Delhi HC का बड़ा फैसला: हर वादाखिलाफी दुष्कर्म नहीं, सहमति पर कानून का दुरुपयोग न हो।

Delhi High Court
प्रतिरूप फोटो
ANI
Ankit Jaiswal । Nov 3 2025 10:15PM

दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि हर वादाखिलाफी दुष्कर्म नहीं होती, बल्कि झूठे वादे और बाद में टूटे वादे में अंतर होता है। कोर्ट ने सहमति आधारित रिश्तों में आपराधिक कानून, विशेषकर IPC 376, के दुरुपयोग के प्रति आगाह करते हुए, एक मामले में आरोपी को जमानत दी है। यह फैसला 'सुमित बनाम स्टेट' मामले में आपसी संबंधों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता के महत्व को रेखांकित करता है।

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि हर वादे के टूटने को झूठे विवाह के वादे के रूप में नहीं देखा जा सकता। यह फैसला एक ऐसे मामले में आया है जिसमें 20 वर्षीय युवक पर अपनी पड़ोसी के साथ दो साल तक विवाह का झूठा वादा कर दुष्कर्म करने का आरोप लगा था। कोर्ट ने आरोपी को जमानत देते हुए कहा कि मामला सहमति पर आधारित रिश्ते का प्रतीत होता है और इसे दुष्कर्म का मामला मानना उचित नहीं है।

बता दें कि शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने उसे होटलों में बुलाकर कई बार शारीरिक संबंध बनाए और हर बार विवाह की बात करने पर टालमटोल करता रहा। एक बार तो वे विवाह पंजीकरण के लिए तिस हजारी कोर्ट भी गए, लेकिन आरोपी कथित तौर पर अपने माता-पिता को बुलाने का बहाना बनाकर वहां से चला गया और वापस नहीं लौटा। मौजूद जानकारी के अनुसार, शिकायतकर्ता ने आरोपी के माता-पिता से संपर्क करने की कोशिश भी की, लेकिन वह असफल रहीं।

जस्टिस रविंद्र दुडेज़ा ने अपने आदेश में कहा कि झूठे वादे और वादाखिलाफी में अंतर होता है। कोर्ट ने साफ किया कि यदि आरोपी शुरू से विवाह का इरादा न रखता हो और केवल शारीरिक संबंध बनाने के लिए झूठा वादा करे, तो वह दुष्कर्म की श्रेणी में आएगा। लेकिन अगर वास्तव में विवाह का इरादा था और बाद में किसी कारणवश वह पूरा नहीं हो सका, तो उसे हर मामले में धोखाधड़ी नहीं माना जा सकता है।

कोर्ट ने व्हाट्सएप चैट्स का हवाला देते हुए कहा कि शुरुआत में दोनों के बीच आपसी सहमति और प्रेम संबंध थे, जिसमें धोखे का कोई संकेत नहीं दिखाई देता। गौरतलब है कि शिकायतकर्ता द्वारा कई बार आत्महत्या की धमकी देने और जबरन विवाह के लिए दबाव बनाने जैसी बातें भी सामने आईं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि रिश्ता समय के साथ बिगड़ कर विवादित हो गया है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत लगाए गए आरोप गंभीर हैं, लेकिन आपसी सहमति से बने रिश्ते के खराब होने पर आपराधिक कानून का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए। कोर्ट ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को सर्वोपरि बताते हुए कहा कि आरोप यदि अतिरंजित या दुर्भावनापूर्ण प्रतीत हों, तो आरोपी को जमानत देना न्यायसंगत है।

यह मामला ‘सुमित बनाम स्टेट (एनसीटी ऑफ दिल्ली)’ शीर्षक से दर्ज है और आगे की सुनवाई आगामी तिथि में निर्धारित की गई है।

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