Vanakkam Poorvottar: Arunachal Pradesh में अवैध मस्जिदें हटाने और घुसपैठियों को खदेड़ने की मांग को लेकर 12 घंटे का बंद

हम आपको बता दें कि कुछ स्थानीय संगठनों की मांगें हैं कि नाहरलगुन स्थित कैपिटल जामा मस्जिद को हटाया जाये, राजधानी क्षेत्र में साप्ताहिक बाजारों पर पूर्ण प्रतिबंध लगे और अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों को राज्य से तत्काल निर्वासित किया जाये।
अरुणाचल प्रदेश में अवैध मस्जिदों और मजारों के खिलाफ स्थानीय संगठनों का आंदोलन तेज होता जा रहा है। हम आपको बता दें कि राज्य की राजधानी ईटानगर में मंगलवार को तीन स्थानीय संगठनों इंडिजिनस यूथ फोर्स ऑफ अरुणाचल (IYFA), अरुणाचल प्रदेश इंडिजिनस यूथ ऑर्गनाइजेशन (APIYO) और ऑल नाहरलगुन यूथ ऑर्गनाइजेशन (ANYO) ने 12 घंटे का बंद बुलाकर राज्य प्रशासन को खुली चुनौती दे डाली थी। बंद का केंद्रबिंदु तीन मांगें थीं जिन पर इन संगठनों का दावा है कि वह अक्टूबर से लगातार आवाज़ उठा रहे हैं लेकिन राज्य सरकार कुंभकर्णी नींद में सोई हुई है।
हम आपको बता दें कि इन संगठनों की मांगें हैं कि नाहरलगुन स्थित कैपिटल जामा मस्जिद को हटाया जाये, राजधानी क्षेत्र में साप्ताहिक बाजारों पर पूर्ण प्रतिबंध लगे और अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों को राज्य से तत्काल निर्वासित किया जाये। इन संगठनों का कहना है कि मस्जिद और पंजा खाना जैसी संरचनाएँ अवैध निर्माण हैं और कई बसाहटें बिना अनुमति के फली-फूली हैं, जिन पर प्रशासन ने कोई निर्णायक कार्रवाई नहीं की।
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मंगलवार सुबह पाँच बजे से शाम पाँच बजे तक चले बंद को पहला चरण बताते हुए APIYO अध्यक्ष तारो सोनम लियाक ने दावा किया कि बंद शांतिपूर्ण रहा, कोई अप्रिय घटना नहीं हुई है और यह सिर्फ हमारे संगठन की नहीं, बल्कि जनजातीय समाज की सामूहिक पुकार है। उनके अनुसार, यह सिर्फ APIYO का बंद नहीं था बल्कि जनता और स्वदेशी समुदायों की हक़ की पुकार है, जिसे व्यापारिक समुदाय और परिवहन यूनियनों से भी समर्थन मिला।
दूसरी ओर, सरकार की ओर से प्रतिक्रिया सख्त रही। कानून-व्यवस्था के पुलिस महानिरीक्षक (IGP) चुंखु अपा ने साफ कहा कि पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था की गई है, किसी को कानून हाथ में लेने नहीं दिया जाएगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट चेतावनी दी कि बंद समर्थक यदि किसी भी रूप में जबरदस्ती, बाध्यकारी कदम या हिंसा पर उतरे, तो पुलिस सख्त कार्रवाई से पीछे नहीं हटेगी।
विशेष बात यह है कि जिला प्रशासन ने पहले ही इस बंद को अवैध और असंवैधानिक करार दे दिया था, लेकिन संगठनों ने सरकार के रवैये को टालमटोल, वादाखिलाफी और उदासीनता बताते हुए इसे लागू करने का फैसला किया। शिकायत यह है कि सरकार ने 5 दिसंबर को बैठक का वादा किया था, लेकिन वह बैठक कभी हुई ही नहीं। पहले 25 नवंबर को प्रस्तावित बंद को स्थानीय त्योहारों और खेल आयोजनों को देखते हुए टाल दिया गया था, परंतु बंद के आयोजकों के अनुसार धैर्य की सीमा अब पूरी तरह टूट चुकी है।
हम आपको यह भी बता दें कि बंद के दौरान आवश्यक सेवाओं जैसे एम्बुलेंस, दूध आपूर्ति और परीक्षा देने जा रहे छात्रों को छूट दी गई थी। छात्रों से पहचान पत्र साथ रखने का अनुरोध किया गया था। संगठनों ने यह भी कहा था कि यदि कोई अप्रिय घटना घटती है, तो उसकी जिम्मेदारी सरकार की होगी, क्योंकि आंदोलनकारियों के अनुसार प्रशासन ने संवाद का दरवाजा स्वयं बंद कर रखा है।
देखा जाये तो अरुणाचल का यह बंद सिर्फ एक अवैध निर्माण हटाने की मांग नहीं है, यह आदिवासी समुदायों की गूंजती चेतावनी है कि उनकी भूमि, पहचान और सुरक्षा से खिलवाड़ अब और बर्दाश्त नहीं होगा। सरकार महीनों से चुप बैठी रही और आज नतीजा यह है कि सड़कें बंद हैं, जनता परेशान है और प्रशासन सफाई देने में लगा है। यह समझना होगा कि जब लोगों की शिकायतें लगातार अनसुनी रह जाती हैं, तो सड़क ही आखिरी मंच बन जाती है। बंद समर्थकों की हर मांग जायज़ है या नहीं, यह बहस का विषय हो सकता है परंतु इसे नज़रअंदाज़ कर देना शासन की असफलता है। संवाद की विफलता ही टकराव को जन्म देती है और अरुणाचल आज उसी मोड़ पर खड़ा है।
फिर भी, कानून हाथ में लेना समाधान नहीं है। आंदोलन लोकतांत्रिक अधिकार है, पर व्यवस्था तोड़कर अधिकार की ताक़त नहीं बढ़ती, बल्कि कमजोर होती है। सरकार और संगठनों, दोनों को चाहिए कि जल्द से जल्द बातचीत की टेबल पर लौटें।
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