8th Pay Commission के साथ Rabi Subsidy का फैसला, Bihar Assembly Election से पहले Modi Govt ने चला दोहरा दांव

देखा जाये तो जब बिहार विधानसभा चुनाव अपने निर्णायक चरण में हैं, तब मोदी सरकार के इन दो आर्थिक निर्णयों का राजनीतिक अर्थ स्पष्ट है। ये कदम न केवल आर्थिक प्रबंधन का हिस्सा हैं, बल्कि सामाजिक वर्गों के रणनीतिक संतुलन की राजनीति को भी संबोधित करते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आज हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में दो बड़े निर्णय लिए गए। पहला- आठवें केंद्रीय वेतन आयोग (8th Central Pay Commission) की संदर्भ-शर्तों (Terms of Reference) को मंज़ूरी दी गयी और दूसरा- रबी 2025-26 के लिए फॉस्फेटिक और पोटैसिक (P&K) उर्वरकों पर पोषक तत्व आधारित सब्सिडी (Nutrient Based Subsidy) दरों को स्वीकृति दी गयी।
हम आपको बता दें कि आठवें वेतन आयोग का निर्णय लगभग 50 लाख केंद्रीय कर्मियों और 69 लाख पेंशनरों को प्रभावित करेगा। आयोग का नेतृत्व पूर्व न्यायमूर्ति रंजन प्रकाश देसाई करेंगी, जबकि आईआईएम बेंगलुरु के प्रो. पुलक घोष अंशकालिक सदस्य और पेट्रोलियम सचिव पंकज जैन सदस्य-सचिव होंगे। आयोग को 18 महीनों में अपनी अनुशंसाएँ प्रस्तुत करनी हैं और अंतरिम रिपोर्ट जनवरी 2026 तक लागू होने की संभावना जताई गई है
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दूसरे निर्णय के तहत, रबी सीज़न 2025-26 के लिए उर्वरक सब्सिडी का बजटीय प्रावधान लगभग ₹37,952 करोड़ रखा गया है, जो खरीफ सीज़न की तुलना में ₹736 करोड़ अधिक है। सरकार ने यह सुनिश्चित करने की घोषणा की है कि किसानों को डीएपी, एनपीकेएस जैसे उर्वरक सस्ती और सब्सिडी दरों पर उपलब्ध रहें।
देखा जाये तो जब बिहार विधानसभा चुनाव अपने निर्णायक चरण में हैं, तब मोदी सरकार के इन दो आर्थिक निर्णयों का राजनीतिक अर्थ स्पष्ट है। ये कदम न केवल आर्थिक प्रबंधन का हिस्सा हैं, बल्कि सामाजिक वर्गों के रणनीतिक संतुलन की राजनीति को भी संबोधित करते हैं। आठवें वेतन आयोग का गठन और उसकी संदर्भ-शर्तों की घोषणा ऐसे समय में हुई है जब केंद्र सरकार अपने तीसरे कार्यकाल के दूसरे वर्ष में है और प्रशासनिक ढाँचे में कार्यरत कर्मियों का मनोबल राजनीतिक रूप से निर्णायक हो सकता है। हम आपको बता दें कि केंद्रीय कर्मचारी वर्ग— विशेषकर रेलवे, रक्षा प्रतिष्ठान और डाक विभाग जैसे विभागों में कार्यरत लाखों कर्मचारी लंबे समय से महंगाई और वेतन असमानता को लेकर सरकार से कुछ राहत की अपेक्षा कर रहे थे।
मंत्रिमंडल का यह निर्णय उस मध्यमवर्गीय मतदाता को संदेश देता है जिसने परंपरागत रूप से भाजपा का समर्थन किया है, लेकिन हाल के वर्षों में बढ़ती जीवन-यापन लागत और कर-भार से असंतोष भी झेल रहा है। वेतन आयोग की घोषणा से सरकार यह संकेत दे रही है कि वह “स्थिर आय वर्ग” के हितों को लेकर सजग है। हालाँकि, इसका वित्तीय प्रभाव कम नहीं होगा, इससे केंद्र और राज्यों के खज़ाने पर भारी बोझ पड़ सकता है। फिर भी, यह फैसला एक राजनीतिक निवेश की तरह देखा जा सकता है जहां “राजकोषीय अनुशासन” की बजाय “लोक-संतुष्टि” को प्राथमिकता दी गई है।
दूसरा बड़ा फैसला यानि रबी सीज़न के लिए उर्वरक सब्सिडी सीधे किसान मतदाता वर्ग से जुड़ा है। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में जहां छोटे किसान और खेतिहर मज़दूर निर्णायक भूमिका निभाते हैं, वहाँ यह संदेश बेहद असरदार हो सकता है कि केंद्र सरकार कृषि लागत को नियंत्रित रखने के लिए सक्रिय है। फॉस्फेटिक और पोटैसिक उर्वरकों पर सब्सिडी का यह प्रावधान सिर्फ़ मूल्य नियंत्रण नहीं बल्कि कृषि इनपुट संकट को थामने का राजनीतिक प्रयास है। अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे माल के दाम बढ़े हैं और ऐसे में किसानों को राहत देना ग्रामीण असंतोष को कम करने की रणनीति है।
यह निर्णय विशेष रूप से महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि बिहार में कृषि आय और रोजगार दोनों पर निर्भर मतदाता बड़ी संख्या में हैं। इस वर्ग तक “किसान-हितैषी” सरकार का संदेश पहुँचाना भाजपा-जेडीयू गठबंधन के लिए राजनीतिक रूप से लाभकारी सिद्ध हो सकता है।
देखा जाये तो बिहार विधानसभा चुनाव के बीच ये दोनों घोषणाएँ राजनीतिक संदेशों के दो छोर हैं। एक ओर शहरी और मध्यवर्गीय कर्मचारी हैं तो दूसरी ओर ग्रामीण किसान और खेतिहर वर्ग है। मोदी सरकार ने इन दोनों वर्गों को एक साथ संबोधित करने की कोशिश की है। बिहार के संदर्भ में देखें तो राज्य के लगभग चार लाख केंद्रीय कर्मी और लाखों पेंशनभोगी हैं, जिनके परिवार समेत यह प्रभाव कम-से-कम 15–20 लाख मतदाताओं तक पहुँचता है। दूसरी ओर, उर्वरक सब्सिडी का निर्णय सीधे तौर पर किसानों और कृषि मजदूरों की जेब पर असर डालता है। इन दोनों निर्णयों से भाजपा का उद्देश्य स्पष्ट दिखता है- “मंहगाई के बीच राहत का संदेश”, और “केंद्र की संवेदनशीलता का प्रदर्शन”। यानि, विकास की राजनीति को अब आर्थिक राहत और भरोसे की राजनीति से जोड़ा जा रहा है।
बहरहाल, बिहार चुनाव के बीच ये घोषणाएँ किसी आकस्मिक प्रशासनिक निर्णय का परिणाम नहीं हैं; ये संकेतात्मक आर्थिक राजनीति का हिस्सा हैं। मोदी सरकार एक ओर नौकरशाही और मध्यवर्ग को राहत देकर “प्रशासनिक सहयोग” सुनिश्चित करना चाहती है, तो दूसरी ओर किसानों को सब्सिडी के ज़रिए “ग्राम्य विश्वास” मजबूत करना चाहती है।
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