शाहबानो मामले पर बनी फिल्म 'हक़' को हाई कोर्ट से हरी झंडी, बेटी की अर्जी खारिज।

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 'शाहबानो केस' पर आधारित फिल्म 'हक़' की रिलीज़ रोकने की याचिका खारिज कर दी है, यह स्पष्ट करते हुए कि मृत व्यक्ति की निजता उनके जीवनकाल के साथ समाप्त हो जाती है। यामी गौतम धर और इमरान हाशमी अभिनीत यह फिल्म अब 'मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं के भरण-पोषण के अधिकार' से जुड़े 1985 के ऐतिहासिक फैसले को सिनेमाई रूप में प्रस्तुत कर सकेगी, जिसके लिए कानूनी बाधाएं दूर हो गई हैं।
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने हाल ही में एक याचिका को खारिज कर दिया है, जिसे शाहबानो बेगम की बेटी ने दायर किया था। यह याचिका हिंदी फिल्म ‘हक़’ की रिलीज़ पर रोक लगाने की मांग को लेकर दायर की गई थी। बता दें कि इस फिल्म में यामी गौतम धर और इमरान हाशमी मुख्य भूमिकाओं में नजर आने वाले हैं, और यह फिल्म प्रसिद्ध शाहबानो केस से प्रेरित है, जो 1985 में मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं के हक़ से जुड़ा एक ऐतिहासिक फैसला था।
मौजूद जानकारी के अनुसार, शाहबानो बेगम की बेटी सिद्दीका बेगम खान का आरोप था कि यह फिल्म उनके परिवार की सहमति लिए बिना बनाई गई है और इसमें उनकी दिवंगत मां के निजी जीवन को गलत तरीके से दर्शाया गया है। उन्होंने यह भी दावा किया कि फिल्म उनके परिवार की निजता का उल्लंघन करती है और उनकी मां की छवि का व्यावसायिक शोषण किया जा रहा है।
हालांकि, इंदौर बेंच के जस्टिस प्रणय वर्मा ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा या निजता उसके जीवन के साथ ही समाप्त हो जाती है, इसे किसी चल या अचल संपत्ति की तरह विरासत में नहीं पाया जा सकता। अदालत ने कहा कि मृत व्यक्ति के निजी जीवन पर आधारित सामग्री पर कानूनी वारिसों की सहमति अनिवार्य नहीं है।
गौरतलब है कि 1985 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को भरण-पोषण का अधिकार देने का मार्ग प्रशस्त किया था, जिसके बाद यह मुद्दा देशभर में बहस का केंद्र बन गया था। अब ‘हक़’ फिल्म के जरिए उस संघर्ष को सिनेमाई रूप में पेश किया जा रहा है, जिसे लेकर अब कानूनी अड़चन दूर हो चुकी हैं।
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