जिस Ricin जहर से Obama को निशाना बनाने का हुआ था प्रयास, उसी के जरिये भारत में रासायनिक जिहाद फैलाने चला था Doctor Ahmed Mohiyuddin Saiyed

Gujarat ATS ricin case
Source X: @dgpgujarat

हम आपको यह भी बता दें कि यह पहली बार नहीं है कि दुनिया ने रिसिन जैसे रासायनिक विष को आतंकवाद के हथियार के रूप में देखा हो। अमेरिका में भी इसी ज़हर का इस्तेमाल करके राष्ट्रपति पर हमला करने की कोशिश की गई थी।

अहमदाबाद से आई गंभीर खबर ने पूरे देश की सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क कर दिया है। हम आपको बता दें कि गुजरात एटीएस (Anti-Terrorism Squad) ने आईएसआईएस (ISIS) से जुड़े तीन आतंकियों को गिरफ्तार किया है, जिनमें एक डॉक्टर भी शामिल है। यह डॉक्टर कोई साधारण व्यक्ति नहीं, बल्कि रिसिन (Ricin) जैसी घातक रासायनिक विष तैयार कर रहा था। एटीएस के अनुसार, 35 वर्षीय डॉ. अहमद मोहीउद्दीन सैयद (हैदराबाद निवासी) को 8 नवंबर को अहमदाबाद-महेसाणा मार्ग के आदालज टोल प्लाज़ा से पकड़ा गया। उसके पास से दो Glock पिस्तौलें, एक Beretta, 30 जिंदा कारतूस और लगभग चार किलो कैस्टर बीन्स (अरंडी के बीज) से तैयार किया गया मैश मिला जिससे रिसिन विष निकाला जा सकता है।

पुलिस ने बताया कि इस डॉक्टर ने पिछले छह महीनों में दिल्ली के आज़ादपुर मंडी, अहमदाबाद के नरोदा फल बाजार और लखनऊ स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) कार्यालय की रेकी की थी। ये सभी जगहें अत्यधिक भीड़भाड़ और सार्वजनिक गतिविधियों के केंद्र मानी जाती हैं, इसलिए इन्हें संभावित आतंकवादी हमले के लिए चुना गया था। डॉक्टर सैयद के साथ दो और आरोपी, यूपी के शामली का निवासी दर्जी आजाद सुलेमान शेख जिसकी उम्र 20 वर्ष है और लखीमपुर खीरी के छात्र मोहम्मद सुहैल मोहम्मद सलीम खान जिसकी उम्र 23 वर्ष है, उसको भी गिरफ्तार किया गया है। जांच से पता चला है कि ये दोनों डॉक्टर को हथियार और कारतूस उपलब्ध करवा रहे थे।

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हम आपको यह भी बता दें कि यह पहली बार नहीं है कि दुनिया ने रिसिन जैसे रासायनिक विष को आतंकवाद के हथियार के रूप में देखा हो। अमेरिका में भी इसी ज़हर का इस्तेमाल करके राष्ट्रपति पर हमला करने की कोशिश की गई थी। एक व्यक्ति जिसने अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को रिसिन से सने पत्र भेजने की बात कबूल की थी, उसे 25 वर्ष की कैद की सज़ा सुनाई गई। 42 वर्षीय मिसिसिपी निवासी जेम्स एवरट डचकी ने 2013 में यह अपराध किया था। वह खुद को निर्दोष बताता रहा, लेकिन जांच में उसके डीएनए के सबूत और अरंडी के बीज से रिसिन तैयार करने की प्रक्रिया सामने आई थी। उसने तत्कालीन राष्ट्रपति ओबामा, सीनेटर रोजर विकर और मिसिसिपी की जज सैडी हॉलैंड को ज़हर सने पत्र भेजे थे। सौभाग्य से ओबामा और विकर तक वे पत्र पहुँचने से पहले ही पकड़ लिए गए, जबकि एक पत्र हॉलैंड तक पहुंचा लेकिन नुकसान नहीं हुआ। अमेरिकी अदालत ने उसे 25 वर्ष कैद और 5 वर्ष पर्यवेक्षण की सज़ा सुनाते हुए कहा था कि “ऐसे अपराध की गंभीरता केवल कानूनी नहीं, बल्कि मानवता पर हमला है।” यह उदाहरण बताता है कि रिसिन का प्रयोग आतंक के ‘सॉफ्ट हाइब्रिड हथियार’ के रूप में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित हो चुका है और अब भारत में उसका इस्तेमाल होने की साजिश एक नई और भयावह दिशा दिखा रही है।

एटीएस की जांच में खुलासा हुआ कि अफगानिस्तान स्थित इस्लामिक स्टेट-खुरासान प्रांत (ISKP) के ऑपरेटिव अबू खालिदा से डॉक्टर सैयद का संपर्क था। सैयद उसके निर्देश पर भारत में रासायनिक हमले की तैयारी कर रहा था। हथियारों की आपूर्ति पाकिस्तान से ड्रोन के जरिए की गई थी। फिलहाल, सभी आरोपियों पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) और आर्म्स एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। मुख्य आरोपी डॉक्टर को अदालत ने 17 नवंबर तक एटीएस की हिरासत में भेजा है।

देखा जाये तो इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत के खिलाफ आतंकवाद अब केवल बंदूक और बमों तक सीमित नहीं रहा। अब इसकी दिशा रासायनिक और जैविक हथियारों की ओर बढ़ रही है।

रिसिन जैसा ज़हर जो कुछ ही मिलीग्राम में किसी व्यक्ति की जान ले सकता है, यदि भीड़भाड़ वाले बाजारों में फैलाया जाता, तो इसका परिणाम सैकड़ों नागरिकों की सामूहिक मृत्यु के रूप में सामने आता। देखा जाये तो यह केवल हिंसक विचारधारा का नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दक्षता का दुरुपयोग है। एक एमबीबीएस डॉक्टर, जिसे जीवन बचाने का प्रशिक्षण मिला था, वही जीवन लेने के लिए प्रयोगशाला में ‘मृत्यु’ बना रहा था। यह इस बात का प्रमाण है कि कट्टरपंथ की जड़ें अब शिक्षित वर्ग तक पहुंच चुकी हैं, जो इसे और भी भयावह बनाती है।

हम आपको यह भी बता दें कि जांच में सामने आया है कि हथियार पाकिस्तान से ड्रोन के माध्यम से भारत में भेजे गए। यह तथ्य नया नहीं, परंतु चिंताजनक रूप से बढ़ता हुआ पैटर्न दर्शाता है। पहले जम्मू-कश्मीर में ड्रोन ड्रॉपिंग होती थी; अब यह नेटवर्क गुजरात और राजस्थान की सीमा तक फैल चुका है। इससे संकेत मिलता है कि आतंकवाद अब असमान्य मार्गों से भारत में प्रवेश कर रहा है और यह “ड्रोन-आधारित आतंकवाद” भविष्य में सुरक्षा एजेंसियों के लिए सबसे कठिन चुनौती बनेगा।

साथ ही यह तथ्य कि एक शिक्षित डॉक्टर आतंकवादी संगठन का हिस्सा बना, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी अध्ययन का विषय है। यह दर्शाता है कि आतंकवाद केवल आर्थिक हताशा का परिणाम नहीं, बल्कि वैचारिक और धार्मिक कट्टरता का संगठित परिणाम है। सैयद जैसा व्यक्ति, जिसने चिकित्सा का अध्ययन चीन से किया और आधुनिक विज्ञान का ज्ञान प्राप्त किया, यदि ‘जिहाद’ के नाम पर विष बनाता है, तो यह शिक्षा और मानवता, दोनों पर एक प्रश्नचिह्न है।

देखा जाये तो अब आतंकवादी मॉड्यूल केवल एक क्षेत्र तक सीमित नहीं रहे। सैयद का नेटवर्क हैदराबाद, यूपी, गुजरात, दिल्ली और अफगानिस्तान तक फैला हुआ था। यह दिखाता है कि आईएसआईएस जैसे संगठन भारत में पैन-इंडियन मॉड्यूल बना रहे हैं। इसलिए भारत को अब केवल पारंपरिक सुरक्षा नहीं, बल्कि Chemical, Biological, Radiological and Nuclear (CBRN) आतंकवाद के विरुद्ध भी तैयारी करनी होगी। साथ ही इस मॉड्यूल का खुलासा दर्शाता है कि खुफिया एजेंसियों को राज्य और केंद्र स्तर पर अधिक त्वरित समन्वय स्थापित करना होगा। इसके अलावा चूंकि मंडियों, मेलों, धार्मिक स्थलों और स्कूलों जैसे स्थानों को अब “सॉफ्ट टार्गेट्स” के रूप में पहचाना जा रहा है इसलिए इन जगहों पर सुरक्षा ढांचा मजबूत करना आवश्यक है।

देखा जाये तो भारत को इस चुनौती का सामना केवल हथियारों से नहीं, बल्कि विचारों से भी करना होगा। आईएसआईएस और उसके सहयोगी संगठनों की सबसे बड़ी ताकत यह है कि वे अपने अनुयायियों को धार्मिक भ्रम और "शहादत" के नाम पर मानसिक रूप से दास बना लेते हैं। इसका मुकाबला केवल कानूनी कठोरता और वैचारिक स्पष्टता से ही संभव है, यानी समाज में ऐसा वातावरण बनाना, जहाँ कट्टर विचारधारा पनपने से पहले ही पराजित हो जाए।

बहरहाल, डॉ. अहमद सैयद की गिरफ्तारी भारत के लिए एक चेतावनी है कि आतंकवाद अब नए रूपों में जन्म ले रहा है, यह केवल जिहादी हथियारों का नहीं, बल्कि प्रयोगशालाओं का आतंकवाद बनता जा रहा है। यह “रासायनिक जिहाद” की ओर बढ़ता हुआ कदम है और यदि समय रहते इसे नहीं रोका गया, तो इसका परिणाम सामान्य आतंक से कहीं अधिक विनाशकारी हो सकता है।

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