अपने अतीत से कुछ नहीं सीखती कांग्रेस, राजस्थान में दोहरा रही मध्य प्रदेश वाली गलती

Congress
अंकित सिंह । Jul 13 2020 10:35PM

ऐसा लगता है कि कांग्रेस के लिए नेताओं का पार्टी छोड़ जाना अब मायने नहीं रखता। पार्टी ना तो इससे चिंतित दिखती है और ना ही इसे रोकने के लिए कोई कार्य करती है।

राजस्थान के हालिया घटनाक्रमों को देखें तो ऐसा लगता है कि कांग्रेस अपनी पिछली गलतियों से कुछ सीख ही नहीं रही है। तभी तो एक के बाद एक पार्टी में वही चीजें दिखाई दे रही है जो पहले घट चुकी है। फिलहाल राजस्थान में भी वही हो रहा है जो आज से 3 महीने पहले मध्यप्रदेश में हो चुका है। पर आलाकमान फिलहाल खामोशी से तमाम घटनाक्रम को देख भर रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि मानो उसके हाथ में तो कुछ है ही नहीं। पार्टी में सर्वे सर्वा गांधी परिवार भी वर्तमान राजनीतिक हालात पर खुलकर सामने नहीं आ रहा है। हां, शीर्ष नेतृत्व इस समस्या को सुलझाने के लिए नेताओं की फौज जरूर तैनात कर रही पर यह काम नहीं आ रहा। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि आंतरिक कलह और खींचतान कांग्रेस का स्थाई भाव बन गया है। 

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ऐसा लग रहा है कि पार्टी दो गुटों में बंट गई है। एक गुट अनुभवी नेताओं का है जो 10 जनपद के बेहद ही करीब है तो दूसरा गुट युवा नेताओं का है जिन्हें राहुल के बेहद करीब माना जाता है। हालांकि वर्तमान परिदृश्य में देखें तो युवा नेताओं की नाराजगी में खुले तौर पर ना तो राहुल गांधी और ना ही प्रियंका गांधी कुछ बोल पाने की स्थिति में नजर आते हैं। परेशानी इसी बात को लेकर है कि आखिर ओल्ड बिग्रेड की पार्टी में चलेगी या फिर युथ की पार्टी में। युवा नेताओं ने राहुल गांधी के अध्यक्ष रहते खूब मेहनत की थी। इसका नतीजा हमने राजस्थान और मध्य प्रदेश के चुनाव में भी देखा था। लेकिन  राजस्थान में सचिन पायलट को और मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया को उनके कद के मुताबिक सम्मान प्रदान नहीं किया गया। मध्यप्रदेश में सिंधिया को दरकिनार कर कमलनाथ को सत्ता सौंप दी गई तो वही राजस्थान में अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया गया।

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पर ऐसा नहीं है कि सिर्फ इन्हीं 2 राज्यों में ऐसी समस्याएं है। महाराष्ट्र, बिहार, गुजरात, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी लगातार हम इस तरीके की मनमुटाव की खबरें देखते रहते है। कांग्रेस में युवा नेताओं की ऐसी फौज है जो आलाकमान और ओल्ड बिग्रेड से समय-समय पर नाराज दिखते है। मिलिंद देवड़ा, जितिन प्रसाद, संजय निरुपम जैसे नेता भी पार्टी की कार्यशैली पर सवाल उठा चुके है। लेकिन आलाकमान की चुप्पी कहीं ना कहीं कांग्रेस की कमजोरी को दर्शाती है। पार्टी खुद को दुरुस्त करने की बजाय भाजपा पर आरोप मढ़ने में ज्यादा विश्वास करती है। तभी तो अपने घर में नाराज हो रहे नेताओं को मनाने की बजाय कांग्रेस प्रवक्ता भाजपा को जिम्मेदार ठहराने लगते हैं।

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ऐसा लगता है कि कांग्रेस के लिए नेताओं का पार्टी छोड़ जाना अब मायने नहीं रखता। पार्टी ना तो इससे चिंतित दिखती है और ना ही इसे रोकने के लिए कोई कार्य करती है। पार्टी के ऐसे कई युवा नेता कांग्रेस का हाथ छोड़ भाजपा का दामन थाम चुके हैं। लेकिन कांग्रेस यथास्थिति को समझने की बजाय भाजपा को ही दोष देने में लगी हुई है। पार्टी की गुटबाजी कम करने के बजाए भाजपा में दोष निकालने में जुटी हुई है। कांग्रेस में यह टकराव लगातार उसे उसके बुरे दौर की ओर पहुंचा रहा है फिर भी पार्टी इससे उबरने की कोशिश करती नहीं दिख रही है।

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