Delhi Election 2025: दिल्ली में खोई सियासी जमीन तलाश कर रही कांग्रेस, क्यों 11 साल पुरानी भूल याद कर रही पार्टी

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साल 2015 में दिल्ली में शून्य पर सिमटी कांग्रेस फिर इसके बाद कभी सिर नहीं उठा पाई। साल 2020 में दिल्ली चुनाव में पार्टी का वोट शेयर घटकर 4.3 फीसदी पहुंच गया। पार्टी का खाता तब भी नहीं खुला था। हालांकि साल 2014 से लेकर 2024 तक लोकसभा चुनाव में पार्टी को ठीक-ठाक वोट जरूर मिले।

दिल्ली विधानसभा चुनाव को त्रिकोणीय मुकाबला बनाने के लिए कांग्रेस पार्टी की उम्मीदों का पूरा जिम्मा हाईकमान की आगे की रणनीति पर निर्भर हैं। राहुल गांधी की दिल्ली के चुनाव अभियान में हो रही एंट्री पर सिर्फ प्रदेश ही नहीं बल्कि राजनीतिक पंडितों की भी नजर हैं। दिल्ली चुनाव में कांग्रेस के अब तक के आक्रामक तेवरों को पार्टी नेतृत्व ने अगले पायदान पर ले जाने का जज्बा दिखाया, तो यह चुनाव बेहद रोचक मोड़ ले सकता है। 

खासकर सत्तारूढ़ सरकार पर राहुल किस तरह से प्रहार करते हैं, यह देखना काफी दिलचस्प होगा। ऐसे में पार्टी पिछले 10 सालों के शासन की विफलताओं के प्रति आक्रामक अभियानों के जरिए लोगों तक यह संदेश पहुंचाने में सफल रही है कि पार्टी इस चुनाव में पूरे दमखम के साथ उतरी है। पार्टी के इस संदेश को गति और मजबूती राष्ट्रीय नेतृत्व के रुख और तेवरों से मिलेगी। दिल्ली विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी की रणनीति और भागीदारी अहम होगी। क्योंकि पार्टी के राजनीतिक फैसलों में उनकी राय आखिरी मानी जाती है। कांग्रेस को दिल्ली में दो अन्य राजनीतिक पार्टियों के खिलाफ लड़ना है।

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11 साल पुरानी भूल

बता दें कि इस चुनाव में कांग्रेस को अपनी 11 साल पुरानी भूल याद आना लाजमी है। हालांकि इसके पीछे भी अपनी वजह है। लेकिन इसको समझने के लिए साल 2008, 2013 और 2015 के नतीजों की चर्चा करना जरूरी है। साल 2008 के चुनाव में 40.3 फीसदी वोट शेयर के साथ 43 सीटें जीतकर कांग्रेस ने सरकार बनाई थी। लेकिन फिर साल 2013 में पार्टी 24.70 फीसदी वोट शेयर के साथ आठ सीटों पर कब्जा जमा पाई थी। वहीं साल 2015 में दिल्ली से कांग्रेस का पूरी तरह से सफाया हो गया था। इस दौरान पार्टी दिल्ली में अपना खाता खोलने में भी नाकामयाब रही थी।

साल 2015 में दिल्ली में शून्य पर सिमटी कांग्रेस फिर इसके बाद कभी सिर नहीं उठा पाई। साल 2020 में दिल्ली चुनाव में पार्टी का वोट शेयर घटकर 4.3 फीसदी पहुंच गया। पार्टी का खाता तब भी नहीं खुला था। हालांकि साल 2014 से लेकर 2024 तक लोकसभा चुनाव में पार्टी को ठीक-ठाक वोट जरूर मिले। लेकिन कांग्रेस ऐसी स्थिति में कभी नहीं पहुंच सकी कि सीट जीत सके। साल 2015 के बाद से कांग्रेस दिल्ली में अपना अस्तित्व बचाने के लिए लड़ रही है। दिल्ली में कांग्रेस इतनी बुरी स्थिति में कभी नहीं रही। दिल्ली में लोकसभा चुनाव के दौरान भी कांग्रेस को कोई खास सफलता हासिल नहीं हुई थी। 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 24% के करीब वोट मिला था।

अब दिल्ली में अपनी खोई सियासी जमीन वापस पाने के लिए कांग्रेस अपने पुराने गढ़ और पुराने समीकरण पर लौट रही है। सलीमपुर कांग्रेस का गढ़ रहा है। यहां पर मुस्लिम और दलित के साथ फॉरवर्ड का कॉम्बिनेशन पार्टी की ताकत को बढ़ा सकता है। कांग्रेस ने दिल्ली में 1998, 2003 और 2008 में अपना कब्जा जमाया है। वहीं 2013 के चुनाव तक दिल्ली में बड़ा उलटफेर देखने को मिला। ऐसे में इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस दिल्ली में अपनी खोई हुई जमीन को वापस पाने की कोशिश में रहने वाली है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस की दिल्ली में वापसी की स्थिति कैसी रहने वाली है।

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