कार्यकर्ताओं को एकजुट नहीं रख पा रहे कांग्रेस, माकपा

[email protected] । Aug 17 2016 3:03PM

पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद से अंदरूनी कलह और फूट से जूझ रहीं कांग्रेस और माकपा के लिए अपने कार्यकर्ताओं को एकजुट रखना मुश्किल होता जा रहा है।

कोलकाता। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद से अंदरूनी कलह और फूट से जूझ रहीं कांग्रेस और माकपा के लिए अपने कार्यकर्ताओं को एकजुट रखना मुश्किल होता जा रहा है। तृणमूल कांग्रेस विधानसभा चुनाव में मिली भारी जीत के बाद राज्य में विपक्ष के नियंत्रण वाले विभिन्न निगमों और पंचायतों में भी काबिज होने में कामयाब हो गई है। पिछले कुछ माह से कांग्रेस या वामदलों के पाषर्दों तथा पंचायत सदस्यों का तृणमूल में जाने का सिलसिला बरकरार है।

बीते महीने कांग्रेस और वामदल, दोनों के एक-एक विधायक भी तृणमूल कांग्रेस में जा चुके हैं जिससे 294 सदस्यीय विधानसभा में विपक्ष का संख्याबल 76 से गिरकर 74 रह गया है। तृणमूल कांग्रेस के पास फिलहाल 211 विधायक हैं। पार्टी का दावा है कि उसने किसी को भी पार्टी में शामिल होने के लिए बुलावा नहीं भेजा है और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की विकास प्रक्रिया का हिस्सा बनने के इच्छुक लोग अपनी मर्जी से पार्टी में आ रहे हैं। दूसरी ओर विपक्ष का आरोप है कि तृणमूल कांग्रेस विपक्षी पार्टियों में सेंध लगाने और इसके विधायकों को अपनी पार्टी में बुलाने के लिए धन और बल का इस्तेमाल कर रही है।

विपक्ष के नेता और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता अब्दुल मनान ने कहा है कि पार्टी इस चलन से राजनीतिक तौर पर निबटेगी। उन्होंने कहा, ‘‘इन निगमों के दो तिहाई विपक्षी नेता तृणमूल में शामिल हो गए हैं या फिर विधायकों की खरीद-फरोख्त हुई है। तृणमूल कांग्रेस में जाने वाले विधायकों को अभी भी कांग्रेसी या वाम दल का विधायक ही माना जाएगा क्योंकि अभी तक उन्होंने अपने पदों से इस्तीफा नहीं दिया है।’’ मनान ने कहा, ‘‘अगर कोई दूसरी पार्टी में जाना ही चाहता है तो उन्हें अपनी पार्टी से इस्तीफा देकर तृणमूल के टिकट पर चुनाव लड़ने की हिम्मत भी दिखानी चाहिए।’’ तृणमूल कांग्रेस के सूत्रों के मुताबिक, पार्टी की नजर कांग्रेस की राज्य इकाई के अध्यक्ष अधीर चौधरी के गढ़ मुर्शिदाबाद जिले पर है। बीते एक साल में जिले के सात निगम, जिन पर 2015 के स्थानीय निकाय चुनाव के बाद कांग्रेस या माकपा का नियंत्रण था, उनमें से चार अब तृणमूल के कब्जे में हैं क्योंकि कांग्रेस और वाम दलों के पार्षद तृणमूल में शामिल हो गए हैं। बंगाल में पार्षदों और विधायकों के सत्तारूढ़ पार्टी में जाने का चलन तृणमूल कांग्रेस के साल 2011 में सत्ता में आने के बाद से शुरू हो गया था।

We're now on WhatsApp. Click to join.

Tags

    All the updates here:

    अन्य न्यूज़