दिल्ली की बिजली वितरण कंपनियों का 27,200 करोड़ रुपये का तीन साल में बकाया चुकाया जाये : न्यायालय

Supreme Court
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फैसले में कहा, ‘‘किसी विशेष वर्ष के लिए शुल्क निर्धारित करते समय राजस्व आवश्यकता के इस हिस्से को शामिल नहीं किया जाता। बल्कि, वितरण कंपनी भविष्य में, एक निश्चित अवधि में, इस तरह के राजस्व को प्राप्त करने या वसूलने की हकदार है।’’

उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए निर्देश दिया कि दिल्ली की तीन निजी बिजली वितरण कंपनियों को 27,200.37 करोड़ रुपये की वहन लागत समेत नियामक परिसंपत्तियों का भुगतान तीन साल के भीतर किया जाए।

विनियामक परिसंपत्तियां वे लागतें या राजस्व हैं जिन्हें एक नियामक एजेंसी (जैसे, बिजली उपयोगिताओं के लिए) किसी कंपनी की बैलेंस शीट में स्थगित करने की अनुमति देती है, खासकर जब वास्तविक लागतें निर्धारित शुल्क से अधिक हो जाती हैं।

इसमें तेजी से वृद्धि हुई है, जो 31 मार्च, 2024 तक बीएसईएस राजधानी पावर लिमिटेड (बीआरपीएल) के लिए 12,993.53 करोड़ रुपये, बीएसईएस यमुना पावर लिमिटेड (बीवाईपीएल) के लिए 8,419.14 करोड़ रुपये और टाटा पावर दिल्ली डिस्ट्रीब्यूशन लिमिटेड (टीपीडीडीएल) के लिए 5,787.70 करोड़ रुपये तक पहुंच गई। इस प्रकार इन कंपनियों को कुल देय 27,200.37 करोड़ रुपये है।

दिल्ली के बिजली उपभोक्ताओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालने वाला यह फैसला न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने तीन बिजली वितरण कंपनियों द्वारा दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग (डीईआरसी) के शुल्क आदेशों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनाया, जिसके कारण विनियामक परिसंपत्तियों में भारी वृद्धि हुई।

न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने 82 पृष्ठों के फैसले में कहा, ‘‘किसी विशेष वर्ष के लिए शुल्क निर्धारित करते समय राजस्व आवश्यकता के इस हिस्से को शामिल नहीं किया जाता। बल्कि, वितरण कंपनी भविष्य में, एक निश्चित अवधि में, इस तरह के राजस्व को प्राप्त करने या वसूलने की हकदार है।’’ अदालत के आदेश के मुताबिक बिजली वितरण कंपनियों को चार वर्षों के भीतर उनके बकाये का भुगतान करना होगा, जिसकी गणना 2024 से की जाएगी।

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