अपराध अगर दीवानी मामला हो तो अदालतें एससी/एसटी कानून के तहत मामलों को निरस्त कर सकती हैं: न्यायालय

नयी दिल्ली| उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि अगर किसी अदालत को लगता है कि एससी/एसटी अधिनियम के तहत दर्ज कोई अपराध मुख्य रूप से निजी या दीवानी का मामला है या पीड़ित की जाति देखकर नहीं किया गया है तो वह मामले की सुनवाई निरस्त करने की अपनी शक्ति का प्रयोग कर सकती है।
प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, “अदालतों को इस तथ्य का ध्यान रखना होगा कि उस अधिनियम को संविधान के अनुच्छेद 15, 17 और 21 में निहित संवैधानिक सुरक्षात्मक प्रावधानों के आलोक में बनाया गया था, जिसका उद्देश्य था कमजोर वर्गों के सदस्यों का संरक्षण करना और जाति आधारित प्रताड़ना का शिकार हुए पीड़ितों को राहत और पुनर्वास उपलब्ध कराना।”
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पीठ ने कहा, “दूसरी तरफ अगर अदालत को लगता है कि सामने पेश हुए मामले में अपराध, भले ही एससी/एसटी अधिनियम के तहत दर्ज किया गया हो, फिर भी वह मुख्य रूप से निजी या दीवानी प्रकृति का है या जहां कथित अपराध पीड़ित की जाति देखकर नहीं किया गया हो, या जहां कानूनी कार्यवाही कानून प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा, ऐसे मामलों में अदालतें कार्यवाही को समाप्त करने की अपनी शक्ति का प्रयोग कर सकती हैं।”
न्यायालय ने यह टिप्पणी, अनुसूचित जाति/जनजाति (प्रताड़ना निवारण) अधिनियम के तहत दोषी करार दिए गए एक व्यक्ति के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही समाप्त करने के दौरान की।
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