पद्मश्री सुभाष पालेकर की प्राकृतिक खेती करने की विधि से प्रेरित सुरेश कुमार ने प्राकृतिक खेती में पेश किया उदाहरण

 सैनिक सुरेश कुमार

खेती में रसायनों और कीटनाशकों के प्रयोग तथा उनके दुष्प्रभावों के प्रति अच्छी समझ रखने वाले भूतपूर्व सैनिक ने कृषि विभाग के अधिकारियों से संपर्क कर प्राकृतिक खेती की ओर अपना रूझान दिखाया। कृषि विभाग के अधिकारियों की प्रेरणा और निशुल्क प्रशिक्षण के बाद सुरेश ने प्राकृतिक खेती आरंभ कर खेती के खर्चे को न्यूनतम तथा मुनाफे को दोगुणा से अधिक किया

पालमपुर  विकास खण्ड धर्मशाला की ग्राम पंचायत डग्वार के गांव त्रेंम्बलू (मट) निवासी भूतपूर्व सैनिक सुरेश कुमार ने प्राकृतिक खेती से अच्छी कमाई अर्जित कर क्षेत्र के लोगों के लिए प्रेरणा का केंद्र बन गये हैं। 

 

खेती में रसायनों और कीटनाशकों के प्रयोग तथा उनके दुष्प्रभावों के प्रति अच्छी समझ रखने वाले भूतपूर्व सैनिक ने कृषि विभाग के अधिकारियों से संपर्क कर प्राकृतिक खेती की ओर अपना रूझान दिखाया। कृषि विभाग के अधिकारियों की प्रेरणा और निशुल्क प्रशिक्षण के बाद सुरेश ने प्राकृतिक खेती आरंभ कर खेती के खर्चे को न्यूनतम तथा मुनाफे को दोगुणा से अधिक किया है।  

  

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पद्मश्री सुभाष पालेकर की प्राकृतिक खेती करने की विधि से प्रेरित सुरेश कुमार ने राजस्थान के भरतपुर में वर्ष 2019 में सुभाष पालेकर से प्राकृतिक खेती पर 6 दिनों का प्रशिक्षण प्राप्त किया। सुरेश ने अपने खेतों में रसायनों और कीटनाशकांें का उपयोग बंद कर प्रयोग के तौर पर एक कनाल भूमि पर प्र्राकृतिक खेती से सब्जी उत्पादन आरंभ किया। प्रशिक्षण प्राप्त सुरेश ने रसायनों और कीटनाशकों के स्थान पर प्राकृतिक खेती के लिए प्रयोग होने वाले सभी प्रकार के घटकों को भी घर पर ही तैयार किया। सुरेश ने कड़ी मेहनत और कृषि वैज्ञानिकों के परामर्श पर प्राकृतिक खेती आरंभ कर अपने क्षेत्र में लोगों के लिए मिशाल बन गये।

 

प्रदेश सरकार से अनुदान प्राप्त कर देसी पहाड़ी गाय लेने के साथ प्राकृतिक खेती में उपयोग होने वाले सभी घटकों को स्वयं बनाना आरंभ कर दिया है। इन उत्पादों की भी अच्छी मांग होना भी इनकी आमदनी का अच्छा खासा जरिया बन गया है। एक कनाल भूमि में प्राकृतिक खेती से कम लागत पर अच्छे उत्पादन और स्वास्थ्य बर्धक एवं गुणवत्ता पूर्व होने से इन उत्पादों की भी अच्छी मांग है। धीरे-धीरे उन्हें प्राकृतिक खेती के बहुत अच्छे परिणाम आने लगे। पहाड़ी देसी गाय के गोबर और गोमूत्र इत्यादि से प्राकृतिक खेती के बने घटकों और प्राकृतिक खेती से उत्पन्न उत्पादों की अच्छी मांग सुरेश की कमाई का अच्छा ज़रिया बन गया है। किसानों के लिए प्रेरणा बने सुरेश ने अब तक क्षेत्र के लगभग 150 किसानों को अपने साथ जोड़ कर प्राकृतिक खेती की ओर प्रेरित भी किया है। 

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प्राकृतिक खेती में रूचि, कम लागत पर फसलों के अच्छे परिणाम, उत्पादों की लोकप्रियता को देखते हुए सुरेश के उत्पादों के प्रचार और प्रसार के लिए उपायुक्त कार्यालय कांगड़ा में प्राकृतिक खेती के उत्पाद बेचने का अवसर उपलब्ध करवाया गया। रसायन और कीटनाशक मुक्त सुरेश के कृषि उत्पाद यहां हाथों-हाथ बिकने से अच्छा मुनाफा भी प्राप्त हुआ। अब सुरेश  की सब्जियां लोग इनके घर से खरीद रहे हैं। इस वर्ष कृषि विभाग ने सुरेश कुमार को उत्कृष्ट कृषक पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है। 

 

सुरेश कुमार ने बताया कि उनके पास कुल 10 बीघा भूमि है और प्राकृतिक खेती के अंतर्गत 4 बीघा भूमि पर भिन्डी, फ्रांसबीन, कद्दू वर्गीय फसलें, मक्की, धान, मटर, धनिया, चुकंदर, पालक, फुल गाोभी, सरसों, गेहूं, मूली आलू इत्यादि का उत्पादन करते हैं। उन्होंने बताया कि रासायनिक खेती करने में उनका फसल पर लगभग पांच हजार रुपये व्यय होता था और लगभग 45 हजार रुपये की आय प्राप्त होती थी। प्राकृतिक खेती आरंभ करने पर उनका खर्च लगभग एक हजार रुपये और आमदनी लगभग 75 हजार रुपये तक हो रही है।  उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती के उत्पादों की मांग भी बहुत अच्छी और अधिक होने से उन्होंने एक से 8 कनाल क्षेत्र में प्राकृतिक खेती आरंभ की है और सभी प्रकार की सब्जियों और फसलों की मिश्रित रूप में पैदावार कर रहे हैं।

सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती परियोजना के उप परियोजना अधिकारी डॉ0 अरूण व्यास ने बताया कि न्यूनतम लागत और अधिक मांग के कारण प्राकृतिक खेती की ओर किसानों रूझान दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। उन्होंने कहा धर्मशाला विकास खण्ड के अंतर्गत किसानों को प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण देने के लिए 63 शिविरों का आयोजन किया गया है जिसमें 1677 किसानों को प्रशिक्षण दिया गया है। उन्होंने बताया कि इसमें 1562 किसानों ने प्राकृतिक खेती आरंभ भी कर दी है। उन्होंने बताया कि कोई भी किसान सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती आरंभ करना चाहते हैं और इसके लिए प्रशिक्षण इत्यादि लेना चाहतं हैं। संबंिधत विकास खण्ड कार्यालय में आतमा परियोजना के अधिकारियों से संपर्क कर सकते हैं।  

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