Maharashtra Assembly Elections : आदिवासियों के वर्चस्व वाली Melghat सीट पर मतदाताओं ने सभी दलों को दिया है बड़ा झटका

Kevalram Tulsiram Kale
प्रतिरूप फोटो
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Prabhasakshi News Desk । Nov 12 2024 6:49PM

अमरावती लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली मेलघाट विधानसभा सीट 1962 से अस्तित्व में है। वर्तमान में यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। इस सीट पर आदिवासी वोटरों का काफी दबदबा माना जाता है। पहले इस सीट पर कांग्रेस का एकछत्र राज कायम था, लेकिन बाद में यह सीट उसके हाथ से छिन गयी।

महाराष्ट्र के अमरावती लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली मेलघाट विधानसभा सीट 1962 से अस्तित्व में है। वर्तमान में यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। इस सीट पर आदिवासी वोटरों का काफी दबदबा माना जाता है। पहले इस सीट पर कांग्रेस का एकछत्र राज कायम था, लेकिन बाद में यह सीट उसके हाथ से छिन गयी। 1967 से लेकर 1995 तक इस सीट पर कब्जा रखने वाली कांग्रेस इस सीट पर जीत के लिए तरस रही है। फिलहाल इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने केवलराम तुलसीराम काले को मैदान में उतारा है।

पिछले विधानसभा चुनाव के आंकड़ों के मुताबिक यहां कुल 2 लाख 77 हजार 523 पंजीकृत वोटर्स हैं। अगर जातिगत आंकड़ों की बात करें तो 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां 171,794 एसटी वोटर्स हैं जो कि कुल वोटर्स का 62.43% है। इसके अलावा यहां कुल वोट का 8.4% फीसदी यानी लगभग 23,115 एससी मतदाता भी हैं। 5.1 प्रतिशत यानी करीब लगभग 14,034 मुस्लिम वोटर्स हैं। विधानसभा में ग्रामीण मतदाता लगभग 261,116 हैं, जो 2011 जो कि कुल वोट का 94.89% है।

मेलघाट विधानसभा सीट का इतिहास

पहली बार यहां निर्दलीय ममराज खंडेलवाल को जनता ने यहां से विजयश्री देकर विधानसभा पहुंचाया था। लेकिन उसके बाद से लगातार 1967 से लेकर 1995 तक यह सीट कांग्रेस के कब्जे में रही। 1995 में पहली बार भारतीय जनता पार्टी यहां जीत दर्ज करने में कामयाब रही। 1995 में बीजेपी उम्मीदवार पटल्या लंगडा मावस्कर ने बहुजन समाज पार्टी के राजकुमार दयाराम पटेल को 5 हजार से अधिक वोटों से मात दी थी। इस चुनाव में मावस्कर को 37377 वोट मिले थे तो वहीं राजकुमार को 32209 मत हासिल हुए थे। बाद में 1999 में राजकुमार दयाराम पटेल ने यहां बीजेपी के टिकट पर जीत दर्ज की। 2004 में जनता ने एक बार फिर से राजकुमार को विधानसभा भेजा।

2009 में एक बार फिर से कांग्रेस इस सीट पर कब्जा जमाने में कामयाब हुई। तब काले केवलराम तुलसीराम ने राजकुमार दयाराम पटेल को नजदीकी मुकाबले में करीब 1 हजार वोटों से मात दी थी। 2014 के चुनाव में बीजेपी ने दोबारा वापसी की। इस बार भाजपा के टिकट पर भीलावेकर प्रभुदास बाबूलाल ने जीत दर्ज की। जबकि बीजेपी छोड़कर एनसीपी के टिकट पर चुनाव लड़ें राजकुमार दयाराम पटेल को हार का सामना करना पड़ा। 2019 के विधानसभा चुनाव में राजकुमार दयाराम पटेल ने एक बार फिर पाला बदलते हुए प्रहार जनशक्ति पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। जबकि बीजेपी के रमेश मावस्कर को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा।

2024 की संभावनाओं पर नजर

आगामी विधानसभा चुनाव की बात करें तो यहां एक बार फिर से बच्चू कड़ू की प्रहार जनशक्ति पार्टी के लिए संभावनाएं दिखाई दे रही हैं। हालांकि अभी चुनाव में काफी वक्त बाकी है और राजनीति में कब किस दल का कौन सा नैरेटिव चुनावी बाजी को उलट-पुलट दे यह कह पाना मुश्किल है। क्योंकि चर्चा तो यह भी है कि यहां इस बार मुकाबला त्रिकोणीय भी हो सकता है।

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