टैगोर की धरती से ममता ने छेड़ा 'दूसरा भाषा आंदोलन', बोलीं- अपनी अस्मिता और मातृभाषा को नहीं भूल सकते

Mamata banerjee
ANI
अंकित सिंह । Jul 28 2025 4:00PM

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बंगाली प्रवासियों पर हमलों के खिलाफ 'भाषा आंदोलन' की शुरुआत की, अपनी अस्मिता और मातृभाषा को न भूलने का आह्वान किया। रवींद्रनाथ टैगोर की भूमि बोलपुर में हुए इस प्रतीकात्मक विरोध मार्च को उन्होंने 1952 के ऐतिहासिक ढाका भाषा आंदोलन से जोड़ा। यह पहल बंगाली पहचान और सांस्कृतिक विरासत पर जोर देती है।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अन्य राज्यों में बंगाली प्रवासियों पर कथित हमलों के खिलाफ बोलपुर में विरोध मार्च किया। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि आप सबकुछ भूल सकते हैं, लेकिन आपको अपनी ‘अस्मिता’, मातृभाषा, मातृभूमि नहीं भूलना चाहिए। उन्होंने कहा कि मैं किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं हूँ, मेरा मानना है कि विविधता में एकता ही हमारे राष्ट्र की नींव है। उन्होंने कहा कि अगर हम बंगाल में 1.5 करोड़ प्रवासी मज़दूरों को आश्रय दे सकते हैं, तो आप दूसरे राज्यों में काम कर रहे 22 लाख बंगाली प्रवासियों को क्यों नहीं स्वीकार कर सकते।

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भावनाओं और प्रतीकों से भरपूर यह विरोध मार्च ‘टूरिस्ट लॉज’ चौराहे से शुरू हुआ और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर की भूमि पर तीन किलोमीटर की दूरी तय कर जम्बोनी बस अड्डे पर समाप्त हुआ। हाथ में टैगोर का चित्र लिए हुए ममता ने सड़क के दोनों ओर खड़ी भीड़ का अभिवादन करते हुए रैली का नेतृत्व किया। पार्टी कार्यकर्ताओं ने प्रतुल मुखोपाध्याय का प्रतिष्ठित विरोध गान ‘‘अमी बांग्लाय गान गाई’’ गाया, जबकि सफेद और लाल साड़ियां पहने महिलाओं ने शंख बजाया, जिससे रैली में एक विशिष्ट बंगाली संस्कृति का रंग भर गया। 

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ममता ने अपनी जानी-पहचानी सूती साड़ी और शांतिनिकेतन स्थित विश्वभारती का पारंपरिक दुपट्टा पहन रखा था। उनके साथ वरिष्ठ तृणमूल नेता और मंत्री थे। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि टैगोर की भूमि और बंगाल के सांस्कृतिक केंद्र बोलपुर को चुना जाना एक गहरे प्रतीकात्मक महत्व को दर्शाता है। ममता ने पिछले हफ्ते तृणमूल कार्यकर्ताओं से 28 जुलाई से एक नए आंदोलन के लिए तैयार रहने की अपील की थी और उन्होंने इसे दूसरा ‘आंदोलन’ कहा था, जो ढाका (तब पूर्वी पाकिस्तान में) में 1952 के ऐतिहासिक विरोध प्रदर्शन के समान है, जहां छात्रों ने बांग्ला को पाकिस्तान की आधिकारिक के रूप में मान्यता देने की मांग करते हुए अपने प्राणों का बलिदान दिया था। 

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