Jyoti Basu Death Anniversary: बंगाल का वह मुख्यमंत्री जिसकी विपक्ष भी करता था प्रशंसा, बनते बनते रह गए प्रधानमंत्री

Jyoti Basu
प्रतिरूप फोटो
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Prabhasakshi News Desk । Jan 17 2025 10:51AM

सुधारवादी नीतियां, रिकॉर्डधारी मुख्यमंत्री ये सब गुण बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु के भीतर थे। वे लंदन में वकालत छोड़कर भारत आए और फिर वामपंथ की राजनीति को चुना और उसी के होकर रह गए। आज उनकी 15वीं पुण्यतिथि है। बसु ने अपनी लोकप्रियता की वजह से लगातार सीएम पद पर रहते हुए रिकार्ड बनाया।

कुशल राजनीतिज्ञ, योग्य प्रशासक, सुधारवादी नीतियां, रिकॉर्डधारी मुख्यमंत्री ये सब गुण बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु के भीतर थे। वे लंदन में वकालत छोड़कर भारत आए और फिर वामपंथ की राजनीति को चुना और उसी के होकर रह गए। आज उनकी 15वीं पुण्यतिथि है। बसु का नाम भारत के उन चुनिंदा मुख्यमंत्रियों में शामिल है, जिन्होंने अपनी लोकप्रियता की वजह से लगातार सीएम पद पर रहते हुए रिकार्ड बनाया। ज्योति बसु पश्चिम बंगाल के लगातार 23 साल तक मुख्यमंत्री रहे और करीब 5 दशक तक देश की राजनीति में छाए रहे। इस दौरान उन्होंने 2 बार प्रधानमंत्री बनने का ऑफर ठुकराया।

शुरू से ही था वामपंथ की ओर झुकाव

बंगाली कायस्थ परिवार में ज्योतिरेंद्र बासु का जन्म 8 जुलाई 1914 को कोलकाता में हुआ था। उनके पिता निशिकांत बसु एक डॉक्टर थे और उनका मां हेमलता बसु एक गृहणी। उनके बचपन के शुरुआती साल बंगाल प्रांत के ढाका जिले के बार्दी में बीता। कोलकाता (तब कलकत्ता) के सेंट जेवियर्स स्कूल से उन्होंने इंटर पास किया। कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे कानून की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड चले गए और वहीं उनका झुकाव कम्युनिस्ट पार्टी की ओर हुआ। 1940 में वे बैरिस्टर बनकर हमेशा के लिए भारत लौट आये। हालांकि, 1930 से ही वे कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के सदस्य रहे थे।

साल 1977 में मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में जब वाममोर्चा सरकार के अगुवा बने ज्योति बसु नेता तो वामपंथी थे, लेकिन उनके व्यक्तित्व का करिश्मा ऐसा था कि अलग विचारधारा के विपक्षी नेता भी उनके मुरीद थे। नक्सलवादी आंदोलन से पश्चिम बंगाल में पैदा हुई अस्थिरता को राजनीतिक स्थिरता में बदलना, जमींदारों और सरकारी कब्जे वाली जमीनों का मालिकाना हक लाखों किसानों को देना, गरीबी दूर करने के प्रयास करना उनकी उपलब्धियों में शामिल रहा है।

ज्योति बसु रेलकर्मियों के आंदोलन में शामिल होकर वे पहली बार चर्चा में आए। पहली बार साल 1957 में पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता चुने गए और जब 1967 में वाम मोर्चे की अगुवाई में संयुक्त मोर्चा सरकार बनी तो उन्हें गृहमंत्री बनाया गया। हालांकि नक्सल आंदोलन के कारण बंगाल सरकार गिर गई और वहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। उन्होंने बंगाल में अपनी पार्टी माकपा और वाममोर्चा को मजबूत किया और 1977 में जब लेफ्ट को पूर्ण बहुमत मिला तो वे मुख्यमंत्री बने। इसके बाद वे 23 साल लगातार इस पर रहे।

बनते-बनते रहे पीएम

चंद्रशेखर और अरूण नेहरू ने 1989 लोकसभा चुनाव के बाद ज्योति बसु को प्रधानमंत्री बनने का ऑफर दिया गया था। लेकिन तब उन्होंने मना कर दिया। फिर उन्हें दूसरा मौका साल 1990 में मिला, जब केंद्र में वीपी सिंह की सरकार गिर गई थी। राजीव गांधी की नजर ज्योति बसु पर थी, लेकिन इस बार भी उन्होंने मना कर दिया। 1996 में जब उनकी इच्छा हुई पीएम बनने की तो सामने से ऑफर आने के बावजूद पार्टी ने संयुक्त मोर्चा सरकार में शामिल होने से ही मना कर दिया। ऐसे में बसु का पीएम बनने का सपना अधूरा ही रह गया। 17 जनवरी, 2010 को कोलकाता के एक अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली।

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