Farm Laws को निरस्त करने तक ही सीमित नहीं रहेगी सरकार, शीतकालीन सत्र में 100 से अधिक कानून हटाए जा सकते हैं

modi government
अभिनय आकाश । Nov 23 2021 12:44PM

मोदी सरकार द्वारा देशहित में कृषि कानूनों को वापस लेने के ऐलान के बाद खबर ये आ रही है कि 100 से अधिक कानूनों को खत्म करने पर मोदी सरकार विचार कर रही है और कई कानूनों में बदलाव भी किया जा सकता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरु पर्व पर एक चौंकाने वाला ऐलान करते हुए कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया। पीएम मोदी ने किसानों से अपने घर-परिवार-खेत के पास लौटने के साथ एक नई शुरुआत करने की अपील की थी। किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा ने पीएम नरेंद्र मोदी के इस फैसले का स्वागत करने के साथ ही किंतु-परंतु लगाने हुए इसे 'एकतरफा घोषणा' बताते हुए 6 मांगों के साथ किसान आंदोलन को जारी रखने का फैसला किया है। लेकिन अगर आपको लग रहा है कि मोदी सरकार तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने के फैसले तक ही सीमित रहेगी तो आप गलत सोच रहे हैं। ये तो मात्र एक प्रारंभ है। मोदी सरकार द्वारा देशहित में कृषि कानूनों को वापस लेने के ऐलान के बाद खबर ये आ रही है कि 100 से अधिक कानूनों को खत्म करने पर मोदी सरकार विचार कर रही है और कई कानूनों में बदलाव भी किया जा सकता है। 

शीतकालीन सत्र में हटाए जा सकते हैं 100 से अधिक कानून

केंद्र सरकार में कानून मंत्रालय के राज्य मंत्री एसपी बघेल ने बीते दिनों मीडिया को बताया कि केवल कृषि कानून ही नहीं बल्कि 100 से अधिक कानून इस शीतकालीन सत्र में हटाए जा सकते हैं। जयपुर में एक कार्यतक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि ब्रिटिश शासन के दौर के ऐसे कानून जो आज के समय में अप्रासंगिक हैं, उन्हें हटाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा अगले संसद सत्र में कई कानून वापस लेने की तैयारी की गई है। यह वह कानून हैं, जो वर्तमान परिपेक्ष में देश के हालत में फिट नहीं हो रहे हैं। 

संभावित कानून जिनमें बदलाव की आवश्यकता है 

यूनिफॉर्म सिविल कोड:  संविधान सभा में नेहरू और आंबेडकर ने हिंदू कोड बिल का शुरुआती मसौदा पेश किया। बिल का मसौदा ये था कि हिन्दू धर्म को मानने वाले लोगों के वसीहत और शादी के नियम कलमबद्ध किए जाए। और वो आधुनिक समाज की चेतनाओं के मुताबिक हों। राजेंद्र बाबू ने केवल और केवल हिन्दू कानून बनाने का विरोध करते हुए कहा था कि अगर मौजूदा कानून अपर्याप्त और आपत्तिजनक है तो सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता क्यों नहीं लागू की जाती। सिर्फ एक समुदाय को ही कानूनी दखलंदाजी के लिए क्यों चुना गया। सिर्फ एक समुदाय को ही कानूनी दखलंदाजी के लिए क्यों चुना गया। नेहरू इससे इत्तेफाक नहीं रखते थे। हिंदुओं के लिए बनाए गए कोड के दायरे में सिखों, बौद्ध और जैन धर्म के अनुयायियों को भी लाया गया। दूसरी तरफ भारत में मुसलमानों के शादी-ब्याह, तलाक़ और उत्तराधिकार के मामलों का फैसला शरीयत के मुताबिक होता रहा, जिसे मोहम्मडन लॉ के नाम से जाना जाता है।

रेलवे, स्पेस और बिजली विभाग: हालिया दिनों में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के अंतरिक्ष क्षेत्र में सहभागिता निभाने की आकांक्षा रखने वाले उद्योगों के संगठन ‘इंडियन स्पेस एसोसिएशन' (आईएसपीए) की शुरुआत करते हुए अपनी सरकार की सुधार संबंधी प्रतिबद्धताओं को रेखांकित किया। ऐसे में सरकार को अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र को केवल विशेषाधिकार में न रखते हुए निजी कंपनियों के लिए खोले जाने चाहिए। वहीं रेलवे को लेकर सरकार की तरफ से पहले ही स्पष्टीकरण दिया जा चुका है कि रेलवे का पूर्ण निजीकरण नहीं किया जाएगा। लेकिन देश में रेल सेवा की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए निजी निवेश की आवश्यकता है। ऐसे में जो भी आवश्यक कानून सुधार हैं वो लागू होने चाहिए। बिजली विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार की कहानी बार-बार दोहराने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उससे हर भारतीय परिचित है। 

हिन्दू मंदिरों की व्यथा:  विभिन्न राज्यों की सरकारों के पास देश के 4 लाख मंदिरों का नियंत्रण है। विहिप समेत कई धार्मिक संगठनों की तरफ से सरकार द्वारा दान पर कब्जे के आरोप लगते रहते हैं। साथ ही कहा जाता है कि कई सरकारों द्वारा मंदिरों पर कब्जा कर भारतीय संस्कृति को समाप्त करने की साजिश रची जा रही है। आंध्र प्रदेश के तिरुपति तिरुमला मंदिर का उदाहरण दिया जाता है जहां प्रतिवर्ष श्रद्धालुओं के दान से 1300 करोड़ रुपए आते हैं। इनमें से 85% धनराशि को सीधा सरकारी राजकोष में भेज दिया जाता है।  

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़