हम आपको बता दें कि अखिलेश ने दीपोत्सव समारोह पर सरकारी खर्च पर सवाल उठाया था। योगी ने पलटवार करते हुए कहा कि जिन्हें दीपावली से नफरत है, वे सनातन संस्कृति से भी विमुख हैं। उन्होंने व्यंग्य किया, “गद्दी मिल सकती है, पर बुद्धि नहीं।”
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देखा जाये तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह वक्तव्य केवल धार्मिक आस्था की अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि भारत के वर्तमान वैचारिक संघर्ष का राजनीतिक बयान भी है। ‘राजनीतिक इस्लाम’ शब्द का प्रयोग उन्होंने जिस संदर्भ में किया है, वह इतिहास के धार्मिक-सांस्कृतिक संघर्षों को पुनः वर्तमान की राजनीति में खींच लाता है। योगी का कहना कि “राजनीतिक इस्लाम ने सनातन धर्म पर सबसे बड़ा प्रहार किया”, वस्तुतः एक वैचारिक रेखा खींचता है, जिसमें ‘राजनीतिक इस्लाम’ को विदेशी उपनिवेशवाद से भी बड़ा खतरा बताया गया है।
योगी का यह कथन कि “हलाल उत्पादों की बिक्री से धर्मांतरण और आतंकवाद को मदद मिलती है” भी एक गंभीर दावा है। साथ ही अखिलेश यादव पर ‘राम द्रोही’ और ‘कृष्ण द्रोही’ होने का आरोप केवल शब्दों की तलवार नहीं, बल्कि एक राजनीतिक रणनीति है। योगी जानते हैं कि उत्तर प्रदेश में धर्म, आस्था और प्रतीकों की राजनीति सबसे प्रभावशाली हथियार है। दीपावली, राम मंदिर और कृष्ण जन्मभूमि जैसे सांस्कृतिक बिंदुओं के इर्द-गिर्द योगी ने विपक्ष को एक बार फिर रक्षात्मक स्थिति में ला खड़ा किया है। अखिलेश ने सरकार के दीपोत्सव व्यय पर प्रश्न उठाकर प्रशासनिक जवाबदेही का मुद्दा उठाया था, पर योगी ने उसे “सनातन विरोध” के फ्रेम में रखकर भावनात्मक विमर्श में बदल दिया है।
अपने संबोधन में योगी आदित्यनाथ ने स्पष्ट कर दिया कि 2027 के विधानसभा चुनावों की राह केवल विकास या प्रशासन की नहीं, बल्कि वैचारिक टकराव की होगी। ‘राजनीतिक इस्लाम’ और ‘राम द्रोही’ जैसे शब्द उत्तर प्रदेश की आने वाली राजनीतिक भाषा तय कर रहे हैं। यह भाषा तीखी है, भावनात्मक है और विभाजनकारी होने का जोखिम भी रखती है। पर यह भी सत्य है कि योगी का संदेश उन मतदाताओं तक सीधे पहुंचता है जो धर्म और राष्ट्र के बीच कोई विभाजन नहीं देखते। उत्तर प्रदेश की राजनीति अब फिर एक बार “दीये की रोशनी” और “अंधकार के प्रतीक” के बीच खड़ी है, फर्क सिर्फ इतना है कि यह दीप अब केवल मिट्टी का नहीं, बल्कि विचार का बन चुका है।
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