कैसे काम करती है भारत की संसद, क्या है सत्र बुलाने का तरीका, जानें कब-कब बुलाया गया Special Session

Parliament
X @JoshiPralhad
अंकित सिंह । Sep 2 2023 1:36PM

आजादी से पहले, केंद्रीय विधानसभा की बैठकें साल में 60 से कुछ अधिक दिनों के लिए होती थीं। आज़ादी के बाद पहले 20 वर्षों में यह संख्या बढ़कर साल में 120 दिन हो गई। तब से, राष्ट्रीय विधायिका की बैठक के दिनों में गिरावट आई है।

मानसून सत्र हंगामेदार रहने के कुछ दिनों के बाद सरकार ने संसद का विशेष सत्र बुलाया है। यह सत्र 18 से 22 सितंबर के बीच आयोजित किया जाएगा। इस बात की जानकारी केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने दी। हालांकि, संसद के विशेष सत्र को बुलाने के पीछे का कारण क्या है, इसको लेकर अब तक कुछ खास जानकारी नहीं दी गई है। दावा किया जा रहा है कि सरकार की ओर से आने वाले दिनों में इसको लेकर जानकारी साझा की जाएगी। हालांकि, इस संसद सत्र को लेकर कयासों का दौर लगातार जारी है। आम तौर पर संसद सत्र को लेकर सरकार अपना एजेंडा साझा करने और चर्चा के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाती है। हालांकि इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ है। 

इसे भी पढ़ें: 'बहुत घबराहट में है केंद्र सरकार', CM Nitish बोले- मुझे शक है कि ये पहले चुनाव करा देंगे

संसद की बैठक कब होती है?

भारत की संसद में बैठकों का कोई निश्चित कैलेंडर नहीं है। 1955 में, एक लोकसभा समिति ने संसदीय सत्रों के लिए एक समय सारिणी प्रस्तावित की थी। इसने सिफारिश की कि संसद का बजट सत्र 1 फरवरी से शुरू होकर 7 मई तक चलेगा और मानसून सत्र 15 जुलाई से शुरू होकर 15 सितंबर को समाप्त होगा। समिति ने सुझाव दिया कि शीतकालीन सत्र, वर्ष का आखिरी सत्र, 5 नवंबर से शुरू होकर 22 दिसंबर को समाप्त होगा। हालांकि सरकार इस कैलेंडर पर सहमत थी, लेकिन इसे कभी लागू नहीं किया गया। बजट सत्र, मानसून सत्र और शीतकालीन सत्र बुलाया तो जाता है लेकिन तारीखों का निर्धारन ऐसा नहीं रहता है। 


संसद की बैठक कब होगी इसका निर्णय कौन करता है?

सरकार संसदीय सत्र की तारीख और अवधि निर्धारित करती है। संसदीय मामलों की कैबिनेट कमेटी यह फैसला लेती है। वर्तमान में इसमें दस मंत्री हैं, जिनमें रक्षा, गृह, वित्त, कृषि, जनजातीय मामले, संसदीय मामले और सूचना और प्रसारण मंत्री शामिल हैं। कानून मंत्री और विदेश राज्य मंत्री समिति में विशेष आमंत्रित सदस्य हैं। राष्ट्रपति को समिति के निर्णय के बारे में सूचित किया जाता है, जो फिर संसद सदस्यों को सत्र के लिए मिलने के लिए बुलाते हैं। 

संविधान क्या कहता है?

संविधान के मुताबिक दो संसदीय सत्रों के बीच छह महीने का अंतराल नहीं होना चाहिए। यह प्रावधान औपनिवेशिक विरासत है। संविधान निर्माताओं ने इसे 1935 के भारत सरकार अधिनियम से उधार लिया था। इसने ब्रिटिश गवर्नर जनरल को अपने विवेक पर केंद्रीय विधायिका का सत्र बुलाने की अनुमति दी, जिसके तहत दो सत्रों के बीच 12 महीने से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए। डॉ बी आर अम्बेडकर ने कहा कि केंद्रीय विधानसभा को बुलाने का उद्देश्य केवल कर एकत्र करना था, और साल में एक बार बैठक सरकार के लिए विधायिका द्वारा जांच से बचने के लिए थी। संविधान सभा ने सत्रों के बीच का अंतर घटाकर छह महीने कर दिया। अनुच्छेद 85 में प्रावधान है कि संसद की वर्ष में कम से कम दो बार बैठक होनी चाहिए और दो सत्रों के बीच का अंतर छह महीने से अधिक नहीं होना चाहिए। 

लोकसभा और राज्यसभा की बैठकें कितनी बार होती हैं?

आजादी से पहले, केंद्रीय विधानसभा की बैठकें साल में 60 से कुछ अधिक दिनों के लिए होती थीं। आज़ादी के बाद पहले 20 वर्षों में यह संख्या बढ़कर साल में 120 दिन हो गई। तब से, राष्ट्रीय विधायिका की बैठक के दिनों में गिरावट आई है। 2002 और 2021 के बीच, लोकसभा में औसतन 67 कार्य दिवस थे। राज्य विधानसभाओं की स्थिति तो और भी बदतर है। 2022 में, 28 राज्य विधानसभाओं की बैठक औसतन 21 दिनों तक चली। इस साल अब तक संसद की 42 दिन बैठक हो चुकी है।

कई अवसरों पर, पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन ने सिफारिश की है कि संसद की बैठक 100 से अधिक दिनों तक चलनी चाहिए। 2000 में गठित संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए राष्ट्रीय आयोग ने इसी तरह की सिफारिश की थी। व्यक्तिगत सांसदों ने निजी सदस्य विधेयक पेश किए हैं जिनमें संसद की बैठकों के दिनों में बढ़ोतरी की बात कही गई है। पूर्व राज्यसभा सांसद नरेश गुजराल ने अपने 2017 के निजी सदस्य विधेयक में सुझाव दिया कि संसद को एक वर्ष में चार सत्रों के लिए मिलना चाहिए, जिसमें तत्काल सार्वजनिक महत्व के मामलों पर बहस के लिए 15 दिनों का एक विशेष सत्र भी शामिल है। यदि 1955 की लोकसभा समिति की सिफ़ारिशों को स्वीकार कर लिया जाता तो संसद हर साल आठ महीने के लिए सत्र में होती। अमेरिकी कांग्रेस और कनाडा, जर्मनी और ब्रिटेन की संसदों का सत्र पूरे वर्ष चलता रहता है और उनकी बैठक के दिनों का कैलेंडर वर्ष की शुरुआत में तय होता है।

संसद का विशेष सत्र क्या है?

संविधान में "विशेष सत्र" शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है। यह शब्द कभी-कभी उन सत्रों को संदर्भित करता है जिन्हें सरकार विशिष्ट अवसरों के लिए बुलाती है। हालाँकि, संविधान के अनुच्छेद 352 (आपातकाल की उद्घोषणा) में "सदन की विशेष बैठक" का उल्लेख है। अगर सरकार को संसद के विशेष सत्र को बुलाने की जरूरत महसूस होती है तो इसे बुलाया जा सकता है। संविधान का अनुच्छेद 85(1) राष्ट्रपति को ऐसी स्थिति संसद के प्रत्येक सदन का सत्र बुलाने का अधिकार देता है। इसके साथ ही लोकसभा का विशेष सत्र बुलाने के लिए कुल सदस्यों का कम से कम 10वां हिस्सा राष्ट्रपति या लोकसभा अध्यक्ष को लिखित रूप में देते हैं। 

इसे भी पढ़ें: Prajatantra: मास्टर स्ट्रोक की तैयारी में मोदी सरकार, क्या फेल हो जाएगी विपक्ष की रणनीति?

केंद्र ने बुलाया विशेष संसद सत्र

1. संसद का पहला विशेष सत्र 1947 में पाकिस्तान और भारत की आजादी के दौरान 14 अगस्त और 15 अगस्त को बुलाया गया था।

2. 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान पीएम जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में केंद्र ने दूसरी बार विशेष सत्र बुलाया। पीएम ने एलएसी पर चीन की आक्रामकता से उत्पन्न तनावपूर्ण स्थिति पर चर्चा के लिए 8 और 9 नवंबर को संसदीय सत्र बुलाया था।

3. 1972 में, इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने 15 अगस्त को भारत की स्वतंत्रता की रजत जयंती मनाने के लिए एक और विशेष संसदीय सत्र बुलाया।

4. 'भारत छोड़ो आंदोलन' की 50वीं वर्षगांठ के जश्न के लिए 9 अगस्त 1992 को एक और विशेष सत्र बुलाया गया था। 

5. अगला विशेष सत्र, जो आधी रात का सत्र था, 15 अगस्त 1997 को जनता दल नेता और तत्कालीन प्रधान मंत्री इंद्र कुमार गुजराल द्वारा भारत की स्वतंत्रता की 50 वीं वर्षगांठ के अवसर पर बुलाया गया था।

6. वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के कार्यान्वयन के लिए केंद्र द्वारा 30 जून, 2017 को एक और विशेष सत्र बुलाया गया था। दोनों सदनों को मध्यरात्रि सत्र के लिए बुलाया गया था, जो मोदी सरकार द्वारा किया गया पहला सत्र था। गौरतलब है कि यह पहला विशेष सत्र भी था, जिसमें सरकार की ओर से कोई बिल पेश किया गया था। 

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़