Kashmiri लड़की जमरूदा बानो ने दिखा दिया- अभावों में रहते हुए भी मंजिल हासिल की जा सकती है

जमरूदा ने मार्शल आर्ट्स सीखने के दौरान बहुत संघर्ष किया क्योंकि अभ्यास के लिए गांव में किसी भी तरह की सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं। उन्हें प्रैक्टिस के लिए अपने गांव से बडगाम जाना पड़ता था। इस दौरान उनकी काफी आलोचना भी हुई।
जम्मू-कश्मीर में खेलों के क्षेत्र में जबरदस्त क्रांति आ चुकी है। माहौल बदलने से खेलों के प्रति रुझान भी बढ़ा है और खेल सुविधाएं उपलब्ध होने से खिलाड़ियों का मनोबल भी बढ़ा है। लड़के ही नहीं, कश्मीरी लड़कियां भी खेलों की दुनिया में अपना नाम कमा रही हैं। इसी कड़ी में बडगाम जिले के एक छोटे से गांव अरिपंथन की रहने वाली जमरूदा बानो का नाम लिया जा सकता है जोकि मार्शल आर्ट्स की दुनिया में अब काफी लोकप्रिय हो चुकी हैं। वह एक गरीब परिवार से हैं। उनके पिता विकलांग हैं और भाई मजदूरी करता है। लेकिन अपने परिवार की खराब आर्थिक स्थिति के बावजूद जमरूदा ने मार्शल आर्ट्स के क्षेत्र में नाम कमाने के अपने अभियान के दौरान कभी हार नहीं मानी और तीन राष्ट्रीय स्वर्ण पदक जीते। उन्होंने स्कूल स्तर से अपनी यात्रा शुरू की और अब तक वह विभिन्न स्थानों में कई जिला स्तरीय, राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय स्तर के टूर्नामेंट खेल चुकी हैं।
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जमरूदा ने मार्शल आर्ट्स सीखने के दौरान बहुत संघर्ष किया क्योंकि अभ्यास के लिए गांव में किसी भी तरह की सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं। उन्हें प्रैक्टिस के लिए अपने गांव से बडगाम जाना पड़ता था। इस दौरान उनकी काफी आलोचना भी हुई लेकिन उन्होंने अपना संघर्ष जारी रखा और यह साबित कर दिया कि लड़कियां कभी भी लड़कों से पीछे नहीं रहती हैं। इस अभियान के दौरान उनके परिवार ने मैदान में और मैदान के बाहर भी उनका पूरा साथ दिया। आज जब जमरूदा एक सफल खिलाड़ी के तौर पर उभर चुकी हैं तब उन्होंने सभी के माता-पिता से अपील की है कि वे अपनी लड़कियों को खेलों में सहयोग करें ताकि वे अपनी प्रतिभा दिखा सकें। जमरूदा बानो अब राष्ट्रीय और ओलंपिक स्तर की स्पर्धाओं सहित अन्य आयोजनों में भाग लेने की योजना बना रही हैं।
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