किंगमेकर नहीं, कर्नाटक के ‘किंग’ बनना चाहते हैं कुमारस्वामी

Kumaraswamy wants to be king, not kingmaker
[email protected] । May 16 2018 9:24AM

चुनाव पूर्व अपने इस दावे पर रहते हुए कि वह ‘किंगमेकर’ नहीं बल्कि ‘किंग’ होंगे कर्नाटक जदएस प्रमुख एच डी कुमारस्वामी ने वस्तुत: हाशिये से उठकर कांग्रेस के समर्थन से एक बार फिर कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनने के लिए दावा पेश कर दिया।

बेंगलुरू। चुनाव पूर्व अपने इस दावे पर रहते हुए कि वह ‘किंगमेकर’ नहीं बल्कि ‘किंग’ होंगे कर्नाटक जदएस प्रमुख एच डी कुमारस्वामी ने वस्तुत: हाशिये से उठकर कांग्रेस के समर्थन से एक बार फिर कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनने के लिए दावा पेश कर दिया। कुमारस्वामी ने अपने पिता एवं पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा से इस तरह से मौके का सर्वश्रेष्ठ इस्तेमाल अपने पक्ष में करने का गुण सीखा है।

कुमारस्वामी की पार्टी भले ही राज्य विधानसभा चुनाव में 37 सीटें जीतकर तीसरे स्थान पर आयी हो लेकिन कांग्रेस द्वारा उन्हें समर्थन की घोषणा करने के बाद वह एक गठबंधन सरकार का नेतृत्व करने की दौड़ में आ गए। कुमारस्वामी के बारे में कहा जाता है कि वह अचानक राजनीति में आ गए क्योंकि उनकी पहली पसंद फिल्में थीं। कुमारस्वामी का जन्म हासन जिले के होलेनरसीपुरा तहसील के हरदनहल्ली में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा हासन में हासिल की और उसके बाद उच्च शिक्षा के लिए बेंगलुरू चले आये।

विज्ञान विषय में स्नातक करने वाले 58 वर्षीय कुमारस्वामी के लिए राजनीति उनकी पहली रुचि नहीं थी। कन्नड़ अभिनेता डा. राजकुमार के प्रशंसक कुमारस्वामी अपने कालेज के दिनों में सिनेमा की ओर आकर्षित हुए और इससे वह बाद में फिल्म निर्माण और वितरण के व्यापार में आये। उन्होंने कई सफल कन्नड़ फिल्मों का निर्माण किया है जिसमें निखिल गौड़ा अभिनीत ‘जगुआर‘ शामिल है।

कुमारस्वामी का राजनीति में प्रवेश 1996 में कनकपुरा से लोकसभा चुनाव लड़ने और जीत दर्ज करने से हुआ। 2004 में वह विधानसभा के लिए चुने गए जब जदएस ने त्रिशंकु विधानसभा होने की स्थिति में कांग्रेस की धर्म सिंह नीत सरकार का समर्थन किया था। इसके बाद 2006 के शुरूआत में कुमारस्वामी ने अपनी पार्टी को खतरा बताते हुए देवेगौड़ा के विरोध के बावजूद सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया।

कुमारस्वामी ने इसके बाद भाजपा के समर्थन से सरकार बनायी और मुख्यमंत्री बने। कुमारस्वामी का पार्टी में कद इस तेजी से बढ़ा कि इससे उनके परिवार में विवाद उत्पन्न हो गया क्योंकि उस समय तक उनके बड़े भाई एच डी रेवन्ना को गौड़ा का उत्तराधिकारी माना जाता था। उसके बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता सिद्धरमैया भी यह महसूस करने लगे कि उन्हें किनारे किया जा रहा है। सिद्धरमैया ने कथित असंतुष्ट गतिविधियां शुरू कर दीं जिसके चलते उन्हें जदएस से निष्कासित कर दिया गया।

कुमारस्वामी 20..20 महीने सत्ता साझा करने का समझौते का सम्मान करने में असफल रहे जिसके चलते भाजपा 2008 में पहली बार दक्षिण भारत के इस राज्य में सत्ता में आयी। जदएस उसके बाद से सत्ता से बाहर है और कुमारस्वामी ने हाल में पीटीआई से कहा था कि यह चुनाव उनकी पार्टी के लिए अस्तित्व की लड़ाई है।

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