महात्मा गांधी 1947 में शाखा में आए थे, मोहन भागवत बोले- स्वयंसेवकों के अनुशासन की की थी प्रशंसा
महात्मा गांधी जी से हुयी उनकी बातचीत और प्रश्नोत्तर अब प्रकाशित हैं। भागवत ने देश के लिए महात्मा गांधी की स्वदेशी दृष्टि पर जोर दिया और गांधी जी का यह प्रयास स्वत्व के आधार पर जीवन के सभी पहलुओं में एक नया विचार देने का सफल प्रयोग था।
नयी दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि महात्मा गांधीविभाजन के दिनों में दिल्ली में एक शाखा में आए थे और स्वयंसेवकों का अनुशासन और उनमें जाति-पांति की भावना का अभाव देखकर प्रसन्नता व्यक्त की थी। उन्होंने कहा कि संघ के स्वयंसेवक प्रतिदिन प्रातःकाल एकात्मता स्त्रोत्र में महात्मा गांधी के नाम का उच्चारण करते हुए उनके जीवन का स्मरण करते हैं। देशवासियों द्वारा बुधवार को महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाए जाने के बीच भागवत ने आरएसएस की वेबसाइट पर प्रकाशित एक आलेख में कहा, ‘‘... विभाजन के रक्तरंजित दिनों में दिल्ली में अपने निवास के पास लगने वाली शाखा में गांधी जी का आना हुआ था। उसका रिपोर्ट 27 सितंबर 1947 के हरिजन में छपा है। संघ के स्वयंसेवकों का अनुशासन और उनमें जाति-पांति की विभेदकारी भावना का अभाव देख कर गांधी जी ने प्रसन्नता व्यक्त की थी।’’
Gandhiji, who believed in the Swa-based reorganisation of Bharat,firmly stood for social equality and harmony and translated his vision into action,had set an example for all through his life.We must perceive,understand and manifest it in our life.-Mohanji Bhagwat#GandhiJayanti pic.twitter.com/eE19jAShsk
— RSS (@RSSorg) October 2, 2019
उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी 1936 में वर्धा के पास लगे संघ शिविर में भी पधारे थे और अगले दिन संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने उनसे उनके निवास स्थान पर मुलाकात की थी। महात्मा गांधी जी से हुयी उनकी बातचीत और प्रश्नोत्तर अब प्रकाशित हैं। भागवत ने देश के लिए महात्मा गांधी की स्वदेशी दृष्टि पर जोर दिया और गांधी जी का यह प्रयास स्वत्व के आधार पर जीवन के सभी पहलुओं में एक नया विचार देने का सफल प्रयोग था। लेकिन गुलामी की मानसिकता वाले लोगों ने पश्चिम से आयी बातों को ही प्रमाण मान लिया।
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उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने स्वदेशी दर्शन की वकालत की क्योंकि पाश्चात्य जगत सत्ता के बल पर शिक्षा को विकृत करते हुए व आर्थिक दृष्टि से सबको अपना आश्रित बनाने की कोशिश कर रहा था। भागवत ने कहा, ‘‘किन्तु गुलामी की मानसिकता वाले लोगों ने बिना इसे समझे पश्चिम से आयी बातों को ही स्वीकार कर लिया और अपने पूर्वज, गौरव व संस्कारों को हीन मानकर अंधानुकरण व चाटुकारिता में लग गये थे। उसका बहुत बड़ा प्रभाव आज भी भारत की दिशा और दशा पर दिखायी देता है।’’
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