कभी एक वोट से हारा था चुनाव, आज सुगमता से कर रहे हैं 17वीं लोकसभा का संचालन
साल 1984 में छात्र संघ अध्यक्ष पद के लिए पर्चा भरने और पहला ही मुकाबला करण सिंह से महज एक वोट से हारने वाले ओम बिरला ने उस हार के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह भाजयुमो से जुड़े फिर कोटा से जयपुर आए और युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए।
सदन को सुचारू रूप से चलाना लोकसभा स्पीकर या लोकसभा अध्यक्ष की सबसे अहम और बड़ी जिमेमदारी होती है। लोकसभा अपने अब तक के 17 कार्यकाल के दौरान कई ऐसे स्पीकरों से रूबरू होती रही है जिन पर कभी सत्ता पक्ष का साथ देने के आरोप लगे तो किसी वक्त में सता पक्ष से ही स्पीकर की टकराहट का गवाह बना है सदन का पटल। 17वीं लोकसभा का नौवां दिन चल रहा है और बीते आठ दिन में सदन में शपथ से लेकर कई बिल भी पेश किए गए। बात करें लोकसभा को सुचारू ढंग से चलाने की जिम्मेदारी का निर्वहन करते अध्यक्ष ओम बिरला की तो पहले दिन से लेकर अब तक ओम बिड़ला कभी सख्त तो कभी नरम तेवर में नजर आए। सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों तरफ के सांसदों को अनुशासन का पाठ पढ़ाने में उन्होंने कोई रियायत नहीं बरती। तीन तलाक विधेयक पेश करने को लेकर सदन में हंगामे के दौरान भी उन्होंने परंपराओं और नियमों का पूरा पालन किया। वह अध्यापक की भूमिका में नजर आए।
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