टीआरएस से बीआरएस तक... क्या इस राजनीतिक चाल का फायदा मिलेगा केसीआर को ?

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राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखने के प्रयासों के तहत मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के अपनी पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) का नाम बदलने के दांव पर राजनीतिक पंडितों की निगाहें टिक गई हैं।

नयी दिल्ली। राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखने के प्रयासों के तहत मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के अपनी पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) का नाम बदलने के दांव पर राजनीतिक पंडितों की निगाहें टिक गई हैं। कई राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह कदम राव के लिए राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में अपना कद बढ़ाने में सहायक होगा जबकि अन्य का कहना है कि यह दांव उलटा भी पड़ सकता है। राव को राष्ट्रीय राजनीति में स्थापित करने के लिए बुधवार को तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) का नाम बदलकर भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) किया गया। पार्टी की महत्वपूर्ण आम सभा बैठक में यह फैसला लिया गया। इसके बाद पार्टी कार्यकर्ताओं ने जमकर जश्न मनाया।

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पार्टी का नाम बदलने की घोषणा से उत्साहित कार्यकर्ताओं ने अपनी पार्टी के नेता के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) को ‘राष्ट्रीय नेता’ करार दिया। कार्यकर्ताओं ने पटाखे फोड़े और मिठाइयां बांटकर जश्न मनाया तथा ‘टीआरएस और केसीआर जिंदाबाद’ के नारे लगाए। कार्यकर्ताओं ने ‘देश के नेता केसीआर’ के नारे लगाए और पोस्टर पर भी इसी तरह के नारे लिखे नजर आये। कई विश्लेषक इस विचार को राष्ट्रीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर राज्य में पार्टी के आधार को मजबूत करने की कवायद के तौर पर देख रहे हैं, जहां भाजपा 2023 के विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक रूप से खासी सक्रिय दिख रही है।

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हालांकि, एक बड़ा सवाल यह है कि क्या 2001 में एक अलग तेलंगाना राज्य बनाने के एकल-बिंदु एजेंडे के साथ गठित टीआरएसराष्ट्रीय राजनीति में मजबूत उपस्थिति दर्ज करा पाएगी और क्या केसीआर के नेतृत्व को अन्य राज्यों में स्वीकार किया जाएगा, खासकर उत्तर भारत में? एक राजनीतिक पर्यवेक्षक ने कहा कि केसीआर ऐसे राजनेता नहीं हैं जो बिना किसी ठोस वजह के काम करते हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश करने की उनकी योजना केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के खिलाफ उभरे शून्य को भरने की उनकी महत्वाकांक्षा से उपजी है।

इसके अलावा, तेलंगाना के 68 वर्षीय नेता का मानना है कि कई कल्याणकारी योजनाओं के साथ ही महिलाओं, किसानों और हाशिए के समूहों का समर्थन हासिल करके उनकी पार्टी को सफलता मिल सकती है। कुछ प्रमुख योजनाओं में ‘रायथु बंधु’, ‘दलित बंधु’, ‘केसीआर किट’ और ‘आसरा’ पेंशन शामिल हैं। ‘रायथु बंधु‘ के तहत हर किसान की प्रारंभिक निवेश जरूरतों का ख्याल रख जाता है जबकि ‘दलित बंधु’ के जरिये प्रत्येक अनुसूचित जाति परिवार को एक उपयुक्त आय-सृजन व्यवसाय स्थापित करने के लिए 10 लाख रुपये की एकमुश्त पूंजी सहायता प्रदान की जाती है। इसी तरह, ‘केसीआर किट’ के तहत गर्भवती महिलाओं को अपनी और नवजात शिशु की देखभाल के लिए 12,000 रुपये की सहायता राशि दी जाती है जबकि सभी गरीबों को ‘आसरा’ पेंशन दी जा रही है। टीआरएस का नाम बदलने और इसे ‘राष्ट्रीय’ दल के रूप में बदलने के पीछे केसीआर की योजना 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी खेमे की राजनीति में मजबूत स्तंभ के रूप खुद को पेश करना है।

तेलंगाना जन समिति के संस्थापक और राजनीतिक विश्लेषक एम. कोडंदरम का मानना है, ‘‘यह पहली बार है, जब टीआरएस जैसी राज्य-मान्यता प्राप्त पार्टी खुद को बीआरएस के रूप में बदल रही है। यह एक दुस्साहस होने जा रहा है।’’ उन्होंने कहा कि संयुक्त आंध्र प्रदेश में मजबूत उपस्थिति वाली तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) एक पंजीकृत राष्ट्रीय दल है, लेकिन तेदेपा की राष्ट्रीय स्तर पर कोई प्रगति नहीं हुई है। कोडंदरम ने कहा कि इसी तरह का मामला ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के साथ है लेकिन तेदेपा और एआईएमआईएम दोनों ने ही अपनी पार्टियों का नाम नहीं बदला। एक अन्य विश्लेषक ने कहा कि भाजपा राज्य में अपनी राजनीतिक गतिविधियां तेज कर रही है, जिसके चलते केसीआर लोगों का ध्यान राष्ट्रीय मुद्दों पर आकर्षित करना चाहते हैं।

प्रसिद्ध कौटिल्य इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी (केआईपीपी) के एक विश्लेषक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि यह एक ‘जुआ’ है कि राव सीधे राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में उतर रहे हैं। हाल के दिनों में, केसीआर ने जद (एस) प्रमुख एचडी देवेगौड़ा, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के शरद पवार, तृणमूल कांग्रेस पार्टी (टीएमसी) की ममता बनर्जी, आप के अरविंद केजरीवाल और अन्य सहित कई क्षेत्रीय पार्टी नेताओं से मुलाकात की है, और वह एक गैर-भाजपा, गैर-कांग्रेसी गठबंधन के पक्ष में हैं। केसीआर की राष्ट्रीय आकांक्षाओं के राजनीतिक टिप्पणीकार के रामचंद्र मूर्ति ने कहा कि या तो एक राष्ट्रीय नेता को साथ लेना या छोटे दलों के साथ विलय करना, राष्ट्रीय पार्टी बनने का एक तरीका था।

कई तेलुगु और अंग्रेजी अखबारों के संपादक रहे मूर्ति ने कहा, ‘‘हालांकि, मुझे नहीं लगता कि कोई भी पार्टी टीआरएस के साथ विलय करने के लिए उत्सुक होगी। यहां तक ​​कि जेडीएस भी ऐसा नहीं करेगा और केवल गठबंधन करेगा। गुजरात में भी, एक पूर्व सीएम आया और टीआरएस प्रमुख से मिला। उनका गठबंधन हो सकता है लेकिन उनके साथ विलय नहीं होगा।’’

विश्लेषक ने कहा कि इससे राष्ट्रीय स्तर पर केसीआर को ‘बड़ा फायदा’ हो भी सकता है और नहीं भी, लेकिन यह निश्चित रूप से एक क्षेत्रीय से एक राष्ट्रीय नेता के रूप में ‘उनकी छवि सुधारने’ में मदद करेगा, जिससे उन्हें और उनकी पार्टी को प्रदेश में भाजपा के ऑपरेशन तेलंगाना शुरू करने के मद्देनजर तेलंगाना में अपनी स्थिति को मजबूत करने में मदद मिलेगी। विश्लेषक ने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर परिणामों से अलग, यह एक फायदे का सौदा है क्योंकि उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं है। अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को हासिल करने के लिए केसीआर दलितों, आदिवासियों और किसानों के वोटों पर भी निर्भर हैं। उन्होंने अपने राज्य में अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण को 6 से बढ़ाकर 10 प्रतिशत कर दिया है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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