किस हाल में हैं कमल छोड़ कांग्रेस का हाथ थामने वाले ये नेता?

Congress
अभिनय आकाश । Jan 20 2021 6:36PM

कांग्रेस के लिए बीजेपी के कद्दावर नेताओं से भिड़ने वाले ये दिग्गज चुनाव में तो कोई खास करिश्मा नहीं कर सके। लेकिन उसके बाद भविष्य में भी पार्टी द्वारा किनारे ही रखे गए। जिन्होंने पूरे दम-खम के साथ कांग्रेस में एंट्री ली और जीत के दावे भी बड़े-बड़े किए लेकिन पार्टी के लिए बलि का बकरा बन गए।

राजनीति में न तो कोई स्थायी दोस्त होता है और न ही स्थायी दुश्मन। इस तरह की पंक्तियों का अभी तक न जाने कितनी बार प्रय़ोग किया गया। इस कहावत को कई राजनेताओं ने अपने दल-बदल के माध्यम से चरितार्थ किया है। देश की ग्रैंड ओल्ड पार्टी कांग्रेस ने कमल छोड़ हाथ थामने वाले नेताओं को सिर-माथे पर बिठाया। कभी बीजेपी के खिलाफ हथियार बनाकर चुनाव रण में भी उतार दिया। कांग्रेस के लिए बीजेपी के कद्दावर नेताओं से भिड़ने वाले ये दिग्गज चुनाव में तो कोई खास करिश्मा नहीं कर सके। लेकिन उसके बाद भविष्य में भी पार्टी द्वारा किनारे ही रखे गए। आज हम कुछ ऐसे ही राजनेताओं की कहानी के बारे में बताएंगे। जिन्होंने पूरे दम-खम के साथ कांग्रेस में एंट्री ली और जीत के दावे भी बड़े-बड़े किए लेकिन पार्टी के लिए बलि का बकरा बन गए। 

करुणा शुक्ला बनाम रमन सिंह

छत्तीसगढ़ में साल 2018 में विधानसभा के चुनाव होने थे। तत्तकालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह चुनावी मैदान में थे। लेकिन उन्हें टक्कर देने के लिए कांग्रेस पार्टी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला को राजनांदगांव से टिकट दे दिया। करुणा शुक्ला कभी बीजेपी की सदस्य हुआ करती थीं। लेकिन 2013 में उन्होंने बीजेपी से अपना 32 साल पुराना रिश्ता तोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया। करुणा शुक्ला बीजेपी के टिकट पर कोरबा से सांसद रह चुकी हैं। साल 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले ही शुक्ला ने कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर ली थी। 2014 के चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर बिलासपुर से चुनाव लड़ा लेकिन बीजेपी उम्मीदवार से हार गईं। उसके बाद छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने करुणा शुक्ला को रमन सिंह के खिलाफ राजनांदगांव से चुनावी मैदान में उतारा। शुरुआती रुझानों में करुणा शुक्ला ने रमन सिंह को पीछे छोड़ दिया था। लेकिन बाद में वह पिछड़ती गईं और आखिर में हार का सामना करना पड़ा। तब से लेकर अभी तक करुणा शुक्ला न तो किसी चर्चा में सामने आईं और कांग्रेस में एक तरह से किनारे कर दीं गई। 

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मानवेंद्र सिंह बने बलि का बकरा 

पार्टी में हाशिये पर रखे जाने के आरोपों के साथ राजस्थान विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा के संस्थापक सदस्य और कद्दावर नेता रहे जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया। आलम ये रहा कि वसुंधरा राजे के गढ़ झालावाड़ में मानवेंद्र ने चुनाव लड़ाष लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। साल 2018 में एक बड़ा सम्मेलन कर 'भाजपा छोड़ दी- कमल का फूल हमारी भूल' कहने वाले मानवेंद्र कांग्रेस में तो शामिल हो गए। लेकिन उन्होंने पार्टी से अपनी पत्नी समेत समर्थकों के लिए तीन टिकट मांगी थी। लेकिन मानवेंद्र को किसी के लिए टिकट तो नहीं मिला बल्कि उन्हें बलि का बकरा बनाकर वसुंधरा राजे के खिलाफ चुनावी मैदान में उतार दिया गया। पिछली हार के बाद अगले वर्ष ही होने वाले लोकसभा चुनाव 2019 में स्वाभिमान का नारा देते हुए मानवेंद्र सिंह ने वसुंधरा राजे के पुत्र दुष्यंत सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ा। लेकिन यहा भी उन्हें जीत नहीं मिली। जिसके बाद से ही मानवेंद्र सिंह कांग्रेस में दरकिनार किए जाने लगे। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार मानवेंद्र सिंह का कांग्रेस से मोहभंग होता जा रहा है। पार्टी में लगातार हो रही उपेक्षा से मानवेंद्र भाजपा में वापस आने की कवायद में भी लगे है। लेकिन वसुंधरा राजे के रहते इस तरह की संभावना बेहद कम ही नजर आती है। 

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नवजोत सिंह सिद्धू

बीजेपी का साथ छोड़ कांग्रेस में गए बड़बोले नेता नवजोत सिंह सिद्धू वर्तमान दौर में किनारे कर दिए गए हैं। पहले तो अमरिंदर सरकार से अदावत की वजह से पहले तो सिद्धू को कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा देने पर मजबूर होना पड़ा। फिर पार्टी की बड़ी बैठकों में भी उन्हें दरकिनार किया जाने लगा। आलम तो ये भी रहा कि कांग्रेस के पंजाब प्रभारी हरीश रावत ने तो यहां तक कह दिया था कि राज्य सरकार और पार्टी में कोई जगह नहीं है। नवजोत सिंह सिद्धू भाजपा से राज्यसभा सांसद रह चुके थे और उन्हें राज्यसभा से इस्तीफा देकर कांग्रेस का दामन थामा और अमृतसर से विधायक बने। 

शिवराज के साले की कांग्रेस में एंट्री

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साले संजय सिंह ने विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस का हाथ थाम लिया। कांग्रेस में शामिल होने के बाद संजय सिंह ने भाजपा पर परिवारवाद का आरोप भी लगाया। संजय सिंह मसानी विधानसभा से टिकट चाहते थे। लेकिन टिकट नहीं मिलने पर वह कांग्रेस में शामिल हो गए। वारसिवनी से चुनाव भी लड़े लेकिन निर्दलीय विधायक प्रदीप जायसवाल के हाथों पराजित हो गए। प्रदीप जायसवाल ने अभी शिवराज सरकार को अपना समर्थन दे रखा है। 

शत्रुघ्न सिन्हा

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी के बागी नेता शत्रुघ्न सिन्हा बीजेपी के स्थापना दिवस वाले दिन कांग्रेस में शामिल हो गए। शत्रुघ्न सिन्हा ने पटना साहिब से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव भी लड़ा लेकिन रविशंकर प्रसाद के हाथों पराजित हो गए। बीजेपी में रहते हुए ही अपनी पार्टी के खिलाफ बोलने वाले शत्रुघ्न सिन्हा पहले खुद की हार के साथ पत्नी की भी पराजय और बिहार विधानसभा चुनाव में बेटे लव सिन्हा की हार के बाद आज खुद ही खामोश से हो गए हैं। 

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