हरियाणा हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, 18 साल की उम्र तक याचिका डालने पर वैध माना जाएगा नाबालिग लड़की का विवाह

Haryana High court big decision on child marriage

चंडीगढ़ में स्थित पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने लुधियाना फैमिली कोर्ट के आदेश को दरकिनार करते हुए एक जोड़े की तलाक की अर्जी को सहमति प्रदान कर दी है। मामला यह था कि लुधियाना के एक जोड़े ने जिनकी शादी 27 फरवरी 2009 को हुई थी।

चंडीगढ़ में स्थित पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने लुधियाना फैमिली कोर्ट के आदेश को दरकिनार करते हुए एक जोड़े की तलाक की अर्जी को सहमति प्रदान कर दी है। मामला यह था कि लुधियाना के एक जोड़े ने जिनकी शादी 27 फरवरी 2009 को हुई थी। पिछले साल 22 जून को लुधियाना फैमिली कोर्ट में अपनी शादी खत्म करने की याचिका दायर की थी। शादी के समय लड़की 17 साल, 6 महीने और 8 दिन की थी। वहीं लड़का 23 वर्ष का था। मामले में शख्स ने पत्नी के नाबालिग रहते ही शादी की थी। इस पर लुधियाना फैमिली कोर्ट ने फैसला सुनाया कि जोड़े की शादी मान्य नहीं है क्योंकि लड़की की उम्र शादी की समय 18 वर्ष से कम थी।

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याचिका को खारिज करते हुए लुधियाना फैमिली कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 5 का जिक्र करते हुए कहा कि विवाह को कानूनन वैध माने जाने के लिए दुल्हन की उम्र 18 वर्ष या इससे अधिक होनी चाहिए ।फैमिली कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए जोड़े की इस याचिका को खारिज कर दिया था। हरियाणा पंजाब उच्च न्यायालय के अनुसार इसमें दोनों पक्षों को हिंदू युवा अधिनियम 1955 की धारा 13 दो (४) अनुसार उनकी शादी को रद्द कर देना चाहिए था ।अधिनियम 1955 की धारा 13(2) के अनुसार विवाह को खत्म करने की याचिका तभी डाली जा सकती है, अगर लड़की की शादी 15 वर्ष की उम्र में हुई है और फिर 18 साल की होने से पहले ही उसने विवाह को रद्द करने की याचिका डाली हो।

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इस मामले में लड़की की उम्र शादी के समय 17 वर्ष से अधिक थी और उसने बालिग होने पर अपने शादी को अमान्य घोषित करने की कोई याचिका दायर नहीं की थी ।ऐसे में आपसी सहमति से शादी रद्द करने की याचिका दायर करने की अनुमति दी जानी चाहिए थी। इधर हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि चूंकि दुल्हन की उम्र शादी के समय 17 वर्ष से अधिक थी और उसके द्वारा शादी को अमान्य घोषित करने के लिए कोई भी याचिका दायर नहीं की गई थी ,तो ऐसे में हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 बी के तहत अलगाव की अनुमति दी जानी चाहिए। दोनों पक्षों के बयान दर्ज करने के बाद अदालत की जस्टिस रितु बाहरी और जज अरुण मूंगा की खंडपीठ ने आपसी सहमति से उन्हें तलाक दे दिया।

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