Bachendri Pal Birthday: जिंदगी के 70वें बसंत में पहुंची पर्वतारोही बछेंद्री पाल, ऐसे फतह किया था माउंट एवरेस्ट

Bachendri Pal Birthday
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एवरेस्ट फतह करने वाली बछेंद्री पाल किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। आज यानी 24 मई को वह अपना 70वां जन्मदिन मना रही हैं। उन्होंने हजारों-लाखों महिलाओं को स्पोर्ट और एडवेंचर के लिए प्रेरित किया।

आज यानी की 24 मई को एवरेस्ट फतह करने वाली भारत की पहली और विश्व की पांचवीं महिला बछेन्द्री पाल अपना 70वां जन्मदिन मना रही हैं। बछेंद्री पाल ने भारत में महिलाओं के प्रति बनी रूढ़ और परंपरागत धारणाओं को मिटाने का काम किया। उन्होंने हजारों-लाखों महिलाओं को स्पोर्ट और एडवेंचर के लिए प्रेरित किया।

एवरेस्ट फतह करने वाली बछेंद्री पाल ने यह करिश्मा तब कर दिखाया था, जब महिलाओं की शिक्षा को भी इतनी अधिक अहमियत नहीं दी जाती थी। लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत और लगन के जरिए अपनी ऐसी पहचान बनाई कि घर-घर में लोगों ने यह कहना शुरूकर दिया कि उनकी भी बेटी बछेन्द्री पाल जैसी बनेगी। तो आइए जानते हैं उनके जन्मदिन के मौके पर बछेंद्री पाल के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और शिक्षा

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के नकुरी गांव में 24 मई 1954 को बछेन्द्री पाल का जन्म हुआ था। बछेंद्री पाल अपने गांव में ग्रेजुएशन पूरा करने वाली पहली महिला थीं। उन्होंने बीए करने के बाद संस्कृत से एमए किया था। वहीं बछेंद्री के परिवार वाले नहीं चाहते थे कि वह पर्वतारोही बनें। क्योंकि उनके गांव में पढ़ाई-लिखाई करने वाली लड़कियों को अच्छे नजरिए से नहीं देखा जाता था। बछेंद्री किसान परिवार से ताल्लुक रखती थीं। वहीं परिवार की आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी। 

बछेंद्री ने परिवार की मदद के लिए सिलाई का काम करना शुरू किया। इसके अलावा वह घास व लकड़ी लेने जंगल भी जाया करती थीं। पढ़ाई-लिखाई करने के बाद भी जब उनको अच्छी नौकरी नहीं मिली, तो उनको यह अपनी प्रतिभा का अपमान लगा। जिसके बाद बछेंद्री पाल ने माउंटनियरिंग में करियर बनाने की ठानी। लेकिन उनके परिवार वाले बछेंद्री के इस फैसले के खिलाफ थे। इसके बाद भी उन्होंने नेहरू पर्वतारोहण संस्थान में एडमिशन के लिए आवेदन कर दिया।

ऐसे बनीं पर्वतारोही

भारत ने साल 1984 में एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए एक अभियान दल बनाया। इस अभियान दल का नाम 'एवरेस्ट-84' था। इस दल में बछेंद्री पाल के साथ 11 पुरुष और 5 महिलाएं शामिल थीं। खुद को साबित करने का यह बछेंद्री के पास बड़ा मौका था। इसके लिए उन्होंने जमकर ट्रेनिंग लेनी शुरूकर दी और मई 1984 में 'एवरेस्ट 84' दल का मिशन शुरू हुआ। इस दौरान खराब मौसम, तूफान और खड़ी चढ़ाई को झेलते हुए 23 मई 1984 के दिन बछेंद्री ने एवरेस्ट फतह कर इतिहास लिख दिया। 

देश-दुनिया में बछेंद्री पाल की खूब तारीफें हुईं। एवरेस्ट फतह करने के बाद बछेंद्री पाल की तारीफ तो खूब हुई, लेकिन इस क्षेत्र में वह अपना करियर नहीं बना पा रही थीं। फिर टाटा समूह के जेआरडी टाटा ने जमशेदपुर बुलाया और अकादमी बना कर युवाओं को ट्रेनिंग देने के लिए कहा। इसके बाद उनकी जिंदगी बदल गई। आपको बता दें कि टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन, जमशेदपुर की संस्थापक निदेशक के तौर पर 35 सालों में बछेंद्री पाल करीब 4500 से अधिक पर्वतारोहियों को माउंट एवरेस्ट फतह करने के तैयार कर चुकी हैं।

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